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१०:२६, ५ जनवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-9 श्लोक-12 / Gita Chapter-9 Verse-12
मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस: ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता: ।।12।।
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वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्त चित्त अज्ञानीजन राक्षसी, असुरी और मोहिनी स्वभाव को ही धारण किये रहते हैं ।।12।।
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Those bewildered persons with vain hopes, futile actions and fruitless knowledge have embraced a fiendish, demoniacal and delusive nature. (12)
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मोघाशा: = वृथा आशा ; मोघकर्माण: = वृथा कर्म (और) ; मोघज्ञाना: = वृथा ज्ञान वाले ; विचेतस: = अज्ञानीजन ; राक्षसीम् = राक्षसों के ; च = और ; आसुरीम् = असुरों के (जैसे) ; मोहिनीम् = मोहित करने वाले (तामसी) ; प्रकृतिम् = स्वभाव को ; एव = ही ; श्रिता: = धारण किये हुए हैं ;
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