"भांडीरवन" के अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - " ।" to "।") |
|||
(१२ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ३६ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | {{menu}} | + | {{menu}} |
− | {{ | + | {{tocright}} |
− | [[ | + | '''भांडीरवन / [[:en:Bhandirvan|Bhandirvan]]'''<br /> |
− | + | भांडीरवन [[मथुरा]] - माँट मार्ग पर स्थित हैं। भांडीरवन [[श्रीकृष्ण]] की विविध प्रकार की मधुर लीलाओं की स्थली है। बारह वनों से यह एक प्रमुख वन हैं। यहाँ भाण्डीरवट, वेणुकूप, रासस्थली, वंशीवट, मल्लक्रीड़ा स्थान, श्रीदासमजी का मन्दिर, श्याम तलैया, छायेरी गाँव और [[आगियारा]] गाँव आदि लीला स्थलियाँ दर्शनीय हैं। जहाँ सब प्रकार के तत्त्वज्ञान तथा ऐश्वर्य-माधुर्यपूर्ण लीला-माधुरियों का सम्पूर्ण रूप से प्रकाश हो, उसे भाण्डीरवन कहते हैं। | |
− | भांडीरवन | + | *श्रीकृष्णलीला-स्थलों का वर्णन किया जा रहा है- |
− | + | ||
− | श्रीकृष्णलीला- | ||
==भाण्डीरवट== | ==भाण्डीरवट== | ||
− | भाण्डीरवन के अन्तर्गत भाण्डीरवट एक प्रसिद्ध लीलास्थली है। यहाँ श्रीराधाकृष्ण युगल की विविध लीलाएँ सम्पन्न होती हैं। श्रीकृष्ण की प्रकट-लीला के समय यहाँ पर एक बहुत बृहत वट का वृक्ष था उसकी अनेकों लम्बी शाखाएँ ऊपर-नीचे चारों ओर बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थीं। पास में ही श्री[[यमुना]] मधुरा किल्लोल करती हुई वक्रगति से प्रवाहित हो रही थीं, जिस पर श्रीकृष्ण- बलदेव सखाओं के साथ विविध-प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हुए डालियों के ऊपर-ही-ऊपर श्रीयमुना को पार कर जाते | + | भाण्डीरवन के अन्तर्गत भाण्डीरवट एक प्रसिद्ध लीलास्थली है। यहाँ श्रीराधाकृष्ण युगल की विविध लीलाएँ सम्पन्न होती हैं। श्रीकृष्ण की प्रकट-लीला के समय यहाँ पर एक बहुत बृहत वट का वृक्ष था उसकी अनेकों लम्बी शाखाएँ ऊपर-नीचे चारों ओर बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थीं। पास में ही श्री[[यमुना]] मधुरा किल्लोल करती हुई वक्रगति से प्रवाहित हो रही थीं, जिस पर श्रीकृष्ण- बलदेव सखाओं के साथ विविध-प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हुए डालियों के ऊपर-ही-ऊपर श्रीयमुना को पार कर जाते थे। इसकी विस्तृत शाखाओं पर शुक-सारी, मयूर-मयूरी, कोयलें, पपीहे सदा सर्वदा चहकते रहते थे तथा इसके फलों के तृप्त रहते थे। इसकी स्निग्ध एवं सुशीतल छाया में हिरण-हिरणियाँ तथा वन के अन्य प्राणी यमुना का मधुर जलपान कर विश्राम करते थे। श्रीमती [[यशोदा]] आदि ग्वालबालों की माताएँ अपने-अपने पुत्रों के लिए दोपहर का 'छाक' गोपों के माध्यम से अधिकांश इसी निर्दिष्ट भाण्डीरवट पर भेज दिया करती थीं। श्रीकृष्ण-बलदेव सखाओं के साथ गोचारण करते हुए यमुना में गायों को जलपान कराकर निकट की हरी-भरी घासों से पूर्ण