सत्यनारायण व्रत कथा

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
रेणु (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ११:४२, १२ मई २०१० का अवतरण (नया पन्ना: {{menu}} ==सत्यनारायण व्रत कथा / Satyanarayan vrat Katha== सत्यनारायण भगवान का पूजन व कथ…)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सत्यनारायण व्रत कथा / Satyanarayan vrat Katha

सत्यनारायण भगवान का पूजन व कथा प्रत्येक पूर्णिमा को होती है। भगवान सत्यनारायण विष्णु के ही रूप हैं। कथा के अनुसार इन्द्र का दर्प भंग करने के लिए विष्णु जी ने नर और नारायण के रूप में बद्रीनाथ में तपस्या की थी वहीं नारायण सत्य को धारण करते थे अत: सत्य नारायण कहे जाते थे। इनकी पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंच गव्य, सुपारी, पान, तिल, जौ, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यक्ता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद है। इन्हें प्रसाद के तौर पर फल, मिष्ठान के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर प्रसाद बनता है और फिर भोग लगता है।

श्री सत्यनारायण पूजन विधि

जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए। पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहाँ एक अल्पना बनाऐं और उस पर पूजा की चौकी रखें। इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाऐं। इस चौकी पर ठाकुर जी और श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, राम-सीता सहित लक्ष्मण की, राधा-कृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें। और संकल्प करें कि मै सत्यनारायण स्वामी का पूजन तथा कथा-श्रवण सदैव करूँगा। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें। पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें।

सत्यनारायण की कथा

एक ग़रीब ब्राह्मण था। ब्राह्मण भिक्षा के लिए दिन भर भटकता रहता था। भगवान विष्णु को उस ब्राह्मण की दीनता पर दया आई और एक दिन भगवान स्वयं ब्राह्मण वेष धारण कर उस विप्र के पास पहुँचे। विप्र से उन्होंने उनकी परेशानी सुनी और उन्हें सत्यनारायण पूजा की विधि बताकर भली प्रकार पूजन करने की सलाह दी। ब्राह्मण ने श्रद्धा पूर्वक सत्यनिष्ठ होकर सत्यनारायण की पूजा एवं कथा की। इसके प्रभाव से उसकी दरिद्रता समाप्त हो गयी और वह धन धान्य से सम्पन्न हो गया। लकड़हाड़े ने विप्र को सत्यनारायण की कथा करते देखा तो उनसे पूजन विधि जानकर भगवान की पूजा की जिससे वह धनवान बन गया। ये लोग सत्यनारायण की पूजा से मृत्यु पश्चात्त उत्तम लोक गये और कालान्तर में विष्णु की सेवा में रहकर मोक्ष के भागी बने।