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२२:४१, ४ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-56 / Gita Chapter-2 Verse-56
दु:खेष्वनुद्विग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह: ।
वीतरागभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ।।56।।
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दु:खों की प्राप्ति होने पर जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा नि:स्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये हैं, ऐसा मुनि स्थिर बुद्धि कहा जाता है ।।56।।
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The sage, whose mind remains unperturbed amid sorrows, whose thirst for pleasure has altogether disappeared, and who is free from passion, fear and anger, is called stable of mind.(56)
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दु: खेषु = दु:खोंकी प्राप्ति में ; अनुद्विग्नमना: = उद्वेगरहित है मन जिसका (और) ; सुखेषु = सुखोंकी प्राप्तिमें ; विगतस्पृह: = दूर हो गयी है स्पृहा जिसकी (तथा) ; वीतरागभयक्रोध: = नष्ट हो गये हैं राग भय और क्रोध जिसके (ऐसा) ; मुनि: = मुनि ; स्थितधी: = स्थिरबुद्धि ; उच्यते = कहा जाता है
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