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==अक्षौहिणी / Akshohini==
 
==अक्षौहिणी / Akshohini==
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[[अलवेरूनी]] ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-
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*एक अक्षौहिणी में 10 अंतकिनियां होती हैं।
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*एक अंतकिनी में 3 चमू होते हैं।
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*एक चमू में 3 पृतना होते हैं।
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*एक पृतना में 3 वाहिनियां होती हैं।
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*एक वाहिनी में 3 गण होते हैं।
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*एक गण में 3 गुल्म होते हैं।
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*एक गुल्म में 3 सेनामुख होते हैं।
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*एक सेनामुख में 3 पंक्ति होती हैं।
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*एक पंक्ति में 1 रथ होता है।
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*शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस' (मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोडिसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद मिस्त्र पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
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*रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।
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*युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।
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एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 109,350 पैदल सैनिक होते हैं।
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हरेक रथ में चार घोड़े और उनका सारथी होता है जो वाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथी की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है।
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हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।
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तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 284,323 होती है (एवमेव)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या 87,480 होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या 21,870 होती है, रथों की संख्या भी 21,870 होती है, घोड़ों की संख्या 153,090 और मनुष्यों की संख्या 459,283 होती है।
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एक अक्षौहिणी में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों- की कुल संख्या 634,243 होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या 11,416,374 हो जाती है अर्थात 393,660 हाथी, 2,755,620 घोड़े, 8,267,094 मनुष्य।
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यह अक्षौहिणी और उसके विभिन्न अंगों की व्याख्या है।
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महाभारत
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(प्रथम खण्ड)
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आदिपर्व और सभापर्व, सचित्र हिन्दी-अनुवादसहित
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अक्षौहिणी— (पेज नं0-24 से 25 तक देखें)
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अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्।
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यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥
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अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है।
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सौतिरूवाच
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एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:।
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त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥
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उग्रश्रवाजी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥
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पत्तिं तु त्रिगुणामेतामाहु: सेनामुखं बुधा:।
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त्रीणि सेनामुखान्येको गुल्म इत्यभिधीयते॥
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इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान पुरूष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥
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त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रय:।
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स्मृतास्तिस्त्रस्तु वाहिन्य: पृतनेति विचक्षणै:॥
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तीन गुल्म का एक 'गण' होता है, तीन गण की एक 'वाहिनी' होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने 'पृतना' कहा है।
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चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।
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अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥
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तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है।
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अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:।
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संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥
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शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:।
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गजानां च परीमाणमेतदेव विनिर्दिशेत्॥
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श्रेष्ठ ब्राह्मणो! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये।
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ज्ञेयं शतसहस्त्रं तु सहस्त्राणि नवैव तु।
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नराणामपि पञ्चाशच्छतानि त्रीणि चानघा:॥
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निष्पाप ब्राह्मणो! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये।
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पञ्चषष्टिसहस्त्राणि तथाश्वानां शतानि च।
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दशोत्तराणि षट् प्राहुर्यथावदिह संख्यया॥
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एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक-ठीक संख्या पैंसठ हजार छ: सौ दश (65610) कही गयी है।
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एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:।
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यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥
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तपोधनो! संख्या का तत्त्व जाननेवाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आपलोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।
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एतया संख्यया ह्यासन् कुरूपाण्डवसेनयो:।
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अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्डिताष्टादशैव तु॥
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श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्डव दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी।
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समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:।
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कौरवान् कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥
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अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपञ्चक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं। 
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अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।
 
अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।
  

१०:३०, १० नवम्बर २००९ का अवतरण



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अक्षौहिणी / Akshohini

अलवेरूनी ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-

  • एक अक्षौहिणी में 10 अंतकिनियां होती हैं।
  • एक अंतकिनी में 3 चमू होते हैं।
  • एक चमू में 3 पृतना होते हैं।
  • एक पृतना में 3 वाहिनियां होती हैं।
  • एक वाहिनी में 3 गण होते हैं।
  • एक गण में 3 गुल्म होते हैं।
  • एक गुल्म में 3 सेनामुख होते हैं।
  • एक सेनामुख में 3 पंक्ति होती हैं।
  • एक पंक्ति में 1 रथ होता है।
  • शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस' (मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोडिसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग 900 वर्ष बाद मिस्त्र पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
  • रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।
  • युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।