वन में चरने के लिए छोड़ देते। वे स्वयं यमुना के शीतल जल में स्नान एवं जलक्रीड़ा कर इस वट की सुशीतल छाया में बैठकर माताओं के द्वारा प्रेरित विविध प्रकार के सुस्वादु अन्न व्यंजन का सेवन करते थे। श्रीकृष्ण सबके मध्य में बैठते। सखा लोग चारों ओर से घेर कर हज़ारों पंक्तियों में अगल-बगल एवं आगे-पीछे बैठ जाते। ये सभी सखा पीछे या दूर रहने पर भी अपने को श्रीकृष्ण के सबसे निकट सामने देखते थे। ये परस्पर सबको हँसते-हँसाते हुए विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हुए भोजन सम्पन्न करते थे। आकाश से ब्रह्मा आदि देवगण उनके भोजन क्रीड़ा-कौतुक देखकर आश्चर्यचकित हो जाते थे। इसी वट वृक्ष के नीचे श्रीराधाकृष्ण युगल का ब्रह्माजी द्वारा गान्धर्व विवाह सम्पन्न हुआ था। <br /> |
'''प्रसंग'''<br /> | '''प्रसंग'''<br /> | ||
− | [[गर्गसंहिता]] एवं [[गीतगोविन्द]] के अनुसार एक समय [[नन्द]]बाबा श्रीकृष्ण को लेकर गोचारण हेतु भाण्डीरवन में | + | [[गर्गसंहिता]] एवं [[गीतगोविन्द]] के अनुसार एक समय [[नन्द]]बाबा श्रीकृष्ण को लेकर गोचारण हेतु भाण्डीरवन में पधारे। सघन तमाल, कदम्ब वृक्षों और हरी-भरी लताओं से आच्छादित यह वन बड़ा ही रमणीय सघन वन होने के कारण इसमें सूर्य की रश्मियाँ भी बहुत ही कम प्रवेश करती थीं। सहसा चारों ओर काले-काले मेघ घिर आये तथा प्रचण्ड आँधी के साथ कुछ-कुछ वर्षा भी प्रारम्भ हो गई। चारों तरफ अंधकार हो गया। नन्दबाबा दुर्योग देखकर भयभीत हो उठे। उन्होंने कन्हैया को अपने अकं में सावधानी से छिपा लिया। इसी समय वहाँ नख से शिख तक श्रृंगार धारण की हुई अपूर्व सुन्दरी वृषभानु कुमारी श्री[[राधा|राधिका]]जी उपस्थित हुई। उन्होंने नन्दबाबा के आगे अपने दोनों होथों को पसार दिया , मानों कृष्ण को अपनी गोद में लेना चाहती हो। नन्दबाबा को बहुत ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने कृष्ण को उनके हाथों मं समर्पित कर दिया। श्रीमती राधिका कृष्ण को लेकर भाण्डीरवन के अन्तर्गत इसी भाण्डीरवट की छाया में ले गई। वहाँ पहुँचते ही श्रीकृष्ण मन्मथ-मन्मथ किशोर के रूप में प्रकट हो गये। इतने में ललिता, विशाखा आदि सखियाँ तथा चतुर्मुख ब्रह्मा भी वहाँ उपस्थित हुए दोनों की अभिलाषा जानकर [[ब्रह्मा]]जी ने [[वेद]] मन्त्रों के द्वारा किशोर-किशोरी का गान्धर्व विवाह सम्पन्न कराया श्रीमती राधिका और श्रीकृष्ण ने परस्पर एक दूसरे को सुन्दर फूलों के हार अर्पण किये। सखियों ने प्रसन्नतापूर्वक विवाहकालीन गीत गाये और देवताओं ने आकाश से पुष्पों की वृष्टि की। देखते-देखते कुछ क्षणों के पश्चात ब्रह्माजी चले गये। सखियाँ भी अन्तर्धान हो गईं और कृष्ण ने पुन: बालक का रूप धारण कर लिया। श्रीमती राधिका ने कृष्ण को पूर्ववत उठाकर प्रतीक्षा में खड़े नन्दबाबा की गोदी में सौंप दिया। इतने में बादल छट गये। आँधी भी शान्त हो गई। नन्दबाबा कृष्ण को लेकर अपने नन्द ब्रज में लौट आये।<br /> |
