"गीता 17:11" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> <table class="gita" width="100%" align="left"> <tr> <td> ==गीता अध्याय-17 श्लोक-11 / Gita Chapter-17 Verse-11== {| width="80...) |
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+ | '''प्रसंग-''' | ||
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+ | इस प्रकार भोजन के तीन भेद बतलाकर अब यज्ञ के तीन भेद बतलाये जाते हैं; उनमें पहले करने योग्य सात्त्विक यज्ञ के लक्षण बतलाते हैं- | ||
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<div align="center"> | <div align="center"> | ||
− | ''' | + | '''अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते ।'''<br/> |
− | ''' | + | '''यष्टव्यमेवेति मन:समाधाय स सात्त्विक: ।।11।।''' |
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− | + | जो शास्त्रविधि से नियत, यज्ञ करना ही कर्तव्य है- इस प्रकार मन को समाधान करके, फल न चाहने वाले पुरूषों द्वारा किया जाता है, वह सात्त्विक है ।।11।। | |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | + | The sacrifice which is offered, as ordained by scriptural injunctions, by men who expect no return and who believe that such sacrifices must be performed, is Sattvika in character.(11) | |
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− | + | य:= जो ; यज्ञ: = यज्ञ ; विधिद्य्ष्ट: = शास्त्रविधि से नियत किया हुआ है (तथा); यष्टव्यम् = करना ही कर्तव्य है ; इति = ऐसे ; मन: = मन को ; समाधाय = समाधान करके ; अफलाकाक्ष्डिभि: = फल को न चाहने वाले पुरूषो द्वारा ; इज्यते = किया जाता है ; स: = वह (यज्ञ तो) ; सात्त्विक: = सात्त्विक है | |
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०५:४६, १४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-11 / Gita Chapter-17 Verse-11
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अध्याय सतरह श्लोक संख्या Verses- Chapter-17 |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 |
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