"गीता 3:34" के अवतरणों में अंतर
छो (Text replace - '{{menu}}<br />' to '{{menu}}') |
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>') |
||
(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ३ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति २३: | पंक्ति २३: | ||
|- | |- | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं, मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिये ,क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विघ्न करने वाले | + | इन्द्रिय-इन्द्रिय के अर्थ में अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय के विषय में राग और द्वेष छिपे हुए स्थित हैं, मनुष्य को उन दोनों के वश में नहीं होना चाहिये ,क्योंकि वे दोनों ही इसके कल्याण मार्ग में विघ्न करने वाले महान शत्रु हैं ।।34।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
पंक्ति ३३: | पंक्ति ३३: | ||
|- | |- | ||
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | ||
− | इन्द्रियस्य = इन्द्रिय के; अर्थे = अर्थ में; अर्थात् सभी इन्द्रियों के भोगों में; व्यवस्थितौ = स्थित (जो); रागद्वेषौ = राग और द्वेष हैं; तयो: = उन दोनों के; वशम् = वश में; न = नहीं; आगच्छेत् = होवे; हि; = क्योंकि; अस्य = इसके; तौ = वे दोनों (ही); परिपन्थिनौ = कल्याण मार्ग में विन्ध्र करने वाले | + | इन्द्रियस्य = इन्द्रिय के; अर्थे = अर्थ में; अर्थात् सभी इन्द्रियों के भोगों में; व्यवस्थितौ = स्थित (जो); रागद्वेषौ = राग और द्वेष हैं; तयो: = उन दोनों के; वशम् = वश में; न = नहीं; आगच्छेत् = होवे; हि; = क्योंकि; अस्य = इसके; तौ = वे दोनों (ही); परिपन्थिनौ = कल्याण मार्ग में विन्ध्र करने वाले महान शत्रु हैं; |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ५३: | पंक्ति ५३: | ||
<td> | <td> | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{गीता2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{महाभारत}} | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
</table> | </table> | ||
− | [[ | + | [[Category:गीता]] |
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:३६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-3 श्लोक-34 / Gita Chapter-3 Verse-34
|
||||||||
|
||||||||
|
||||||||
<sidebar>
__NORICHEDITOR__
</sidebar> |
||||||||
|
||||||||