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गीता अध्याय-10 श्लोक-37 / Gita Chapter-10 Verse-37
वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनजय: ।
मुनीनामप्यहं व्यास: कवीनामुशना कवि: ।।37।।
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वृष्णिवंशियों में वासुदेव अर्थात् मैं स्वयं तेरा सखा, पाण्डवों में धनज्जय अर्थात् तू, मुनियों में वेदव्यास और कवियों में शुक्राचार्य कवि भी मैं ही हूँ ।।37।।
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I am Krishna among the vrsnis, Arjuna among the sons of Pandu, Vyasa among the sages, and the sage shukracharya among the wise. (37)
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वृष्णीनाम् = वृष्णिवंशियोंमें; वासुदेव: = वासुदेव अर्थात् मैं स्वयं तुम्हारा सखा (और); पाण्डवानाम् = पाण्डवोंमें; धनंजय: = धनंजय अर्थात् तूं(एवं); मुनीनाम् = मुनियोंमें; व्यास: = वेदव्यास; कबीनाम् = कवियोंमें; उशना = शुक्राचार्य; अपि = भी; अहम् = मैं(ही);अस्मि =हूं
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