"सूक्ति और विचार" के अवतरणों में अंतर

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* <blockquote>लघुता में प्रभुता बसे,<br />प्रभुता लघुता भोन ।<br />दूब धरे सिर वानबा,<br />ताल खडाऊ कोन</blockquote>   
 
* <blockquote>लघुता में प्रभुता बसे,<br />प्रभुता लघुता भोन ।<br />दूब धरे सिर वानबा,<br />ताल खडाऊ कोन</blockquote>   
लघुता में प्रभुता निवास करती है और प्रभुता, लघुता का भवन है । दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता ।- '''दयाराम''' (दयाराम सतसई, 404)
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लघुता में प्रभुता निवास करती है और प्रभुता, लघुता का भवन है । दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता ।<br />- '''दयाराम''' (दयाराम सतसई, 404)
 
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* <blockquote>तू छोटा बन, बस छोटा बन<br />गागर में आयेगा सागर । </blockquote><br />- '''सूर्यकांत त्रिपाठी''' ‘निराला’ (अराधना, 18)
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* <blockquote>तू छोटा बन, बस छोटा बन<br />गागर में आयेगा सागर । </blockquote>- '''सूर्यकांत त्रिपाठी''' ‘निराला’ (अराधना, 18)
 
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* तिलक-गीता का पूर्वार्द्ध है ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, और उसका उत्तरार्द्ध है ‘स्वदेशी हमारा जन्मसिद्ध कर्तव्य है’ । स्वदेशी को लोकमान्य बहिष्कार से भी ऊँचा स्थान देते थे।<br /> - '''महात्मा गाँधी'''
 
* तिलक-गीता का पूर्वार्द्ध है ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, और उसका उत्तरार्द्ध है ‘स्वदेशी हमारा जन्मसिद्ध कर्तव्य है’ । स्वदेशी को लोकमान्य बहिष्कार से भी ऊँचा स्थान देते थे।<br /> - '''महात्मा गाँधी'''
 
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* <blockquote>न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविस्वसेत् ।<br />
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* <blockquote>न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविस्वसेत् ।<br />विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति ॥</blockquote>जो विश्वास्पात्र न हो, उस पर कभी विश्वास न करें और जो विश्वास्पात्र हो उस पर भी अधिक विश्वास न करें क्योंकि विश्वास से उत्पन्न हुआ भय मनुष्य का मूलोच्छेद कर देता है ।<br /> - '''वेदव्यास''' (महाभारत, शांतिपर्व, 138 । 144 - 45)
विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति ॥</blockquote>जो विश्वास्पात्र न हो, उस पर कभी विश्वास न करें और जो विश्वास्पात्र हो उस पर भी अधिक विश्वास न करें क्योंकि विश्वास से उत्पन्न हुआ भय मनुष्य का मूलोच्छेद कर देता है ।<br /> - '''वेदव्यास''' (महाभारत, शांतिपर्व, 138 । 144 - 45)
 
 
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* ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता ।<br />- '''हजारीप्रसाद द्विवेदी''' (कुटज, पृ. 20)
 
* ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता ।<br />- '''हजारीप्रसाद द्विवेदी''' (कुटज, पृ. 20)

१२:०२, ३ फ़रवरी २०१० का अवतरण

सूक्ति और विचार

  • जीवन अविकल कर्म है, न बुझने वाली पिपासा है। जीवन हलचल है, परिवर्तन है; और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शान्ति का कोई स्थान नहीं।
    -भगवती चरण वर्मा (चित्रलेखा, पृ0 24)

  • उदारता और स्वाधीनता मिल कर ही जीवनतत्व है।
    -अमृतलाल नागर (मानस का हंस, पृ0 367)

  • सत्य, आस्था और लगन जीवन-सिद्धि के मूल हैं।
    -अमृतलाल नागर (अमृत और विष, पृ0 437)

  • गंगा तुमरी साँच बड़ाई।
    एक सगर-सुत-हित जग आई तारयौ॥
    नाम लेत जल पिअत एक तुम तारत कुल अकुलाई।
    'हरीचन्द्र' याही तें तो सिव राखी सीस चढ़ाई॥
    -भारतेन्दु हरिश्चंद्र (कृष्ण-चरित्र, 37)

  • गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता। गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है।
    -लक्ष्मीनारायण मिश्र (गरुड़ध्वज, पृ0 79)

  • मतभेद भुलाकर किसी विशिष्ट काम के लिए सारे पक्षों का एक हो जाना ज़िन्दा राष्ट्र का लक्षण है ।
    - लोकमान्य तिलक

  • चापलूसी करके स्वर्ग प्राप्त करने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ नर्क में रहना।
    - चौधरी दिगम्बर सिंह

  • राष्ट्रीयता भी सत्य है और मानव जाति की एकता भी सत्य है । इन दोनों सत्यों के सामंजस्य में ही मानव जाति का कल्याण है ।
    - अरविन्द (कर्मयोगी)

  • अन्तराष्ट्रीयता तभी पनप सकती है जब राष्ट्रीयता का सुदृढ़ आधार हो ।
    - श्यामाप्रसाद मुकर्जी (भारतीय जनसंघ के कानपुर अधिवेशन में भाषण, दिसम्बर 1952)

  • लघुता में प्रभुता बसे,
    प्रभुता लघुता भोन ।
    दूब धरे सिर वानबा,
    ताल खडाऊ कोन

लघुता में प्रभुता निवास करती है और प्रभुता, लघुता का भवन है । दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता ।
- दयाराम (दयाराम सतसई, 404)


  • तू छोटा बन, बस छोटा बन
    गागर में आयेगा सागर ।

    - सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ (अराधना, 18)

  • तिलक-गीता का पूर्वार्द्ध है ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, और उसका उत्तरार्द्ध है ‘स्वदेशी हमारा जन्मसिद्ध कर्तव्य है’ । स्वदेशी को लोकमान्य बहिष्कार से भी ऊँचा स्थान देते थे।
    - महात्मा गाँधी

  • न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविस्वसेत् ।
    विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति ॥

    जो विश्वास्पात्र न हो, उस पर कभी विश्वास न करें और जो विश्वास्पात्र हो उस पर भी अधिक विश्वास न करें क्योंकि विश्वास से उत्पन्न हुआ भय मनुष्य का मूलोच्छेद कर देता है ।
    - वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व, 138 । 144 - 45)

  • ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता ।
    - हजारीप्रसाद द्विवेदी (कुटज, पृ. 20)

  • जो अध्यापक अपने अनुगामियों में मंदिर की छाया तले विचरण करता है, वह उन्हें अपने ज्ञान का अंश नहीं, बल्कि अपना विश्वास और वात्सल्य प्रदान करता है ।
    - खलील जिब्रान (जीवन-सन्देश, पृ. 67)

  • सच्ची शिक्षा तो वह है जिसके द्वारा हम अपने को, आत्मा को, ईश्वर को, सत्य को पहचान सकें ।
    - महात्मा गांधी (लेख ‘शिक्षा’, 10 जुलाई 1932)

  • पृथ्वी में कुआं जितना ही गहरा खुदेगा, उतना ही अधिक जल निकलेगा । वैसे ही मानव की जितनी अधिक शिक्षा होगी, उतनी ही तीव्र बुद्धि बनेगी ।
    - तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 396)

  • शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता की अभिव्यक्त्ति, जो सब मनुष्यों में पहले से ही विद्यमान है।
    - स्वामी विवेकानंद (सिंगारावेलु मुदालियार को पत्र में, 3 मार्च 1894)