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+ | '''कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम् ।'''<br/> | ||
+ | '''अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ।।2।।''' | ||
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− | ''' | + | '''श्रीभगवान् बोले-''' |
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− | + | हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। | |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है ।।2।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | ''' | + | '''Sri Krishna said:''' |
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− | + | Arjuna, how has this infatuation overtaken you at this odd hour ? It is shunned by noble souls; neither will it bring heaven, nor fame, to you. (2) | |
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− | + | त्वा = तुमको (इस) ; विषमे = विषमस्थलमें ; इदम् = यह ; कश्मलम् = अज्ञान ; कुत: = किस हेतुसे ; समुपस्थितम् = प्राप्त हुआ ; (यत:) = क्योंकि (यह) ; अनार्यजुष्टम् = न तो श्रेष्ट पुरुषोंसे आचरण किया गया है ; अखग्यरर्म = न स्वर्गको देनेवाला है ; अकीर्तिकरम् = न कीर्ति कों करने वाला है ; | |
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+ | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 2:1|<= पीछे Prev]] | [[गीता 2:3|आगे Next =>]]'''</div> | ||
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१२:३३, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-2 / Gita Chapter-2 Verse-2
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