'''दूसरा प्रसंग'''<br /> | '''दूसरा प्रसंग'''<br /> | ||
− | एक समय गर्मी के दिनों में सखाओं के साथ श्रीकृष्ण गायों को यमुना में जलपान कराकर उन्हें चरने के लिए छोड़ दिया तथा वे मण्डलीबद्ध होकर भोजन क्रीड़ा-कौतुक में इतने मग्न हो गये कि उन्हें यह पता | + | एक समय गर्मी के दिनों में सखाओं के साथ श्रीकृष्ण गायों को यमुना में जलपान कराकर उन्हें चरने के लिए छोड़ दिया तथा वे मण्डलीबद्ध होकर भोजन क्रीड़ा-कौतुक में इतने मग्न हो गये कि उन्हें यह पता नहीं चला कि गायें उन्हें छोड़कर बहुत दूर निकल गई हैं। चारों ओर सूखे हुए मुञ्जावन, जिसमें हाथी भी मार्ग न पा सके, जेठ की चिलचिलाती हुई धूप, नीचे तप्त बालुका, दूर तक कहीं भी छाया नहीं, गायें उस वीहड़ मुञ्जवन से निकलने का मार्ग भूल गई, प्यास के मारे उनकी छाती फटने लगी। इधर सखा लोग भी कृष्ण-बलदेव को सूचित किये बिना ही गायों को खोजते हुए उसी मुञ्जवन में पहुँचे। इनकी भी गायों जैसी विकट अवस्था हो गई इतने में दुष्ट कंस के अनुचरों ने मुञ्जवन में आग लगा दी। आग हवा के साथ क्षणभर में चारों ओर फैल गई। आग की लपलपाती हुई लपटों ने गायों एवं ग्वालबालों को घेर लिया। बचने का और कोई उपाय न देखकर वे कृष्ण को पुकारने लगे। श्रीकृष्ण ने वहाँ पहुँचकर सखाओं को को आँख बन्द करने को कहा। श्रीकृष्ण ने पलभर में उस दावाग्नि का पान कर लिया। सखाओं ने आँख खोलते ही देखा कि सभी भाण्डीरवट की सुशीतल छाया में कृष्ण-बलदेव के साथ पूर्ववत भोजन क्रीड़ा-कौतुक में मग्न हैं, पास में गौएँ भी आराम से बैठी हुई जुगाली कर रही हैं। दावाग्नि की विपत्ति उन्हें स्वप्न की भाँति प्रतीत हुई। श्रीकृष्ण ने जहाँ दावाग्नि का पान किया था वह मुञ्जाटवी या ईषिकाटवी है, उसका वर्तमान नाम आगियारा है। वह यमुना के उस पार भाण्डीर गाँव में है। जहाँ कृष्ण सखाओं के साथ भोजन क्रीड़ा –कौतुक कर रहे थे, दावाग्नि-पान के पश्चात जहाँ पुन: सखा लोग भोजन क्रीड़ा-कौतुक करने लगे तथा गायों को सुख से जुगाली करते हुए देखा, वह यही लीला-स्थली भाण्डीरवट है। श्रीमद्भागवत में इस लीला का वर्णन है- |
− | तथेति मीलिताक्षेषु | + | तथेति मीलिताक्षेषु भगवानग्निमुल्बणम्। |
+ | |||
+ | पीत्वा मुखेन तान कृच्छाद् योगाधीशो व्यमोचयत्।। | ||
− | |||
==वेणुकूप== | ==वेणुकूप== | ||
− | भाण्डीरवट के पास ही वेणुकूप है। यहाँ श्रीकृष्ण ने अपने वेणु से एक कूप को प्रकट किया | + | [[चित्र:VENNU-KOOP3.jpg|thumb|वेणुकूप]] |
+ | भाण्डीरवट के पास ही वेणुकूप है। यहाँ श्रीकृष्ण ने अपने वेणु से एक कूप को प्रकट किया था।<br /> | ||
'''प्रसंग'''<br /> | '''प्रसंग'''<br /> | ||
