"गीता 8:11" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | पाँचवें श्लोक में | + | पाँचवें श्लोक में भगवान् का चिन्तन करते –करते मरने वाले साधारण मनुष्य की गति का संक्षेप में वर्णन किया गया, फिर आठवें से दसवें श्लोक तक भगवान् के 'अधियज्ञ' नामक सगुण निराकार दिव्य अव्यक्त स्वरूप का चिन्तन करने वाले योगियों की अन्तकालीन गति के संबंध में बतलाया, अब ग्यारवें से तेरहवें श्लोक तक परम अक्षर निर्गुण परब्रह्म की उपासना करने वाले योगियों की अन्तकालीन गति का वर्णन करने के लिये पहले उस अक्षर ब्रह्म की प्रशंसा करके उसे बतलाने की प्रतिज्ञा करते हैं- |
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− | '''यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागा: ।'''<br/> | + | '''यदक्षरं वेदविदो वदन्ति'''<br/> |
− | '''यदिच्छन्तो ब्रह्राचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ।।11।।''' | + | '''विशन्ति यद्यतयो वीतरागा: ।'''<br/> |
+ | '''यदिच्छन्तो ब्रह्राचर्यं चरन्ति'''<br/> | ||
+ | '''तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ।।11।।''' | ||
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− | + | <balloon link="index.php?title=वेद " title="वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई ।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">वेद</balloon> के जानने वाले विद्वान् जिस सच्चिदानन्दघन रूप परमपद को अविनाशी कहते हैं, आसक्ति रहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन जिसमें प्रवेश करते हे। और जिस परमपद को चाहने वाले ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं, उस परम पद को मैं तेरे लिये संक्षेप से कहूँगा ।।11।। | |
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१२:४९, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-8 श्लोक-11 / Gita Chapter-8 Verse-11
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