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०६:२५, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-7 श्लोक-7 / Gita Chapter-7 Verse-7
प्रसंग-
सूत और सूत के मणियों के दृष्टान्त से भगवान् ने अपनी सर्वरूपता और सर्वव्यापकता सिद्ध की । अब भगवान् अगले चार श्लोकों द्वारा इसी को भलीभाँति स्पष्ट करने के लिये उन प्रधान-प्रधान सभी वस्तुओं के नाम लेते हैं, जिनसे इस विश्व की स्थिति है; और साररूप से उन सभी को अपने से ही ओतप्रोत बतलाते हैं-
मत्त: परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनंजय ।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव ।।7।।
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हे धनञ्जय ! मुझसे भित्र दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है । यह सम्पूर्ण जगत् सूत्र में सूत्र के मणियों के सदृश मेरे में गुँथा हुआ है ।।7।।
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There is nothing else besides me, arjuna. Like clusters of yarn-beads by knots on a thread, all this is threaded on me.(7)
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धनंजय = हे धनंजय; मत्त: = मेरे से; परतरम् = सिवाय; किंचित् = किंचित् मात्र भी; अन्यत् = दूसरी वस्तु; अस्ति = है; इदम् = यह;सर्वम् = संपूर्ण (जगत्); सूत्रे = सूत्र में; मणिगणा: = (सूत्र के) मणियों के; इव = सदृश; मयि = मेरे में; प्रोतम् = गुंथा हुआ है;
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