− | + | वृकासुर(वृषासुर)का वध करने के पश्चात श्रीकृष्ण अपने बल की डींग हाँकते हुए भाण्डीरवट के पास गोपियों से मिले, किन्तु गोपियों ने श्रीकृष्ण के ऊपर गोवध का आरोप लगाकर स्पर्श करने से मना कर दिया। कृष्ण ने कहा कि मैंने गोवध नहीं किया, बल्कि बछड़े के रूप में एक असुर का वध किया है। किन्तु गोपियाँ कृष्ण के तर्क से सहमत नहीं हुई। तब कृष्ण ने उनसे पवित्र होने का उपाय पूछा। गोपियों ने कहा -'यदि तुम [[पृथ्वी]] के सारे तीर्थों में स्नान करोगे तब पवित्र होओगे, तभी हमें स्पर्श कर सकते हो।' गोपियों की बात सुनकर कृष्ण ने अपने वेणु से एक सुन्दर कूप का निर्माण कर उसमें पृथ्वी के सारे तीर्थों का आह्वान किया। फिर उस कूप के जल में स्नानकर गोपियों से मिले। यहाँ भाण्डीरवट के निकट ही यह वेणुकूप है। उसमें स्नान करने से सब तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है। आज भी [[ब्रज]] की महिलाएँ किसी विशेष योग में इस कूप का पूजन करती हैं तथा जिनको सन्तान उत्पन्न नहीं होती अथवा जिनकी सन्तानें अकाल मृत्यु को प्राप्त होती हैं, वे यहाँ मनौती करती हैं इस प्रकार उनकी मनोवाच्छा पूर्ण होती है। | |
− | + | ||
− | यहाँ भाण्डीरवट के निकट ही यह वेणुकूप | + | *मान्यता है कि [[सोमवती अमावस्या]] को स्नान किया जाता है। स्नान के बाद वस्त्र वहीं कूप के पास ही छोड़ (त्याग दिए) दिए जाते हैं। |
− | श्रीबलदेवजी का मन्दिर | + | |
− | छाहेरी गाँव | + | ==श्रीबलदेवजी का मन्दिर== |
− | + | श्रीबलभद्रजी, छोटे भैया कन्हैया और सखाओं को लेकर भाण्डीरवन में गोचारण के लिए आते थे। [[यमुना]] से पूर्व की ओर स्थित [[भद्रवन]], भाण्डीरवन, [[बेलवन]], [[गोकुल]]-[[महावन]], [[लोहवन]] आदि वनों में श्रीबलभद्रजी की प्रमुखता है। इसलिए इन सभी स्थानों में श्रीबलदेवजी के मन्दिर हैं। यहाँ भाण्डीरवट में भी इनका यह मन्दिर दर्शनीय है। | |
− | श्रीदामवट | + | ==छाहेरी गाँव== |
− | श्याम तलैया | + | भाण्डीरवट एवं वंशीवट के बीच में बसे हुए गाँव का नाम छाहेरी गाँव है। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ भाण्डीरवन में विविध प्रकार की क्रीड़ाओं के पश्चात पेड़ों की छाया में बैठकर नाना प्रकार की भोजन-सामग्री क्रीड़ा-कौतुक के साथ ग्रहण करते थे। इसे छाहेरी गाँव कहते हैं। छाया शब्द से छाहेरी नाम बना है। ग्राम का नामान्तर बिजौली भी है। भाण्डीरवट के पास ही बिजौली ग्राम है। |
+ | ==रासस्थली वंशीवट== | ||
+ | [[चित्र:BANSI-VAT3.jpg|thumb|वंशीवट]] | ||
+ | भाण्डीरवट से थोड़ी दूर समीप ही श्रीकृष्ण की रासस्थली वंशीवट है। यह [[वृन्दावन]] वाले वंशीवट से पृथक् है। श्रीकृष्ण इधर गोचारण करते समय इसी वटवृक्ष के ऊपर चढ़कर अपनी वंशी में गायों का नाम पुकार कर उन्हें एकत्र करते और उन सबको एकसाथ लेकर अपने गोष्ठ में लौटते। कभी-कभी सुहावनी रात्रिकाल में यहीं से प्रियतमा गोपियों के नाम राधिके ! ललिते ! विशाखे ! पुकारते। इन सखियों के आने पर इस वंशीवट के नीचे रासलीलाएँ सम्पन्न होतीं थीं। | ||
+ | ==श्रीदामवट== | ||
