बिम्बिसार

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बिम्बिसार

मगध के राजा बिम्बिसार की राजधानी राजगीर थी । बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे । वे पन्द्रह वर्ष की आयु में राजा बने और अपने पुत्र अजातसत्तु (संस्कृत- अजातशत्रु) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया । राजा पसेनदी की बहन और कोसल की राजकुमारी, इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माँ थी । खेमा, सीलव और जयसेना नामक इनकी अन्य पत्नियाँ थीं । विख्यात वारांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था । बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की । इसके साथ ही राजनीतिक शक्‍ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ । बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक/राजा माना जाता है । बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगीर) को अपनी राजधानी बनायी । इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया । बिम्बिसार (544 ई. पू. से 492 ई. पू.)- बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था । उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया । सुत्तनिपात अट्ठकथा के पब्बज सुत्त के अनुसार, इन्होंने संयासी गौतम का प्रथम दर्शन पाण्डव पर्वत के नीचे अपने राजभवन के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर, उन्हें अपने राजभवन में आमंत्रित किया । गौतम ने इनका निमंत्रण अस्वीकार किया तो इन्होंने गौतम को उनकी उद्देश्य-पूर्ति हेतु शुभकामनाएँ दी और बुद्धत्व-प्राप्ति के उपरान्त उन्हें फिर से राजगीर आने का निमंत्रण दिया । तेभतिक जटिल के परिवर्तन के बाद, बुद्ध ने राजगीर में पदापंण करके, अपना वचन पूरा किया । बुद्ध और उनके अनुयायी राजकीय अतिथियों की भाँति राजगीर आए । बुद्ध और उनके अनुयायियों के लिए वेलुवन उद्यान दान में देने के अपने प्रण की पूर्ति दर्शाने के लिए, बिम्बिसार ने बुद्ध के हाथ स्वर्ण-कलश के पानी से धुलवाए । अपि च, आगामी र्तृतीस वर्षों तक बिम्बिसार बौद्ध धर्म के विकास में सहायक बने ।