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− | लोहवन कृष्णेर अद्भुत- | + | लोहवन कृष्णेर अद्भुत-गोचारण।। |
− | नानापुष्प सुगन्धे व्यापित | + | नानापुष्प सुगन्धे व्यापित रम्यस्थान। |
एथा लोहजंघासुरे बधे भगवान् | एथा लोहजंघासुरे बधे भगवान् | ||
− | लोहजंघवन नाम हयत | + | लोहजंघवन नाम हयत इहार। (भक्तिरत्नाकर) |
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− | यहाँ पास ही यमुना के घाट पर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ नौकाविहार किया | + | यहाँ पास ही यमुना के घाट पर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ नौकाविहार किया था। भक्तिरत्नाकर ग्रन्थ में इसका सुन्दर एवं सरस वर्णन है- |
− | यमुना-निकटे याइ श्रीनिवासे | + | यमुना-निकटे याइ श्रीनिवासे कय। |
− | एई घाटे कृष्ण नौका-क्रीड़ा | + | एई घाटे कृष्ण नौका-क्रीड़ा आरम्भय।। |
− | से अति कौतुक राई सखीर | + | से अति कौतुक राई सखीर सहिते। |
− | दुग्धादि लईया आईसेन पार | + | दुग्धादि लईया आईसेन पार हैते।। |
− | देखि, से अपूर्व शोभा कृष्ण मुग्ध | + | देखि, से अपूर्व शोभा कृष्ण मुग्ध हईया। |
− | एक भिते रहिलेन जीर्ण नौका | + | एक भिते रहिलेन जीर्ण नौका लईया।। |
− | श्रीराधिका सखीसह कहे बारे- | + | श्रीराधिका सखीसह कहे बारे-बारे। |
− | 'पार कर नाविक-याईब शीघ्र | + | 'पार कर नाविक-याईब शीघ्र पारे।। |
− | लोहवन नाना प्रकार के पुष्पों से सुशोभित एक रमणीय स्थान है। पास में ही पुण्यतोया यमुनाजी प्रवाहित होती हैं, जिसमें कृष्ण [[गोपी|गोपियों]] के साथ नौकाविहार की लीला करते हैं। वे नाविक बनकर गोप-रमणियों को अपनी नौका में बिठाकर बीच प्रवाह में कहते मेरी नौका पुरानी और जीर्ण-शीर्ण है, इसमें पानी भर रहा है। तुम लोग अपने दूध, दही के बर्तनों को यमुना में फेंक दो अन्यथा मेरी नौका डूब जाएगी। गोपियाँ इस नाविक को जल्दी से पार करने के लिए पुन:-पुन: प्रार्थना करतीं। इस लीला को अपने हृदय में संजोए हुए यह लीलास्थली आज भी विराजमान है। यहाँ कृष्णकुण्ड, लोहासुर की | + | लोहवन नाना प्रकार के पुष्पों से सुशोभित एक रमणीय स्थान है। पास में ही पुण्यतोया यमुनाजी प्रवाहित होती हैं, जिसमें कृष्ण [[गोपी|गोपियों]] के साथ नौकाविहार की लीला करते हैं। वे नाविक बनकर गोप-रमणियों को अपनी नौका में बिठाकर बीच प्रवाह में कहते मेरी नौका पुरानी और जीर्ण-शीर्ण है, इसमें पानी भर रहा है। तुम लोग अपने दूध, दही के बर्तनों को यमुना में फेंक दो अन्यथा मेरी नौका डूब जाएगी। गोपियाँ इस नाविक को जल्दी से पार करने के लिए पुन:-पुन: प्रार्थना करतीं। इस लीला को अपने हृदय में संजोए हुए यह लीलास्थली आज भी विराजमान है। यहाँ कृष्णकुण्ड, लोहासुर की गुफ़ा तथा श्रीगोपीनाथजी का दर्शन है। |
==आयोरे ग्राम== | ==आयोरे ग्राम== | ||
− | लोहवन के पास ही आयोरे ग्राम | + | लोहवन के पास ही आयोरे ग्राम है। इसका वर्तमान नाम अलीपुर है। जिस समय कृष्ण ने दन्तवक्र का वधकर यमुना पार कर गोकुल में पिता-माता सखा एवं गोप-गोपियों से मिलने के लिए गोकुल में जा रहे थे, उस समय ब्रजवासी लोग बड़े प्रेम से 'आयोरे-आयोरे कन्हैया' सम्बोधन कर यहीं पर उनसे मिले थे। भक्तिरत्नाकर में इस स्थान के सम्बन्ध में लिखा है- |