एक अक्षौहिणी में 21,870 रथ, 21,870 हाथी, 65,610 सवार और 109,350 पैदल सैनिक होते हैं। हरेक रथ में चार घोड़े और उनका सारथी होता है जो वाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथी की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है। हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है। तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या 284,323 होती है (एवमेव)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या 87,480 होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या 21,870 होती है, रथों की संख्या भी 21,870 होती है, घोड़ों की संख्या 153,090 और मनुष्यों की संख्या 459,283 होती है। एक अक्षौहिणी में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों- की कुल संख्या 634,243 होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या 11,416,374 हो जाती है अर्थात 393,660 हाथी, 2,755,620 घोड़े, 8,267,094 मनुष्य। यह अक्षौहिणी और उसके विभिन्न अंगों की व्याख्या है। महाभारत (प्रथम खण्ड) आदिपर्व और सभापर्व, सचित्र हिन्दी-अनुवादसहित अक्षौहिणी— (पेज नं0-24 से 25 तक देखें) अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्। यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥ अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है। सौतिरूवाच एको रथो गजश्चैको नरा: पञ्च पदातय:। त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥ उग्रश्रवाजी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥ पत्तिं तु त्रिगुणामेतामाहु: सेनामुखं बुधा:। त्रीणि सेनामुखान्येको गुल्म इत्यभिधीयते॥ इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान पुरूष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥ त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रय:। स्मृतास्तिस्त्रस्तु वाहिन्य: पृतनेति विचक्षणै:॥ तीन गुल्म का एक 'गण' होता है, तीन गण की एक 'वाहिनी' होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने 'पृतना' कहा है। चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी। अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥ तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है। अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:। संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥ शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:। गजानां च परीमाणमेतदेव विनिर्दिशेत्॥ श्रेष्ठ ब्राह्मणो! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये। ज्ञेयं शतसहस्त्रं तु सहस्त्राणि नवैव तु। नराणामपि पञ्चाशच्छतानि त्रीणि चानघा:॥ निष्पाप ब्राह्मणो! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये। पञ्चषष्टिसहस्त्राणि तथाश्वानां शतानि च। दशोत्तराणि षट् प्राहुर्यथावदिह संख्यया॥ एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक-ठीक संख्या पैंसठ हजार छ: सौ दश (65610) कही गयी है। एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:। यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥ तपोधनो! संख्या का तत्त्व जाननेवाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आपलोगों को विस्तारपूर्वक बताया है। एतया संख्यया ह्यासन् कुरूपाण्डवसेनयो:। अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्डिताष्टादशैव तु॥ श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्डव दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी। समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:। कौरवान् कारणं कृत्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥ अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपञ्चक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं।



अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम् ।

प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥ [१]

महाभारत के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई ।

एक अक्षौहिणी सेना :

एक अक्षौहिणी में 21870 हाथी, 21870 रथ, 65610 घोड़े और 109350 पैदल होते थे। कुरूक्षेत्र के युद्ध में इस प्रकार की 18 अक्षोहिणी सेना ने भाग लिया था।

  • 21,870 रथ
  • 21,870 हाथी
  • 1,09,350 पैदल
  • 65,610 घुड़सवार

प्राचीन काल की चतुरंगिणी सेना:

प्राचीन भारत में सेना के चार अंग होते थे-हाथी, घोड़े, रथ और पैदल। जिस सेना में ये चारों अंग होते थे, वह चतुरंगिणी कहलाती थी। सेना की गणना अक्षौहिणी से भी होती थीं ।

  • 1,09,350 पैदल
  • 65,610 घोड़े
  • 21,870 रथ
  • 21,870 हाथी



टीका-टिप्पणी

  1. (5.49.19.0.6 उद्योगपर्व, एकोनविंशोऽध्यायः (19) श्लोक 6)