"गीता 3:16" के अवतरणों में अंतर
Deepak Sharma (चर्चा | योगदान) |
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− | यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि उपर्युक्त प्रकार से सृष्टि-चक्र के अनुसार चलने का दायित्व किस श्रेणी के मनुष्यों पर है ? इस पर परमात्मा को प्राप्त सिद्ध | + | यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि उपर्युक्त प्रकार से सृष्टि-चक्र के अनुसार चलने का दायित्व किस श्रेणी के मनुष्यों पर है ? इस पर परमात्मा को प्राप्त सिद्ध महापुरुष के सिवा इस सृष्टि से सम्बन्ध रखने वाले सभी मनुष्यों पर अपने-अपने कर्तव्य पालन का दायित्व है- यह भाव दिखलाने के लिये दो श्लाकों में ज्ञानी महापुरुष के लिये कर्तव्य अभाव और उसका हेतु बतलाते हैं- |
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− | हे पार्थ ! जो | + | हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनज्जय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है ।" style="color:green">पार्थ</balloon> ! जो पुरुष इस लोक में इस प्रकार परम्परा से प्रचलित सृष्टि चक्र के अनुकूल नहीं बरतता अर्थात् अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता, वह [[इन्द्रियों]] के द्वारा भोगों में रमण करने वाला पापायु पुरुष व्यर्थ ही जीता है ।।16।। |
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− | + | Arjuna, he who does not follow the wheel of creation thus set going in this world (i.e., does not perform his duties), sinful and sensual, he lives in vain. (16) | |
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− | पार्थ = हे पार्थ ; य: = जो | + | पार्थ = हे पार्थ ; य: = जो पुरुष ; इह = इस लोकमें ; एवम् = इस प्रकार ; प्रवर्तितम् = चलाये हुए ; चक्रम् = सृष्टिचक्रके ; न अनुवर्तयति = अनुसार नहीं बर्तता है (अर्थात शास्त्रानुसार कर्मोंको नहीं करता है) ; स: = वह ; इन्द्रियाराम: = इन्द्रियोंके सुखको भोगनेवाला ; अघायु: = पापआयु (पुरुष) ; मोघम् = व्यर्थ ही ; जीवति = जीता है |
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-16 / Gita Chapter-3 Verse-16
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