"सूक्ति और विचार" के अवतरणों में अंतर

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* शब्द खतरनाक वस्तु हैं । सर्वाधिक खतरे की बात तो यह है कि वे हमसे यह कल्पना करा लेते हैं कि हम बातों को समझते हैं जबकि वास्तव में हम नहीं समझते ।<br /> - '''चक्रवती राजगोपालाचार्य''' (राजाजीज़ स्पीचिज़, भाग 2, पृ. 35)
 
* शब्द खतरनाक वस्तु हैं । सर्वाधिक खतरे की बात तो यह है कि वे हमसे यह कल्पना करा लेते हैं कि हम बातों को समझते हैं जबकि वास्तव में हम नहीं समझते ।<br /> - '''चक्रवती राजगोपालाचार्य''' (राजाजीज़ स्पीचिज़, भाग 2, पृ. 35)
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* शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर।<br />सैकड़ों हाथों से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बिखेरो। <br />'''अथर्ववेद''' (3।24।5)
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* दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।<br />देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकंस्मृतम्॥<br />
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दान देना अपना कर्त्तव्य है, ऐसे भाव से जो दान देश, काल और पात्र के प्राप्त होने पर प्रत्युपकार न करने वाले के लिए दिया जाता है, वह सात्त्विक दान है।<br /> '''वेदव्यास''' (महाभारत, भीष्मपर्व 41।20 अथवा गीता, 17।20)
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* आदित्तस्मिं अगारस्मि यं नीहरति भाजनं। तं तस्स होति अत्थायनो च यं तत्थ डह्यति॥<br />एवं आदोपितो लोको जराय मरणेन च। नीहरेथ एच दानेन दिन्नं हि होति सुनीहतं॥<br />
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जलते हुए घर में से आदमी जिस वस्तु को निकाल लेता है, वही उसके काम की होती है, न कि वह जो वहाँ जल जाती है। इसी प्रकार यह संसार जरा और मरण से जल रहा है। इसमें से दान देकर निकाल लो। जो दिया जाता है वही सुरक्षित होता है।<br /> '''[पालि] जातक'''(आदित्त जातक)
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* प्रत्येक भारतवासी का यह भी कर्त्तव्य है कि वह ऐसा न समझे कि अपने और अपने परिवार के खाने-पहनने भर के लिए कमा लिया तो सब कुछ कर लिया। उसे अपने समाज के कल्याण के लिए दिल खोलकर दान देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।<br /> '''महात्मा गाँधी''' (इंडियन ओपिनियन, दि:नांक अगस्त 1903)
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* Charity is a virtue of the heart, and not of the hands.<br />दानशीलता ह्रदय का गुण है, हाथों का नहीं।<br /> '''एडीसन''' (दी गार्डियन, ॠ॰ 166)
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6- Give accordings to your means, or God will make your means according to your giving.
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अपने साधनों के अनुरूप दान करो अन्यथा ईश्वर तुम्हारे दान के अनुरूप तुम्हारे साधन बना देगा।
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(जॉन हाल)
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7- नकसन पनही<>नस काटने वाला जूता<> बतकट जोय।<>बात काटने वाली स्त्री<> जो पहिलौंठी बिटिया होय्।
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पातरि<>कमजोर<> कृषि बौरहा भाय।<>पागल भाई<> घाघ कहैं दुख कहाँ समाय॥
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[घाघ](घाघ की कहावतें)
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8- शायद दुनिया-भर के लोगों की कमजोरी का पता लगाने की अपेक्षा अपनी कमजोरी का पता लगा लेना ज्यादा विश्वसनीय होता है।
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  हजारी प्रसाद द्विवेदी(कल्पलता, पृष्ठ 34)
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9- सख्यं कारणनिर्व्यपेक्षमिनताहंकारहीना सती-
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भावो वीतजनापवाद उचितोक्तित्वं समस्तप्रियम्।
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विद्वत्ता विभवान्विता तरुणिमा पारिप्लत्वोज्झितो
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राजस्वं विकलंकमत्र चरमे काले किलेत्यन्यथा॥
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कारण-रहित मित्रता, अहंकार-रहित स्वामित्व, लोकापवाद-रहित सतीत्व, सब को प्रिय उचित कथनशीलता, वैभव-युक्त विद्वता, चंचलता-रहित यौवन तथा  अंत तक कलंक-रहित राजस्व संसार में दुर्लभ है।
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-कल्हण (राजतरंगिणी, 8।161)
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10- पृथिवीं धर्मणा धृतां शिवां स्योनामनु चरेम विश्वहा।
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धर्म के द्वारा धारण की गई इस मातृभूमि की सेवा हम सदैव करते रहें।
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--अथर्ववेद (12।1।17)
  