+ | इसी वंशीवट के नीचे श्रीदाम भैया का दर्शन है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर विरह में अनुतप्त होकर श्रीदाम सखा इस निर्जन वंशीवट पर चले आये। वे श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओं का स्मरण कर बड़े दुखी रहते थे। बहुत दिनों के बाद दन्तवक्र को बांधकर जब श्रीकृष्ण गोकुल में लौटे, तब इनसे मिले और इनको अपने साथ ले आये। श्रीदाम का मन्दिर यहाँ दर्शनीय है। | ||
+ | ==श्याम तलैया== | ||
+ | वंशीवट के पास ही श्याम तलैया है। रास के समय गोपियों को प्यास लगने पर श्रीश्यामसुन्दर ने अपनी वंशी से इस तलैया को प्रकटकर उसके सुस्वादु जल से उन सबको तृप्त किया था। यहाँ थोड़ा सा जल है। लोग श्रद्धा से यहाँ आचमन करते हैं। | ||
+ | *भांडीरवन में श्याम -तलैया और वेणुकूप का जीर्णोद्धार हो चुका है। | ||
+ | ==चित्र वीथिका== | ||
+ | <gallery> | ||
+ | चित्र:BANGALI-BABA-GUFAA1.jpg|बंगाली बाबा गुफ़ा | ||
+ | चित्र:BANGALI-BABA-GUFAA2.jpg|बंगाली बाबा गुफ़ा | ||
+ | चित्र:BANSI-VAT-GATE.jpg|वंशीवट | ||
+ | चित्र:VENNU-KOOP1.jpg|वेणुकूप | ||
+ | चित्र:VENNU-KOOP2.jpg|वेणुकूप | ||
+ | चित्र:SHREE-DAMA-MANDIR.jpg|श्रीदाम मंदिर | ||
+ | </gallery> | ||
+ | |||
+ | ==सम्बंधित लिंक== | ||
+ | {{ब्रज}} | ||
+ | [[en:Bhandirvan]] | ||
+ | [[Category:ब्रज के वन]] | ||
+ | [[Category:धार्मिक स्थल]] | ||
+ | [[Category:कोश]] | ||
+ | [[Category:दर्शनीय-स्थल कोश]] | ||
+ | __INDEX__ |
१२:५९, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
भांडीरवन / Bhandirvan
भांडीरवन मथुरा - माँट मार्ग पर स्थित हैं। भांडीरवन श्रीकृष्ण की विविध प्रकार की मधुर लीलाओं की स्थली है। बारह वनों से यह एक प्रमुख वन हैं। यहाँ भाण्डीरवट, वेणुकूप, रासस्थली, वंशीवट, मल्लक्रीड़ा स्थान, श्रीदासमजी का मन्दिर, श्याम तलैया, छायेरी गाँव और आगियारा गाँव आदि लीला स्थलियाँ दर्शनीय हैं। जहाँ सब प्रकार के तत्त्वज्ञान तथा ऐश्वर्य-माधुर्यपूर्ण लीला-माधुरियों का सम्पूर्ण रूप से प्रकाश हो, उसे भाण्डीरवन कहते हैं।
- श्रीकृष्णलीला-स्थलों का वर्णन किया जा रहा है-
भाण्डीरवट
भाण्डीरवन के अन्तर्गत भाण्डीरवट एक प्रसिद्ध लीलास्थली है। यहाँ श्रीराधाकृष्ण युगल की विविध लीलाएँ सम्पन्न होती हैं। श्रीकृष्ण की प्रकट-लीला के समय यहाँ पर एक बहुत बृहत वट का वृक्ष था उसकी अनेकों लम्बी शाखाएँ ऊपर-नीचे चारों ओर बहुत दूर-दूर तक फैली हुई थीं। पास में ही श्रीयमुना मधुरा किल्लोल करती हुई वक्रगति से प्रवाहित हो रही थीं, जिस पर श्रीकृष्ण- बलदेव सखाओं के साथ विविध-प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हुए डालियों के ऊपर-ही-ऊपर श्रीयमुना को पार कर जाते थे। इसकी विस्तृत शाखाओं पर शुक-सारी, मयूर-मयूरी, कोयलें, पपीहे सदा सर्वदा चहकते रहते थे तथा इसके फलों के तृप्त रहते