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०९:१४, ६ फ़रवरी २०१० का अवतरण
ध्रुव तीर्थ
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मार्ग स्थिति: | यह मथुरा के परिक्रमा मार्ग पर स्थित है । |
आस-पास: | |
पुरातत्व: | निर्माणकाल- उन्नीसवीं शताब्दी |
वास्तु: | |
स्वामित्व: | |
प्रबन्धन: | |
स्त्रोत: | इंटैक |
अन्य लिंक: | |
अन्य: | |
सावधानियाँ: | |
मानचित्र: | |
अद्यतन: | 2009 |
ध्रुव तीर्थ / Dhruva Tirth
यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप: ।
तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते ।।
ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरूते नर: ।
पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत: ।।
[१]
अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक ध्रुव देवर्षि नारद से यहीं यमुना तट पर मिला था । देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया । पुन: यहीं से मधुवन के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं । यहाँ श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते है। । गया में पिण्ड दान करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरूपरम्परा की धारा में रहते आये हैं । प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का ब्रजमण्डल में यही एक स्थान बचा हुआ है ।
वास्तु
यह घाट ध्रुव टीले के नीचे स्थित है । इसे बनाने में लखोरी ईंट व चूने, लाल एवं बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है । यह बहुपत्रित मेहराबों व सुन्दर छज्जों से सुसज्जित है ।
वीथिका
टीका-टिपण्णी
- ↑ आदि वराह पुराण