− | कृष्ण देखि धाय गोप आनन्दे | + | कृष्ण देखि धाय गोप आनन्दे विह्वल। |
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१३:०३, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
लौहवन / लौहजंघवन / Lohjanghvan
यह स्थान मथुरा से यमुना पार होकर मथुरा-गोकुल मार्ग 2 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है। नाना प्रकार के वृक्षों और पुष्पों से सुशोभित यह वन कृष्ण की गोचारण स्थली है। श्रीकृष्ण ने यहीं पर गोचारण करते समय लोहजंघासुर का वध किया था। इसलिए इस वन का नाम लौहजंघवन या लोहवन है।
लोहवन कृष्णेर अद्भुत-गोचारण।।
नानापुष्प सुगन्धे व्यापित रम्यस्थान।
एथा लोहजंघासुरे बधे भगवान्
लोहजंघवन नाम हयत इहार। (भक्तिरत्नाकर)
यहाँ पास ही यमुना के घाट पर श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ नौकाविहार किया था। भक्तिरत्नाकर ग्रन्थ में इसका सुन्दर एवं सरस वर्णन है-
यमुना-निकटे याइ श्रीनिवासे कय।
एई घाटे कृष्ण नौका-क्रीड़ा आरम्भय।।
से अति कौतुक राई सखीर सहिते।
दुग्धादि लईया आईसेन पार हैते।।
देखि, से अपूर्व शोभा कृष्ण मुग्ध हईया।
एक भिते रहिलेन जीर्ण नौका लईया।।
श्रीराधिका सखीसह कहे बारे-बारे।
'पार कर नाविक-याईब शीघ्र पारे।।
लोहवन नाना प्रकार के पुष्पों से सुशोभित एक रमणीय स्थान है। पास में ही पुण्यतोया यमुनाजी प्रवाहित होती हैं, जिसमें कृष्ण गोपियों के साथ नौकाविहार की लीला करते हैं। वे नाविक बनकर गोप-रमणियों को अपनी नौका में बिठाकर बीच प्रवाह में कहते मेरी नौका पुरानी और जीर्ण-शीर्ण है, इसमें पानी भर रहा है। तुम लोग अपने दूध, दही के बर्तनों को यमुना में फेंक दो अन्यथा मेरी नौका डूब जाएगी। गोपियाँ इस नाविक को जल्दी से पार करने के लिए पुन:-पुन: प्रार्थना करतीं। इस लीला को अपने हृदय में संजोए हुए यह लीलास्थली आज भी विराजमान है। यहाँ कृष्णकुण्ड, लोहासुर की गुफ़ा तथा श्रीगोपीनाथजी का दर्शन है।
आयोरे ग्राम
लोहवन के पास ही आयोरे ग्राम है। इसका वर्तमान नाम अलीपुर है। जिस समय कृष्ण ने दन्तवक्र का वधकर यमुना पार कर गोकुल में पिता-माता सखा एवं गोप-गोपियों से मिलने के लिए गोकुल में जा रहे थे, उस समय ब्रजवासी लोग बड़े प्रेम से 'आयोरे-आयोरे कन्हैया' सम्बोधन कर यहीं पर उनसे मिले थे। भक्तिरत्नाकर में इस स्थान के सम्बन्ध में लिखा है- कृष्ण देखि धाय गोप आनन्दे विह्वल।
'आयोरे आयोरे' बलि करे कोलाहल।।
मिलिया सबारे कृष्ण, कृष्ण सबे लइया।
निजालये आइला यमुनापार हईया।।
हइला परमानन्द ब्रजे घरे-घरे।
पूर्वमत सबा-सह श्रीकृष्ण विहरे।।
'आयोरे' बलिया गोप येखाने मिलित।
आयोरे नामेते ग्राम तथाय हईल।।
गोराई या गौरवाईगाँव
आयोरे ग्राम के निकट ही गोराई ग्राम अवस्थित है। नन्द आदि गोपियों ने कुरुक्षेत्र से लौटकर कुछ दिनों के लिए यहाँ रूके थे।
सम्बंधित लिंक
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