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गीता अध्याय-4 श्लोक-4 / Gita Chapter-4 Verse-4
प्रसंग-
इस प्रकार भगवान् <balloon link="index.php?title=कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
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श्रीकृष्ण</balloon> के वचन सुनकर <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने पूछा, हे भगवन्
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत: ।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।।4।।
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अर्जुन बोले-
आपका जन्म तो अर्वाचीन अभी हाल का है और <balloon link="index.php?title=सूर्य" title="सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">सूर्य</balloon> का जन्म बहुत पुराना है अर्थात् कल्प के आदि में हो चुका था; तब मैं इस बात को कैसे समझूँ कि आप ही ने कल्प के आदि में सूर्य से यह योग कहा था ।।4।।
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Arjuna said:
The sun-god Vivasvan is senior by birth to You. How am I to understand that in the beginning You instructed this science to him ?(4)
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भवत: =आपका; जन्म =जन्म (तो); अपरम् = आधुनिक अर्थात् अब हुआ है(और); विवस्वत: = सूर्य का; जन्म = जन्म; परम् = बहुत पुराना है (इसलिये); एतत् = इस योग को (कल्प के); आदौ = आदि में; त्वम् = आपने; प्रोक्तवान् = कहा था; इति = यह (मैं); कथम् = कैसे; विजानीयाम् = जानूं।
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