"व्यास" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति ८: पंक्ति ८:
 
----  
 
----  
 
भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य [[शंकराचार्य]] और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है।
 
भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य [[शंकराचार्य]] और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है।
 
+
==सम्बंधित लिंक==
 +
{{ॠषि-मुनि2}}
 +
{{ॠषि-मुनि}}
 
[[en:Vyas]]
 
[[en:Vyas]]
 
[[Category: कोश]]  
 
[[Category: कोश]]  
पंक्ति १५: पंक्ति १७:
 
[[Category:पौराणिक]]
 
[[Category:पौराणिक]]
 
[[Category:ॠषि मुनि]]
 
[[Category:ॠषि मुनि]]
<br />
 
{{ॠषि-मुनि}}
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

०६:५७, ८ जुलाई २०१० का अवतरण

व्यास / Vyas

भगवान व्यास भगवान नारायण के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम पराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने पिता-माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी।

विभिन्न नाम

यमुना के द्वीप में जन्म होने के कारण व्यास जी को कृष्णद्वैपायन तथा बदरीवन में तपस्या करने के कारण बदरायण व्यास भी कहा जाता है। इन्हें अंगों सहित सम्पूर्ण वेद, पुराण, इतिहास और परमात्मतत्त्व का ज्ञान स्वत: प्राप्त हो गया था। मनुष्यों की आयु क्षीण होते हुए देखकर इन्होंने वेदों का विस्तार किया। इसीलिये ये वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। वेदान्त-दर्शन की शक्ति के साथ अनादि पुराण को लुप्त होते देखकर भगवान कृष्णद्वैपायन ने अठारह पुराणों का प्रणयन किया। इनके द्वारा प्रणीत महाभारत को पंचम वेद कहा जाता है। श्रीमद्भागवत के रूप में भक्ति का सार-सर्वस्व इन्होंने मानव मात्र को सुलभ कराया और ब्रह्मसूत्र के रूप में तत्त्वज्ञान का अनुपम ग्रन्थ-रत्न प्रदान किया।

सह्रदय व्यास

शुद्धात्मा व्यास जी विपत्ति ग्रस्त पाण्डवों की समय-समय पर पूरी सहायता करते रहे। इन्होंने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी, जिससे संजय ने महाभारत का युद्ध प्रत्यक्ष देखने के साथ-साथ श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से नि:सृत श्रीमद्भगवद् गीता का भी श्रवण किया। महर्षि व्यास की शक्ति अलौकिक थी। एक बार जब ये वन में धृतराष्ट्र और गान्धारी से मिलने गये, तब सपरिवार युधिष्टिर भी वहाँ उपस्थित थे। धृतराष्ट्र पुत्र शोक से अत्यन्त व्याकुल थे। उन्होंने श्रीव्यास जी से अपने मरे हुए कुटुम्बियों और स्वजनों को देखने की इच्छा प्रकट की। महर्षि व्यास के आदेशानुसार धृतराष्ट्र आदि गंगातट पर पहुँचे। व्यास जी ने गंगा जल में प्रवेश किया और दिवंगत योद्धाओं को पुकारा। जल में युद्धकाल-जैसा कोलाहल सुनायी देने लगा। देखते-ही-देखते भीष्म और द्रोण के साथ दोनों पक्षों के योद्धा निकल आये। सबकी वेष-भूषा और वाहनादि पूर्ववत थे। सभी ईर्ष्या-द्वेष से शून्य और दिव्य देहधारी थे। वे सभी लोग रात्रि में अपने पूर्व सम्बन्धियों से मिले और सूर्योंदय से पूर्व भागीरथी गंगा में प्रवेश करके अपने दिव्य लोकों को चले गये। भगवान व्यास के इस चमत्कारिक प्रभाव को देखकर धृतराष्ट्र आदि आश्चर्यचकित रह गये।


भगवान व्यास आज भी अमर हैं। समय-समय पर प्रकट होकर ये अधिकारी पुरुषों को अपना दर्शन देकर कृतार्थ किया करते हैं। भगवान आद्य शंकराचार्य और मण्डन मिश्र को उनके दर्शन हुए थे। मनुष्य जाति पर भगवान वेदव्यास के अनन्त उपकार हैं। सम्पूर्ण संसार उनका आभारी है।

सम्बंधित लिंक

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • ॠषि-मुनि
    • अंगिरा|अंगिरा
    • अगस्त्य|अगस्त्य
    • अत्रि|अत्रि
    • अदिति|अदिति
    • अनुसूया|अनुसूया
    • अपाला|अपाला
    • अरुन्धती|अरुन्धती
    • आंगिरस|आंगिरस
    • उद्दालक|उद्दालक
    • कण्व|कण्व
    • कपिल|कपिल
    • कश्यप|कश्यप
    • कात्यायन|कात्यायन
    • क्रतु|क्रतु
    • गार्गी|गार्गी
    • गालव|गालव
    • गौतम|गौतम
    • घोषा|घोषा
    • चरक|चरक
    • च्यवन|च्यवन
    • त्रिजट मुनि|त्रिजट
    • जैमिनि|जैमिनि
    • दत्तात्रेय|दत्तात्रेय
    • दधीचि|दधीचि
    • दिति|दिति
    • दुर्वासा|दुर्वासा
    • धन्वन्तरि|धन्वन्तरि
    • नारद|नारद
    • पतंजलि|पतंजलि
    • परशुराम|परशुराम
    • पराशर|पराशर
    • पुलह|पुलह
    • पिप्पलाद|पिप्पलाद
    • पुलस्त्य|पुलस्त्य
    • भारद्वाज|भारद्वाज
    • भृगु|भृगु
    • मरीचि|मरीचि
    • याज्ञवल्क्य|याज्ञवल्क्य
    • रैक्व|रैक्व
    • लोपामुद्रा|लोपामुद्रा
    • वसिष्ठ|वसिष्ठ
    • वाल्मीकि|वाल्मीकि
    • विश्वामित्र|विश्वामित्र
    • व्यास|व्यास
    • शुकदेव|शुकदेव
    • शुक्राचार्य|शुक्राचार्य
    • सत्यकाम जाबाल|सत्यकाम जाबाल
    • सप्तर्षि|सप्तर्षि

</sidebar>