थे। इसकी स्निग्ध एवं सुशीतल छाया में हिरण-हिरणियाँ तथा वन के अन्य प्राणी यमुना का मधुर जलपान कर विश्राम करते थे। श्रीमती यशोदा आदि ग्वालबालों की माताएँ अपने-अपने पुत्रों के लिए दोपहर का 'छाक' गोपों के माध्यम से अधिकांश इसी निर्दिष्ट भाण्डीरवट पर भेज दिया करती थीं। श्रीकृष्ण-बलदेव सखाओं के साथ गोचारण करते हुए यमुना में गायों को जलपान कराकर निकट की हरी-भरी घासों से पूर्ण वन में चरने के लिए छोड़ देते। वे स्वयं यमुना के शीतल जल में स्नान एवं जलक्रीड़ा कर इस वट की सुशीतल छाया में बैठकर माताओं के द्वारा प्रेरित विविध प्रकार के सुस्वादु अन्न व्यंजन का सेवन करते थे। श्रीकृष्ण सबके मध्य में बैठते। सखा लोग चारों ओर से घेर कर हज़ारों पंक्तियों में अगल-बगल एवं आगे-पीछे बैठ जाते। ये सभी सखा पीछे या दूर रहने पर भी अपने को श्रीकृष्ण के सबसे निकट सामने देखते थे। ये परस्पर सबको हँसते-हँसाते हुए विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हुए भोजन सम्पन्न करते थे। आकाश से ब्रह्मा आदि देवगण उनके भोजन क्रीड़ा-कौतुक देखकर आश्चर्यचकित हो जाते थे। इसी वट वृक्ष के नीचे श्रीराधाकृष्ण युगल का ब्रह्माजी द्वारा गान्धर्व विवाह सम्पन्न हुआ था।
प्रसंग
गर्गसंहिता एवं गीतगोविन्द के अनुसार एक समय नन्दबाबा श्रीकृष्ण को लेकर गोचारण हेतु भाण्डीरवन में पधारे। सघन तमाल, कदम्ब वृक्षों और हरी-भरी लताओं से आच्छादित यह वन बड़ा ही रमणीय सघन वन होने के कारण इसमें सूर्य की रश्मियाँ भी बहुत ही कम प्रवेश करती थीं। सहसा चारों ओर काले-काले मेघ घिर आये तथा प्रचण्ड आँधी के साथ कुछ-कुछ वर्षा भी प्रारम्भ हो गई। चारों तरफ अंधकार हो गया। नन्दबाबा दुर्योग देखकर भयभीत हो उठे। उन्होंने कन्हैया को अपने अकं में सावधानी से छिपा लिया। इसी समय वहाँ नख से शिख तक श्रृंगार धारण की हुई अपूर्व सुन्दरी वृषभानु कुमारी श्रीराधिकाजी उपस्थित हुई। उन्होंने नन्दबाबा के आगे अपने दोनों होथों को पसार दिया , मानों कृष्ण को अपनी गोद में लेना चाहती हो। नन्दबाबा को बहुत ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने कृष्ण को उनके हाथों मं समर्पित कर दिया। श्रीमती राधिका कृष्ण को लेकर भाण्डीरवन के अन्तर्गत इसी भाण्डीरवट की छाया में ले गई। वहाँ पहुँचते ही श्रीकृष्ण मन्मथ-मन्मथ किशोर के रूप में प्रकट हो गये। इतने में ललिता, विशाखा आदि सखियाँ तथा चतुर्मुख ब्रह्मा भी वहाँ उपस्थित हुए दोनों की अभिलाषा जानकर ब्रह्माजी ने वेद मन्त्रों के द्वारा किशोर-किशोरी का गान्धर्व विवाह सम्पन्न कराया श्रीमती राधिका और श्रीकृष्ण ने परस्पर एक दूसरे को सुन्दर फूलों के हार अर्पण किये। सखियों ने प्रसन्नतापूर्वक विवाहकालीन गीत गाये और देवताओं ने आकाश से पुष्पों की वृष्टि की। देखते-देखते कुछ क्षणों के पश्चात ब्रह्माजी चले गये। सखियाँ भी अन्तर्धान हो गईं और कृष्ण ने पुन: बालक का रूप धारण कर लिया। श्रीमती राधिका ने कृष्ण को पूर्ववत उठाकर प्रतीक्षा में खड़े नन्दबाबा की गोदी में सौंप दिया। इतने में बादल छट गये। आँधी भी शान्त हो गई। नन्दबाबा कृष्ण को लेकर अपने नन्द ब्रज में लौट आये।
