"राधावल्लभ जी का मन्दिर" के अवतरणों में अंतर
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यह बहुत ही सुन्दर है । इसके भवन का सौंदर्य और शिल्प लगभग [[गोर्वधन]] के हरदेव मन्दिर के जैसा है । यह भी पैमाने का बना है । इसकी नाभि 34 फीट चौड़ी है। ऊपर और नीचे का भाग हिन्दू शिल्प का है और मध्य का भाग मुस्लिम शिल्प का । इसके भीतर 63 फीट x 20 फीट का बड़ा कक्ष है । हरदेव के मन्दिर की भाँति यह मन्दिर भी [[औरंगज़ेब]] ने ध्वस्त कर दिया था । इसका पूरा जीर्णोध्दार उन्नीसवीं शती में कराया गया था । इसी के दक्षिण की ओर आधुनिक मन्दिर बनाया गया है । ये पाचों मन्दिर इसी श्रंखला में वास्तु-शिल्प के अद्भुत आदर्श हैं । फरगूसन आदि ने शिखरों पर आश्चर्य व्यक्त किया है। ये शिखर [[बौद्ध]] स्तूपों में मिलते हैं । 11वीं शताब्दी का खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर और 16वीं शताब्दी के वृन्दावन के [[मदनमोहन]] और [[जुगलकिशोर]] मन्दिरों मे साम्य है । बनारस का विश्वेश्वर मन्दिर भी इसी शृंखला में है । वास्तव में हुआ यह है कि मूल मन्दिरों का जीर्णोध्दार जब-जब हुआ, तब-तब उनमें कुछ न कुछ परिवर्तन आता गया । इसी से लगता है कि इन मन्दिरों का स्थापत्य पुराना नहीं है । [[वृन्दावन]] के [[मदनमोहन]] मन्दिर के निकटस्थ श्रृंगार बट के मन्दिर के विषय में यही बात उचित ठहरती है । श्रृंगार बट की आय रू. 13500 थी,जो तीन भागीदारों में बॅट जाती थी । [[जमुना]]पार का जॅहागीरपुर और बेलबन मन्दिर के प्राभूत के अंश हैं । | यह बहुत ही सुन्दर है । इसके भवन का सौंदर्य और शिल्प लगभग [[गोर्वधन]] के हरदेव मन्दिर के जैसा है । यह भी पैमाने का बना है । इसकी नाभि 34 फीट चौड़ी है। ऊपर और नीचे का भाग हिन्दू शिल्प का है और मध्य का भाग मुस्लिम शिल्प का । इसके भीतर 63 फीट x 20 फीट का बड़ा कक्ष है । हरदेव के मन्दिर की भाँति यह मन्दिर भी [[औरंगज़ेब]] ने ध्वस्त कर दिया था । इसका पूरा जीर्णोध्दार उन्नीसवीं शती में कराया गया था । इसी के दक्षिण की ओर आधुनिक मन्दिर बनाया गया है । ये पाचों मन्दिर इसी श्रंखला में वास्तु-शिल्प के अद्भुत आदर्श हैं । फरगूसन आदि ने शिखरों पर आश्चर्य व्यक्त किया है। ये शिखर [[बौद्ध]] स्तूपों में मिलते हैं । 11वीं शताब्दी का खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर और 16वीं शताब्दी के वृन्दावन के [[मदनमोहन]] और [[जुगलकिशोर]] मन्दिरों मे साम्य है । बनारस का विश्वेश्वर मन्दिर भी इसी शृंखला में है । वास्तव में हुआ यह है कि मूल मन्दिरों का जीर्णोध्दार जब-जब हुआ, तब-तब उनमें कुछ न कुछ परिवर्तन आता गया । इसी से लगता है कि इन मन्दिरों का स्थापत्य पुराना नहीं है । [[वृन्दावन]] के [[मदनमोहन]] मन्दिर के निकटस्थ श्रृंगार बट के मन्दिर के विषय में यही बात उचित ठहरती है । श्रृंगार बट की आय रू. 13500 थी,जो तीन भागीदारों में बॅट जाती थी । [[जमुना]]पार का जॅहागीरपुर और बेलबन मन्दिर के प्राभूत के अंश हैं । |
०५:२१, ११ जुलाई २००९ का अवतरण
राधाबल्लभ जी / Radha Vallabh Temple
यह बहुत ही सुन्दर है । इसके भवन का सौंदर्य और शिल्प लगभग गोर्वधन के हरदेव मन्दिर के जैसा है । यह भी पैमाने का बना है । इसकी नाभि 34 फीट चौड़ी है। ऊपर और नीचे का भाग हिन्दू शिल्प का है और मध्य का भाग मुस्लिम शिल्प का । इसके भीतर 63 फीट x 20 फीट का बड़ा कक्ष है । हरदेव के मन्दिर की भाँति यह मन्दिर भी औरंगज़ेब ने ध्वस्त कर दिया था । इसका पूरा जीर्णोध्दार उन्नीसवीं शती में कराया गया था । इसी के दक्षिण की ओर आधुनिक मन्दिर बनाया गया है । ये पाचों मन्दिर इसी श्रंखला में वास्तु-शिल्प के अद्भुत आदर्श हैं । फरगूसन आदि ने शिखरों पर आश्चर्य व्यक्त किया है। ये शिखर बौद्ध स्तूपों में मिलते हैं । 11वीं शताब्दी का खजुराहो का पार्श्वनाथ मन्दिर और 16वीं शताब्दी के वृन्दावन के मदनमोहन और जुगलकिशोर मन्दिरों मे साम्य है । बनारस का विश्वेश्वर मन्दिर भी इसी शृंखला में है । वास्तव में हुआ यह है कि मूल मन्दिरों का जीर्णोध्दार जब-जब हुआ, तब-तब उनमें कुछ न कुछ परिवर्तन आता गया । इसी से लगता है कि इन मन्दिरों का स्थापत्य पुराना नहीं है । वृन्दावन के मदनमोहन मन्दिर के निकटस्थ श्रृंगार बट के मन्दिर के विषय में यही बात उचित ठहरती है । श्रृंगार बट की आय रू. 13500 थी,जो तीन भागीदारों में बॅट जाती थी । जमुनापार का जॅहागीरपुर और बेलबन मन्दिर के प्राभूत के अंश हैं ।