गीता 11:31

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गीता अध्याय-11 श्लोक-31 / Gita Chapter-11 Verse-31

प्रसंग-


अर्जुन ने तीसरे और चौथे श्लोकों में भगवान् से अपने ऐश्वर्यमय रूप का दर्शन कराने के लिये प्रार्थना की थी, उसी के अनुसार भगवान् ने अपना विश्व रूप अर्जुन को दिखलाया; उनके मन में इस बात के जानने की इच्छा उत्पत्र हो गयी कि ये श्रीकृष्ण वस्तुत: कौन हैं ? तथा इस महान् उग्र स्वरूप के द्वारा अब ये क्या करना चाहते हैं ? इसीलिये वे भगवान् से पूछ रहे हैं-


आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम् ।।31।।



मुझे बतलाइये कि आप उग्ररूप वाले कौन हैं ? हे देवों में श्रेष्ठ ! आपको नमस्कार हो । आप प्रसत्र होइये । आदि पुरूष आपको मैं विशेष रूप से जानना चाहता हूँ, क्योंकि मैं आपकी प्रवृत्ति को नहीं जानता ।।31।।

Tell me who you are with a form so terrible. My obeisance to you, O best of gods; be king to me, I wish to know you, the primal being, in particular; for I know not your purpose. (31)


आख्याहि = कहिये(कि); भवान् = आप; उग्ररूप्: = उग्ररूपवाले; क: = कौन हैं; देववर = हे देवों में श्रेष्ठ; ते = आपको; नम: = नमस्कार; अस्तु = होवे(आप); प्रसीद = प्रसत्र होइये; आद्यम् = आदिस्वरूप; भवन्तम् = आपको(मैं); विज्ञातुम् = तत्त्वसे जानना; इच्छामि = चाहता हूं; हि = क्योंकि; तव = आपकी; प्रवृत्तिम् = प्रवृत्तिको(मैं); प्रजानामि = जानता


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अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

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