दूसरा प्रसंग
एक समय गर्मी के दिनों में सखाओं के साथ श्रीकृष्ण गायों को यमुना में जलपान कराकर उन्हें चरने के लिए छोड़ दिया तथा वे मण्डलीबद्ध होकर भोजन क्रीड़ा-कौतुक में इतने मग्न हो गये कि उन्हें यह पता नहीं चला कि गायें उन्हें छोड़कर बहुत दूर निकल गई हैं। चारों ओर सूखे हुए मुञ्जावन, जिसमें हाथी भी मार्ग न पा सके, जेठ की चिलचिलाती हुई धूप, नीचे तप्त बालुका, दूर तक कहीं भी छाया नहीं, गायें उस वीहड़ मुञ्जवन से निकलने का मार्ग भूल गई, प्यास के मारे उनकी छाती फटने लगी। इधर सखा लोग भी कृष्ण-बलदेव को सूचित किये बिना ही गायों को खोजते हुए उसी मुञ्जवन में पहुँचे। इनकी भी गायों जैसी विकट अवस्था हो गई इतने में दुष्ट कंस के अनुचरों ने मुञ्जवन में आग लगा दी। आग हवा के साथ क्षणभर में चारों ओर फैल गई। आग की लपलपाती हुई लपटों ने गायों एवं ग्वालबालों को घेर लिया। बचने का और कोई उपाय न देखकर वे कृष्ण को पुकारने लगे। श्रीकृष्ण ने वहाँ पहुँचकर सखाओं को को आँख बन्द करने को कहा। श्रीकृष्ण ने पलभर में उस दावाग्नि का पान कर लिया। सखाओं ने आँख खोलते ही देखा कि सभी भाण्डीरवट की सुशीतल छाया में कृष्ण-बलदेव के साथ पूर्ववत भोजन क्रीड़ा-कौतुक में मग्न हैं, पास में गौएँ भी आराम से बैठी हुई जुगाली कर रही हैं। दावाग्नि की विपत्ति उन्हें स्वप्न की भाँति प्रतीत हुई। श्रीकृष्ण ने जहाँ दावाग्नि का पान किया था वह मुञ्जाटवी या ईषिकाटवी है, उसका वर्तमान नाम आगियारा है। वह यमुना के उस पार भाण्डीर गाँव में है। जहाँ कृष्ण सखाओं के साथ भोजन क्रीड़ा –कौतुक कर रहे थे, दावाग्नि-पान के पश्चात जहाँ पुन: सखा लोग भोजन क्रीड़ा-कौतुक करने लगे तथा गायों को सुख से जुगाली करते हुए देखा, वह यही लीला-स्थली भाण्डीरवट है। श्रीमद्भागवत में इस लीला का वर्णन है-
तथेति मीलिताक्षेषु भगवानग्निमुल्बणम्।
पीत्वा मुखेन तान कृच्छाद् योगाधीशो व्यमोचयत्।।
वेणुकूप
भाण्डीरवट के पास ही वेणुकूप है। यहाँ श्रीकृष्ण ने अपने वेणु से एक कूप को प्रकट किया था।
प्रसंग
वृकासुर(वृषासुर)का वध करने के पश्चात श्रीकृष्ण अपने बल की डींग हाँकते हुए भाण्डीरवट के पास गोपियों से मिले, किन्तु गोपियों ने श्रीकृष्ण के ऊपर गोवध का आरोप लगाकर स्पर्श करने से मना कर दिया। कृष्ण ने कहा कि मैंने गोवध नहीं किया, बल्कि बछड़े के रूप में एक असुर का वध किया है। किन्तु गोपियाँ कृष्ण के तर्क से सहमत नहीं हुई। तब कृष्ण ने उनसे पवित्र होने का उपाय पूछा। गोपियों ने कहा -'यदि तुम पृथ्वी के सारे तीर्थों में स्नान करोगे तब पवित्र होओगे, तभी हमें स्पर्श कर सकते हो।' गोपियों की बात सुनकर कृष्ण ने अपने वेणु से