"अयोध्या" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति २: पंक्ति २:
 
{{incomplete}}
 
{{incomplete}}
 
==अयोध्या / [[:en:Ayodhya|Ayodhya]]==
 
==अयोध्या / [[:en:Ayodhya|Ayodhya]]==
*अयोध्या [[उत्तर प्रदेश]] प्रान्त का एक शहर है। अयोध्या फ़ैज़ाबाद ज़िले में आता है।  
+
[[चित्र:Laxman-Ghat-Ayodhya.jpg|thumb|लक्ष्मण घाट, अयोध्या<br /> Laxman Ghat, Ayodhya]]
*[[राम]] की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है।  
+
अयोध्या [[उत्तर प्रदेश]] प्रान्त का एक शहर है। अयोध्या [[फ़ैज़ाबाद ज़िला|फ़ैज़ाबाद ज़िले]] में आता है। दशरथ अयोध्या के राजा थे। श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। [[राम]] की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में [[सरयू नदी]] के दाएँ तट पर स्थित है। अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और [[सप्ततीर्थ|सात पवित्र तीर्थस्थलों]] में एक है। अयोध्या को [[अथर्ववेद]] में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। [[रामायण]] के अनुसार अयोध्या की स्थापना [[वैवस्वत|मनु]] ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर [[सूर्य वंश]] की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहाँ आज भी [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]], [[बौद्ध]], [[इस्लाम]] और [[जैन]] धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पाँच [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] का जन्म हुआ था।
*प्राचीन काल में यह [[कौशल]] देश कहा जाता था। अयोध्या हिन्दुओं का प्राचीन और [[सप्ततीर्थ|सात पवित्र तीर्थस्थलों]] में एक है।  
+
==इतिहास==
*अयोध्या को [[अथर्ववेद]] में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।  
+
अयोध्या पुण्यनगरी है। अयोध्या श्रीरामचन्द्रजी की जन्मभूमि होने के नाते [[भारत]] के प्राचीन साहित्य व इतिहास में सदा से प्रसिद्ध रही है। अयोध्या की गणना भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है।<ref>अयोध्या [[मथुरा]] माया काशी काचिरवन्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैते मोक्षदायिका:</ref> अयोध्या की महत्त्वता के बारे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनसाधारण में निम्न कहावत प्रचलित है-
*[[रामायण]] के अनुसार अयोध्या की स्थापना [[वैवस्वत|मनु]] ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर [[सूर्य वंश]] की राजधानी रहा। *अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहाँ आज भी [[हिन्दू]], [[बौद्ध]], [[इस्लाम]] और [[जैन]] धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं।  
+
 
*जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पांच [[तीर्थंकर|तीर्थंकरों]] का जन्म हुआ था।
+
'''गंगा बड़ी गोदावरी, तीरथ बड़ो प्रयाग, सबसे बड़ी अयोध्यानगरी जहँ राम लियो अवतार'''।
 +
 