 
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१०:३६, १२ फ़रवरी २०१० का अवतरण

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सूक्ति और विचार / Thoughts And Quotations

  • जीवन अविकल कर्म है, न बुझने वाली पिपासा है। जीवन हलचल है, परिवर्तन है; और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शान्ति का कोई स्थान नहीं।
    -भगवती चरण वर्मा (चित्रलेखा, पृ0 24)

  • उदारता और स्वाधीनता मिल कर ही जीवनतत्व है।
    -अमृतलाल नागर (मानस का हंस, पृ0 367)

  • सत्य, आस्था और लगन जीवन-सिद्धि के मूल हैं।
    -अमृतलाल नागर (अमृत और विष, पृ0 437)

  • गंगा तुमरी साँच बड़ाई।
    एक सगर-सुत-हित जग आई तारयौ॥
    नाम लेत जल पिअत एक तुम तारत कुल अकुलाई।
    'हरीचन्द्र' याही तें तो सिव राखी सीस चढ़ाई॥
    -भारतेन्दु हरिश्चंद्र (कृष्ण-चरित्र, 37)

  • गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता। गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है।
    -लक्ष्मीनारायण मिश्र (गरुड़ध्वज, पृ0 79)

  • मतभेद भुलाकर किसी विशिष्ट काम के लिए सारे पक्षों का एक हो जाना ज़िन्दा राष्ट्र का लक्षण है ।
    - लोकमान्य तिलक

  • चापलूसी करके स्वर्ग प्राप्त करने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ नर्क में रहना।
    - चौधरी दिगम्बर सिंह

  • राष्ट्रीयता भी सत्य है और मानव जाति की एकता भी सत्य है । इन दोनों सत्यों के सामंजस्य में ही मानव जाति का कल्याण है ।
    - अरविन्द (कर्मयोगी)

  • अन्तराष्ट्रीयता तभी पनप सकती है जब राष्ट्रीयता का सुदृढ़ आधार हो ।
    - श्यामाप्रसाद मुखर्जी

  • लघुता में प्रभुता बसे,
    प्रभुता लघुता भोन ।
    दूब धरे सिर वानबा,
    ताल खडाऊ कोन

    लघुता में प्रभुता निवास करती है और प्रभुता, लघुता का भवन है । दूब लघु है तो उसे विनायक के मस्तक पर चढ़ाते हैं और ताड़ के बड़े वृक्ष की कोई खड़ाऊं बनाकर भी नहीं पहनता ।
    - दयाराम (दयाराम सतसई, 404)

  • तिलक-गीता का पूर्वार्द्ध है ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है’, और उसका उत्तरार्द्ध है ‘स्वदेशी हमारा जन्मसिद्ध कर्तव्य है’ । स्वदेशी को लोकमान्य बहिष्कार से भी ऊँचा स्थान देते थे।
    - महात्मा गाँधी

  • न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविस्वसेत् ।
    विश्वासाद् भयमुत्पन्नमपि मूलानि कृन्तति ॥

    जो विश्वास्पात्र न हो, उस पर कभी विश्वास न करें और जो विश्वास्पात्र हो उस पर भी अधिक विश्वास न करें क्योंकि विश्वास से उत्पन्न हुआ भय मनुष्य का मूलोच्छेद कर देता है ।
    - वेदव्यास (महाभारत, शांति पर्व, 138 । 144 - 45)

  • ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता ।
    - हजारीप्रसाद द्विवेदी (कुटज, पृ. 20)

  • पृथ्वी में कुआं जितना ही गहरा खुदेगा, उतना ही अधिक जल निकलेगा । वैसे ही मानव की जितनी अधिक शिक्षा होगी, उतनी ही तीव्र बुद्धि बनेगी ।
    - तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल, 396)

