"गीता 2:5" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> <table class="gita" width="100%" align="left"> <tr> <td> ==गीता अध्याय-2 श्लोक-5 / Gita Chapter-2 Verse-5== {| width="80%" a...) |
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इस प्रकार अपना निश्चय प्रकट कर देने पर भी जब अर्जुन को सन्तोष नहीं हुआ और अपने निश्चय में शंका उत्पत्र हो गयी, तब वे फिर कहने लगे- | इस प्रकार अपना निश्चय प्रकट कर देने पर भी जब अर्जुन को सन्तोष नहीं हुआ और अपने निश्चय में शंका उत्पत्र हो गयी, तब वे फिर कहने लगे- | ||
− | ''''गुरूनहत्वा हि महानुभावाज्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके । | + | ''''गुरूनहत्वा हि महानुभावाज्छ्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके ।'''' |
− | हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुज्जीय भोगान् रूधिरप्रदिग्धान् ।।5।।'''' | + | ''''हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुज्जीय भोगान् रूधिरप्रदिग्धान् ।।5।।'''' |
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१०:१३, ७ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-5 / Gita Chapter-2 Verse-5
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अध्याय दो श्लोक संख्या Verses- Chapter-2 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 |
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