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१२:४५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-38 / Gita Chapter-6 Verse-38
प्रसंग-
इस प्रकार शंका उपस्थित करके, अब <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> उसकी निवृत्ति के लिये भगवान् से प्रार्थना करते हैं-
कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति ।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्राण: पथि ।।38।।
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हे महाबाहो ! क्या वह भगवत्प्राप्ति के मार्ग में मोहित और आश्रयरहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता है ? ।।38।।
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Krishna, strayed from the path leading to God-realization and heavenly enjoyment ? (38)
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महाबाहो = हे महाबाहो ; कच्चित् = क्या (वह) ; ब्रह्मण: = भगवत्प्राप्ति के ; पथि = मार्ग में ; विमूढ: = मोहित हुआ ; अप्रतिष्ठ: = आश्रयरहित पुरुष ; छिन्नाभ्रम् = छिन्न भिन्न बादल की ; इव = भांति ; उभयविभ्रष्ट: = दोनों ओर से अर्थात् भगवत् प्राप्ति और सांसारकि भोगों से भ्रष्ट हुआ ; न नश्यति = नष्ट तो नहीं हो जाता है ;
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