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[[मथुरा]] नगर में जहाँ इस समय [[विश्राम घाट]] है, वहाँ मुसलमानी शासन काल में श्मशान था । उस घाट पर हिन्दुओं के शवों का दाहसंस्कार किया जाता था । तीर्थ स्थल होने के कारण अन्य स्थानों के धर्मप्राण हिन्दू भी अपने मृतकों का वहाँ दाहकर्म करने में पुण्य मानते थे । सम्राट [[अकबर]] के श्वसुर राजा बिहारीलाल की मृत्यु सं 1630 में हुई थी, जिनकी अन्त्येष्ठी मथुरा के विश्राम घाट पर की गई थी । उस समय उनकी रानी भी वहाँ सती हुई थी । उनकी स्मृति में उनके पुत्र राजा भगवान दास ने वहाँ एक स्तंभ निर्माण कराया था, जो 'सती का बुर्ज' कहलाता है । मथुरा की वर्तमान इमारतों में यह सबसे प्रचीन है । यह बुर्ज 55 फीट ऊँचा है, और चौमंजिला बना हुआ है । ऐसा कहा जाता है, पहले यह और भी अधिक ऊँचा था; किन्तु इसका ऊपरी भाग [[ओरंगजेब]] के काल में गिरा दिया गया था । कालांतर में टूटे भाग की मरम्मत ईंट-चूने से कर दी गई थी । इसके नीचे की मंजिलों में जो खिड़कियाँ, छ्ज्जे तथा महराबें आदि हैं, उन पर बेल-बूँटे, पुष्पावली और विविध पशुओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण है । इनसे उस काल के हिन्दू स्थापत्य की एक झांकी मिलती है । इस बुर्ज के समीपवर्ती घाटों पर और भी कई गुम्मजदार पुरानी इमारतें हैं । वे भी कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की स्मृति में बनाई गयी होंगी ।
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[[मथुरा]] नगर में जहाँ इस समय [[विश्राम घाट]] है, वहाँ मुसलमानी शासन काल में श्मशान था । उस घाट पर हिन्दुओं के शवों का दाहसंस्कार किया जाता था । तीर्थ स्थल होने के कारण अन्य स्थानों के धर्मप्राण हिन्दू भी अपने मृतकों का वहाँ दाहकर्म करने में पुण्य मानते थे । सम्राट [[अकबर]] के श्वसुर राजा बिहारीलाल की मृत्यु सं 1630 में हुई थी, जिनकी अन्त्येष्ठी मथुरा के विश्राम घाट पर की गई थी । उस समय उनकी रानी भी वहाँ सती हुई थी । उनकी स्मृति में उनके पुत्र राजा भगवान दास ने वहाँ एक स्तंभ निर्माण कराया था, जो 'सती का बुर्ज' कहलाता है । मथुरा की वर्तमान इमारतों में यह सबसे प्रचीन है । यह बुर्ज 55 फीट ऊँचा है, और चौमंजिला बना हुआ है । ऐसा कहा जाता है, पहले यह और भी अधिक ऊँचा था; किन्तु इसका ऊपरी भाग [[औरंगज़ेब|ओरंगजेब]] के काल में गिरा दिया गया था । कालांतर में टूटे भाग की मरम्मत ईंट-चूने से कर दी गई थी । इसके नीचे की मंजिलों में जो खिड़कियाँ, छ्ज्जे तथा महराबें आदि हैं, उन पर बेल-बूँटे, पुष्पावली और विविध पशुओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण है । इनसे उस काल के हिन्दू स्थापत्य की एक झांकी मिलती है । इस बुर्ज के समीपवर्ती घाटों पर और भी कई गुम्मजदार पुरानी इमारतें हैं । वे भी कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की स्मृति में बनाई गयी होंगी ।
 
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०८:०५, ६ सितम्बर २००९ का अवतरण



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सती बुर्ज / Sati Burj

सती बुर्ज, मथुरा

मथुरा नगर में जहाँ इस समय विश्राम घाट है, वहाँ मुसलमानी शासन काल में श्मशान था । उस घाट पर हिन्दुओं के शवों का दाहसंस्कार किया जाता था । तीर्थ स्थल होने के कारण अन्य स्थानों के धर्मप्राण हिन्दू भी अपने मृतकों का वहाँ दाहकर्म करने में पुण्य मानते थे । सम्राट अकबर के श्वसुर राजा बिहारीलाल की मृत्यु सं 1630 में हुई थी, जिनकी अन्त्येष्ठी मथुरा के विश्राम घाट पर की गई थी । उस समय उनकी रानी भी वहाँ सती हुई थी । उनकी स्मृति में उनके पुत्र राजा भगवान दास ने वहाँ एक स्तंभ निर्माण कराया था, जो 'सती का बुर्ज' कहलाता है । मथुरा की वर्तमान इमारतों में यह सबसे प्रचीन है । यह बुर्ज 55 फीट ऊँचा है, और चौमंजिला बना हुआ है । ऐसा कहा जाता है, पहले यह और भी अधिक ऊँचा था; किन्तु इसका ऊपरी भाग ओरंगजेब के काल में गिरा दिया गया था । कालांतर में टूटे भाग की मरम्मत ईंट-चूने से कर दी गई थी । इसके नीचे की मंजिलों में जो खिड़कियाँ, छ्ज्जे तथा महराबें आदि हैं, उन पर बेल-बूँटे, पुष्पावली और विविध पशुओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण है । इनसे उस काल के हिन्दू स्थापत्य की एक झांकी मिलती है । इस बुर्ज के समीपवर्ती घाटों पर और भी कई गुम्मजदार पुरानी इमारतें हैं । वे भी कुछ विशिष्ट व्यक्तियों की स्मृति में बनाई गयी होंगी ।
साँचा:Mathura temple