एक सुन्दर कूप का निर्माण कर उसमें पृथ्वी के सारे तीर्थों का आह्वान किया। फिर उस कूप के जल में स्नानकर गोपियों से मिले। यहाँ भाण्डीरवट के निकट ही यह वेणुकूप है। उसमें स्नान करने से सब तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है। आज भी ब्रज की महिलाएँ किसी विशेष योग में इस कूप का पूजन करती हैं तथा जिनको सन्तान उत्पन्न नहीं होती अथवा जिनकी सन्तानें अकाल मृत्यु को प्राप्त होती हैं, वे यहाँ मनौती करती हैं इस प्रकार उनकी मनोवाच्छा पूर्ण होती है।
- मान्यता है कि सोमवती अमावस्या को स्नान किया जाता है। स्नान के बाद वस्त्र वहीं कूप के पास ही छोड़ (त्याग दिए) दिए जाते हैं।
श्रीबलदेवजी का मन्दिर
श्रीबलभद्रजी, छोटे भैया कन्हैया और सखाओं को लेकर भाण्डीरवन में गोचारण के लिए आते थे। यमुना से पूर्व की ओर स्थित भद्रवन, भाण्डीरवन, बेलवन, गोकुल-महावन, लोहवन आदि वनों में श्रीबलभद्रजी की प्रमुखता है। इसलिए इन सभी स्थानों में श्रीबलदेवजी के मन्दिर हैं। यहाँ भाण्डीरवट में भी इनका यह मन्दिर दर्शनीय है।
छाहेरी गाँव
भाण्डीरवट एवं वंशीवट के बीच में बसे हुए गाँव का नाम छाहेरी गाँव है। श्रीकृष्ण सखाओं के साथ भाण्डीरवन में विविध प्रकार की क्रीड़ाओं के पश्चात पेड़ों की छाया में बैठकर नाना प्रकार की भोजन-सामग्री क्रीड़ा-कौतुक के साथ ग्रहण करते थे। इसे छाहेरी गाँव कहते हैं। छाया शब्द से छाहेरी नाम बना है। ग्राम का नामान्तर बिजौली भी है। भाण्डीरवट के पास ही बिजौली ग्राम है।
रासस्थली वंशीवट
भाण्डीरवट से थोड़ी दूर समीप ही श्रीकृष्ण की रासस्थली वंशीवट है। यह वृन्दावन वाले वंशीवट से पृथक् है। श्रीकृष्ण इधर गोचारण करते समय इसी वटवृक्ष के ऊपर चढ़कर अपनी वंशी में गायों का नाम पुकार कर उन्हें एकत्र करते और उन सबको एकसाथ लेकर अपने गोष्ठ में लौटते। कभी-कभी सुहावनी रात्रिकाल में यहीं से प्रियतमा गोपियों के नाम राधिके ! ललिते ! विशाखे ! पुकारते। इन सखियों के आने पर इस वंशीवट के नीचे रासलीलाएँ सम्पन्न होतीं थीं।
श्रीदामवट
इसी वंशीवट के नीचे श्रीदाम भैया का दर्शन है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर विरह में अनुतप्त होकर श्रीदाम सखा इस निर्जन वंशीवट पर चले आये। वे श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओं का स्मरण कर बड़े दुखी रहते थे। बहुत दिनों के बाद दन्तवक्र को बांधकर जब श्रीकृष्ण गोकुल में लौटे, तब इनसे मिले और इनको अपने साथ ले आये। श्रीदाम का मन्दिर यहाँ दर्शनीय है।
श्याम तलैया
वंशीवट के पास ही श्याम तलैया है। रास के समय गोपियों को प्यास लगने पर श्रीश्यामसुन्दर ने अपनी वंशी से इस तलैया को प्रकटकर उसके सुस्वादु जल से उन सबको तृप्त किया था। यहाँ थोड़ा सा जल है। लोग श्रद्धा से यहाँ आचमन करते हैं।
- भांडीरवन में श्याम -तलैया और वेणुकूप का जीर्णोद्धार हो चुका है।
चित्र वीथिका
सम्बंधित लिंक
|