"गीता 11:35" के अवतरणों में अंतर

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==गीता अध्याय-11  श्लोक-36 / Gita Chapter-11 Verse-36==  
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'''प्रसंग-'''
 
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अब छत्तीसवें से छियालीसवें श्लोक तक [[अर्जुन]] द्वारा किये हुए भगवान् के स्तवन, और क्षमा याचनासहित प्रार्थना कर वर्णन है, उसमें प्रथम 'स्थाने' पद का प्रयोग करके जगत् के हर्षित होने आदि का औचित्य बतलाते हैं-
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इस प्रकार भगवान् के मुख से सब बातें सुनने के बाद [[अर्जुन]] की कैसी परिस्थिति हुई और उन्होंने क्या किया- इस जिज्ञासा पर [[संजय]] कहते हैं-
  
'''अर्जुन उवाच-'''  
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'''सञ्जय उवाच'''  
 
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'''स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।'''<br/>
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'''एतच्छुत्वा वचनं कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी ।'''<br/>
'''रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा: ।।36।।'''
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'''नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य ।।35।।'''
 
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'''अर्जुन बोले-'''
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'''संजय बोले-'''
 
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हे अन्तर्यामिन् ! यह योग्य ही है कि आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत् अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्धगणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं ।।36।।
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केशव भगवान् के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी [[अर्जुन]] हाथ जोड़कर काँपता हुआ नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति गद्गद वाणी से बोला- ।।35।।
  
 
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'''arjuna said-'''
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'''Sanjaya said-'''
 
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Lord, well it is the universe exults and is filled with love by chanting your names, virtues and glory ; terrified raksasas are fleeing in all direactions, and the hosts of siddhas are bowing to you. (36)
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Hearing these words of Bhagavan kesava, arjuna tremblingly bowed to him with joined palms, and bowing again in extreme terror spoke to sri krsna in faltering accents. (35)
 
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हृषीकेश = हे अन्तर्यामिन्; स्थाने = यह योग्यही है(कि); (यत् ) = जो; प्रकीर्त्या = नाम और प्रभाव के कीर्तन से; प्रहृष्यति = अति हर्षित होता है; = और; अनुरज्यते = अनुरागकोभी प्राप्त होता है(तथा); भीतानि = भयभीत हुए; दिश: = दिशाओं में; द्रवन्ति = भागते हैं; सर्वें = सब; सिद्धसंघा: = सिद्धगणोंके समुदाय;  नमस्यन्ति= नमस्कार करते हैं
+
केशवस्य = केशव भगवान् के; एतत् = इस; वचनम् = वचनको; श्रृत्वा = सुनकर; किरीटी = मुकुटधारी अर्जुन; कृताज्जलि: = नमस्कार करके; भूय: = फिर; एव = भी; प्रणम्य = प्रणाम करके; कृष्णम् = भगवान्  श्रीकृष्णके प्रति; सगद्रदम्  = गद्रद वाणी से; आह = बोला
 
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१२:५९, १२ अक्टूबर २००९ का अवतरण


गीता अध्याय-11 श्लोक-35 / Gita Chapter-11 Verse-35

प्रसंग-


इस प्रकार भगवान् के मुख से सब बातें सुनने के बाद अर्जुन की कैसी परिस्थिति हुई और उन्होंने क्या किया- इस जिज्ञासा पर संजय कहते हैं-

सञ्जय उवाच


एतच्छुत्वा वचनं कृताञ्जलिर्वेपमान: किरीटी ।
नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीत: प्रणम्य ।।35।।



संजय बोले-


केशव भगवान् के इस वचन को सुनकर मुकुटधारी अर्जुन हाथ जोड़कर काँपता हुआ नमस्कार करके, फिर भी अत्यन्त भयभीत होकर प्रणाम करके भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति गद्गद वाणी से बोला- ।।35।।

Sanjaya said-


Hearing these words of Bhagavan kesava, arjuna tremblingly bowed to him with joined palms, and bowing again in extreme terror spoke to sri krsna in faltering accents. (35)


केशवस्य = केशव भगवान् के; एतत् = इस; वचनम् = वचनको; श्रृत्वा = सुनकर; किरीटी = मुकुटधारी अर्जुन; कृताज्जलि: = नमस्कार करके; भूय: = फिर; एव = भी; प्रणम्य = प्रणाम करके; कृष्णम् = भगवान् श्रीकृष्णके प्रति; सगद्रदम् = गद्रद वाणी से; आह = बोला


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अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

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