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नादिरशाह का उत्तराधिकारी । [[नादिरशाह]] की हत्या के बाद खुरासान का शासक बना और अपने नये साम्राज्य की स्थापना की । 1756 ई. में लाहौर पहुंचा आर 28 जनवरी 1757 को दिल्ली । उसके बाद इसने [[मथुरा]], [[वृन्दावन]] और [[आगरा]] को लूटा और तबाही मचाई । अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय (1757 ई०) में एक बार फिर मथुरा को दुर्दिन देखने पड़े । इस बर्बर आक्रांता ने सात दिनों तक मथुरा निवासियों के खून की होली खेली और इतना रक्तपात किया कि यमुना का पानी एक सप्ताह के लिए लाल रंग का हो गया ।  
 
नादिरशाह का उत्तराधिकारी । [[नादिरशाह]] की हत्या के बाद खुरासान का शासक बना और अपने नये साम्राज्य की स्थापना की । 1756 ई. में लाहौर पहुंचा आर 28 जनवरी 1757 को दिल्ली । उसके बाद इसने [[मथुरा]], [[वृन्दावन]] और [[आगरा]] को लूटा और तबाही मचाई । अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय (1757 ई०) में एक बार फिर मथुरा को दुर्दिन देखने पड़े । इस बर्बर आक्रांता ने सात दिनों तक मथुरा निवासियों के खून की होली खेली और इतना रक्तपात किया कि यमुना का पानी एक सप्ताह के लिए लाल रंग का हो गया ।  
अब्दाली का आदेश लेकर सेना ने मथुरा कि तरफ कूच कर दिया । मथुरा से लगभग 8 मील पहले चौमुहाँ नाम की जगह पर जाटों की छोटी सी सेना के साथ उसकी लड़ाई हुई । जाटों ने बहुत बहादुरी से युध्द किया लेकिन दुश्मनों की सेना संख्या में बहुत ही अधिक थी जिससे उनकी हार हुई । उसके बाद जीत से उन्मादित पठानों ने मथुरा नगर में प्रवेश किया । [[मथुरा]] नगर में पठान वर्तमान [[भरतपुर]] दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से आये और सब जगहों पर मार−काट और लूट−खसोट करने लगे । उस समय फाल्गुन का महीना था। [[होली]] का त्यौहार आने वाला था । वृद्ध नर−नारी नाच−गान और मनोरंजन में मस्त थे । मथुरा के मुहल्लों में बड़ी रौनक थी । सभी लोग मौज मस्ती में थे ,इतने में अचानक अब्दाली की भेजी सेना ने मारकाट और लूटपाट शुरू कर दी । यह क्रम लगातार चलता रहा और तीन दिन तक वध चलता रहा । चारों तरफ वीभत्सता और अत्याचार का राज्य था । सैनिक दिन में लूटपाट करते रात में घरों को जलाया जाता था । चारों तरफ गली सड़क चौराहों पर, मकानों के ऊपर नीचे नर−मुंडो के ढेर लग गये थे , रंग की होली की जगह पर खून की होली मनाई गई ।
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अब्दाली का आदेश लेकर सेना ने मथुरा कि तरफ कूच कर दिया । मथुरा से लगभग 8 मील पहले चौमुहाँ नाम की जगह पर जाटों की छोटी सी सेना के साथ उसकी लड़ाई हुई । [[जाटों]] ने बहुत बहादुरी से युध्द किया लेकिन दुश्मनों की सेना संख्या में बहुत ही अधिक थी जिससे उनकी हार हुई । उसके बाद जीत से उन्मादित पठानों ने मथुरा नगर में प्रवेश किया । [[मथुरा]] नगर में पठान वर्तमान [[भरतपुर]] दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से आये और सब जगहों पर मार−काट और लूट−खसोट करने लगे । उस समय फाल्गुन का महीना था। [[होली]] का त्यौहार आने वाला था । वृद्ध नर−नारी नाच−गान और मनोरंजन में मस्त थे । मथुरा के मुहल्लों में बड़ी रौनक थी । सभी लोग मौज मस्ती में थे ,इतने में अचानक अब्दाली की भेजी सेना ने मारकाट और लूटपाट शुरू कर दी । यह क्रम लगातार चलता रहा और तीन दिन तक वध चलता रहा । चारों तरफ वीभत्सता और अत्याचार का राज्य था । सैनिक दिन में लूटपाट करते रात में घरों को जलाया जाता था । चारों तरफ गली सड़क चौराहों पर, मकानों के ऊपर नीचे नर−मुंडो के ढेर लग गये थे , रंग की होली की जगह पर खून की होली मनाई गई ।
 