  • शिक्षा का अर्थ है उस पूर्णता की अभिव्यक्त्ति, जो सब मनुष्यों में पहले से ही विद्यमान है।
    - स्वामी विवेकानंद (सिंगारावेलु मुदालियार को पत्र में, 3 मार्च 1894)

  • शब्द खतरनाक वस्तु हैं । सर्वाधिक खतरे की बात तो यह है कि वे हमसे यह कल्पना करा लेते हैं कि हम बातों को समझते हैं जबकि वास्तव में हम नहीं समझते ।
    - चक्रवती राजगोपालाचार्य (राजाजीज़ स्पीचिज़, भाग 2, पृ. 35)

  • शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त संकिर।
    सैकड़ों हाथों से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बिखेरो।
    अथर्ववेद (3।24।5)

  • दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
    देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकंस्मृतम्॥

दान देना अपना कर्त्तव्य है, ऐसे भाव से जो दान देश, काल और पात्र के प्राप्त होने पर प्रत्युपकार न करने वाले के लिए दिया जाता है, वह सात्त्विक दान है।
वेदव्यास (महाभारत, भीष्मपर्व 41।20 अथवा गीता, 17।20)


  • आदित्तस्मिं अगारस्मि यं नीहरति भाजनं। तं तस्स होति अत्थायनो च यं तत्थ डह्यति॥
    एवं आदोपितो लोको जराय मरणेन च। नीहरेथ एच दानेन दिन्नं हि होति सुनीहतं॥

जलते हुए घर में से आदमी जिस वस्तु को निकाल लेता है, वही उसके काम की होती है, न कि वह जो वहाँ जल जाती है। इसी प्रकार यह संसार जरा और मरण से जल रहा है। इसमें से दान देकर निकाल लो। जो दिया जाता है वही सुरक्षित होता है।
[पालि] जातक(आदित्त जातक)


  • प्रत्येक भारतवासी का यह भी कर्त्तव्य है कि वह ऐसा न समझे कि अपने और अपने परिवार के खाने-पहनने भर के लिए कमा लिया तो सब कुछ कर लिया। उसे अपने समाज के कल्याण के लिए दिल खोलकर दान देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
    महात्मा गाँधी (इंडियन ओपिनियन, दि:नांक अगस्त 1903)

  • Charity is a virtue of the heart, and not of the hands.
    दानशीलता ह्रदय का गुण है, हाथों का नहीं।
    एडीसन (दी गार्डियन, ॠ॰ 166)

6- Give accordings to your means, or God will make your means according to your giving. अपने साधनों के अनुरूप दान करो अन्यथा ईश्वर तुम्हारे दान के अनुरूप तुम्हारे साधन बना देगा। (जॉन हाल) 7- नकसन पनही<>नस काटने वाला जूता<> बतकट जोय।<>बात काटने वाली स्त्री<> जो पहिलौंठी बिटिया होय्। पातरि<>कमजोर<> कृषि बौरहा भाय।<>पागल भाई<> घाघ कहैं दुख कहाँ समाय॥ [घाघ](घाघ की कहावतें) 8- शायद दुनिया-भर के लोगों की कमजोरी का पता लगाने की अपेक्षा अपनी कमजोरी का पता लगा लेना ज्यादा विश्वसनीय होता है।

 हजारी प्रसाद द्विवेदी(कल्पलता, पृष्ठ 34)

9- सख्यं कारणनिर्व्यपेक्षमिनताहंकारहीना सती- भावो वीतजनापवाद उचितोक्तित्वं समस्तप्रियम्। विद्वत्ता विभवान्विता तरुणिमा पारिप्लत्वोज्झितो राजस्वं विकलंकमत्र चरमे काले किलेत्यन्यथा॥ कारण-रहित मित्रता, अहंकार-रहित स्वामित्व, लोकापवाद-रहित सतीत्व, सब को प्रिय उचित कथनशीलता, वैभव-युक्त विद्वता, चंचलता-रहित यौवन तथा अंत तक कलंक-रहित राजस्व संसार में दुर्लभ है। -कल्हण (राजतरंगिणी, 8।161) 10- पृथिवीं धर्मणा धृतां शिवां स्योनामनु चरेम विश्वहा। धर्म के द्वारा धारण की गई इस मातृभूमि की सेवा हम सदैव करते रहें। --अथर्ववेद (12।1।17)