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निषाद बालक एकलव्य जो कि अद्भुत धर्नुधर बन गया था । वह [[द्रोणाचार्य]] को अपना इष्ट गुरु मानता था और उनकी मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास कर धर्नुविद्या में पारंगत हो गया था [[अर्जुन]] के समकक्ष कोई ना हो जाए इस कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया । एकलव्य ने हँसते हँसते अँगूठा दे दिया । | निषाद बालक एकलव्य जो कि अद्भुत धर्नुधर बन गया था । वह [[द्रोणाचार्य]] को अपना इष्ट गुरु मानता था और उनकी मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास कर धर्नुविद्या में पारंगत हो गया था [[अर्जुन]] के समकक्ष कोई ना हो जाए इस कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया । एकलव्य ने हँसते हँसते अँगूठा दे दिया । | ||
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०८:१८, २३ सितम्बर २००९ का अवतरण
एकलव्य /Eklavya
निषाद बालक एकलव्य जो कि अद्भुत धर्नुधर बन गया था । वह द्रोणाचार्य को अपना इष्ट गुरु मानता था और उनकी मूर्ति बनाकर उसके सामने अभ्यास कर धर्नुविद्या में पारंगत हो गया था अर्जुन के समकक्ष कोई ना हो जाए इस कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा के रूप में दाहिने हाथ का अँगूठा माँग लिया । एकलव्य ने हँसते हँसते अँगूठा दे दिया ।