मुगल-साम्राज्य की अवनति के पश्चात् [[मथुरा]] पर मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इस नगरी ने सदियों के पश्चात् चैन की सांस ली । 1803 ई० में लार्ड लेक ने सिंधिया को हराकर मथुरा-आगरा प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया ।
 
मुगल-साम्राज्य की अवनति के पश्चात् [[मथुरा]] पर मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इस नगरी ने सदियों के पश्चात् चैन की सांस ली । 1803 ई० में लार्ड लेक ने सिंधिया को हराकर मथुरा-आगरा प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया ।

१६:१०, १६ मई २००९ का अवतरण

अहमद शाह दुर्रानी [अहमद शाह अब्दाली]

नादिरशाह का उत्तराधिकारी । नादिरशाह की हत्या के बाद खुरासान का शासक बना और अपने नये साम्राज्य की स्थापना की । 1756 ई. में लाहौर पहुंचा आर 28 जनवरी 1757 को दिल्ली । उसके बाद इसने मथुरा, वृन्दावन और आगरा को लूटा और तबाही मचाई । अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के समय (1757 ई०) में एक बार फिर मथुरा को दुर्दिन देखने पड़े । इस बर्बर आक्रांता ने सात दिनों तक मथुरा निवासियों के खून की होली खेली और इतना रक्तपात किया कि यमुना का पानी एक सप्ताह के लिए लाल रंग का हो गया । अब्दाली का आदेश लेकर सेना ने मथुरा कि तरफ कूच कर दिया । मथुरा से लगभग 8 मील पहले चौमुहाँ नाम की जगह पर जाटों की छोटी सी सेना के साथ उसकी लड़ाई हुई । जाटों ने बहुत बहादुरी से युध्द किया लेकिन दुश्मनों की सेना संख्या में बहुत ही अधिक थी जिससे उनकी हार हुई । उसके बाद जीत से उन्मादित पठानों ने मथुरा नगर में प्रवेश किया । मथुरा नगर में पठान वर्तमान भरतपुर दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से आये और सब जगहों पर मार−काट और लूट−खसोट करने लगे । उस समय फाल्गुन का महीना था। होली का त्यौहार आने वाला था । वृद्ध नर−नारी नाच−गान और मनोरंजन में मस्त थे । मथुरा के मुहल्लों में बड़ी रौनक थी । सभी लोग मौज मस्ती में थे ,इतने में अचानक अब्दाली की भेजी सेना ने मारकाट और लूटपाट शुरू कर दी । यह क्रम लगातार चलता रहा और तीन दिन तक वध चलता रहा । चारों तरफ वीभत्सता और अत्याचार का राज्य था । सैनिक दिन में लूटपाट करते रात में घरों को जलाया जाता था । चारों तरफ गली सड़क चौराहों पर, मकानों के ऊपर नीचे नर−मुंडो के ढेर लग गये थे , रंग की होली की जगह पर खून की होली मनाई गई । मुगल-साम्राज्य की अवनति के पश्चात् मथुरा पर मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इस नगरी ने सदियों के पश्चात् चैन की सांस ली । 1803 ई० में लार्ड लेक ने सिंधिया को हराकर मथुरा-आगरा प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया ।