गीता 5:6

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गीता अध्याय-5 श्लोक-6 / Gita Chapter-5 Verse-6

प्रसंग-


अब उपर्युक्त कर्मयोगी के लक्षणों का वर्णन करते हुए उसके कर्मों में लिप्त न होने की बात कहते हैं-


संन्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्रा न चिरेणाधिगच्छति ।।6।।




परंतु हे [[अर्जुन ! कर्मयोग के बिना संन्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाला सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग, प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्रा परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ।।6।।


Without karmayoga, however, sankhyayoga¼or renunciation of doership in relation to all activities of the mind, senses and body½ is difficult to accomplish; whereas the karmayogi, who keeps his mind fixed on God, reaches Brahma in no time, arjuna.(6)


तु = परन्तु; महाबाहो = हे अर्जुन; अयोगत: = निष्काम कर्म योग के बिना; संन्यास: = संन्यास अर्थात् मन इन्द्रियों और शरीर द्वारा होने वाले संपूर्ण कर्मों में कर्तापनका त्याग; आप्तुम् = प्राप्त होना; दु:खम् = कठिन है (और); मुनि: = स्वरूप को मनन करने वाला; योगयुक्त: = निष्काम कर्मयोगी; ब्रह्म = परब्रह्म परमात्मा को; नचिरेण = शीघ्र ही; अधिगच्छति = प्रापत हो जाता है।


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अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

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