 +
महाकाव्यों में अयोध्या नगर का विशद वर्णन मिलता है। [[रामायण]] में अयोध्या का उल्लेख [[कोशल]] जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है।<ref>एस. सी. डे, हिस्टारिसिटी ऑफ़ [[रामायण]] एंड दि इंडो आर्यन सोसाइटी इन इंडिया एंड सीलोन ([[दिल्ली]], अजंता पब्लिकेशंस, पुनमुर्दित, [[1976]]), पृष्ठ 80-81</ref> [[पुराण|पुराणों]] में इस नगर के संबंध में कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है, परन्तु इस नगर के शासकों की वंशावलियाँ अवश्य मिलती हैं, जो इस नगर की प्राचीनता एवं महत्त्व के प्रामाणिक साक्ष्य हैं। ब्राह्मण साहित्य में इसका वर्णन एक ग्राम के रूप में किया गया है।<ref>ऐतरेय ब्राह्मण, 7/3/1; देखें, ज. रा. ए. सो, [[1971]], पृष्ठ 52 (पादटिप्पणी)</ref> कोशल या कोसल सरयू के तीर पर बसा हुआ एक धनधान्यपूर्ण राज्य था।<ref>'कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान् निर्विष्ट सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्, अयोध्यानाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता। मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम्।</ref>  अयोध्या<ref>([[रामायण]] [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 5,5-6 के अनुसार)</ref> का विस्तार लंबाई में बारह योजन, और चौड़ाई मे तीन योजन था।<ref>'आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी, श्रीमती त्रोणिविस्तीर्णा सुविभक्तमहापथा'- [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 5, 7।</ref>  अयोध्या अनेक राजमार्गों से सुशोभित थी। उसकी प्रधान सड़कों पर जो बड़ी सुन्दर व चौड़ी थीं प्रतिदिन [[भारत के पुष्प|फूल]] बिखेरे जाते थे और उनका जल से सिंचन होता था।<ref>'राजमार्गेण महता सुविभक्तेन शोभिता, मुक्तपुष्पावकीर्णेन जलसिक्तेन नित्यश:' [[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 5,8</ref>  सूत और मागध उस नगरी में बहुत थें अयोध्या बहुत ही सुन्दर नगरी थी। अयोध्या में ऊँची अटारियों पर ध्वजाएँ शोभायमान थीं और सैकड़ों शतघ्नियां उसकी रक्षा के लिए लगी हुई थीं।<ref>'सूतमागधसंबाधां श्रीमतीमतुलप्रभाम्, उच्चाट्टालध्वजवतीं शतघ्नीशतसंकुलाम्' बालका 5, 11</ref> 
 +
 
 +
राम के समय यह नगर [[अवध]] नाम की राजधानी से सुशोभित था।<ref>नंदूलाल डे, दि जियोग्राफ़िकल डिक्शनरी ऑफ़, ऐंश्येंट एंड मिडिवल इंडिया, पृष्ठ 14</ref> बौद्ध-ग्रन्थों के अनुसार अयोध्या पूर्ववती तथा [[साकेत]] परवर्ती राजधानी थी। हिन्दुओं के साथ पवित्र स्थानों में इसका नाम मिलता है। [[फ़ाह्यान]]  ने इसका ‘शा-चें’ नाम से उल्लेख किया है, जो [[कन्नौज]] से 13 [[योजन]]  दक्षिण-पूर्व में स्थित था। <ref>जेम्स लेग्गे, दि ट्रैवेल्स ऑफ़ फ़ाह्यान ओरियंटल पब्लिशर्स, दिल्ली, पुनर्मुद्रित 1972, पृष्ठ 54</ref> मललसेकर ने पालि-परंपरा के साकेत को सई नदी के किनारे उन्नाव ज़िले में स्थित सुजानकोट के खंडहरों से समीकृत किया है।<ref>जी पी मललसेकर, डिक्शनरी ऑफ़ पालि प्रापर नेम्स, भाग 2 पृष्ठ 1086</ref>  नालियाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी ने भी इसका समीकरण सुजानकोट से किया है।<ref>नलिनाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी, उत्तर प्रदेश में [[बौद्ध धर्म]] का विकास (प्रकाशन ब्यूरो, उत्तर प्रदेश सरकार, [[लखनऊ]], प्रथम संस्करण, [[1956]]) पृष्ठ 7 एवं 12</ref>  थेरगाथा अट्ठकथा<ref>थेरगाथा अट्ठकथा, भाग 1, पृष्ठ 103</ref>  में साकेत को [[सरयू नदी]] के किनारे बताया गया है। अत: संभव है कि पालि का साकेत, आधुनिक अयोध्या का ही एक भाग रहा हो।
 +
 
 +
अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी थी। स्वयं मनु ने<ref>[[बाल काण्ड वा. रा.|बालकाण्ड]] 5, 6 के अनुसार</ref>  अयोध्या का निर्माण किया था। वाल्मीकि रामायण<ref>([[वाल्मीकि रामायण]] [[उत्तर काण्ड वा. रा.|उत्तर काण्ड]]  108, 4)</ref>  से विदित होता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व रामचंद्रजी ने [[लव कुश|कुश]] को कुशावती नामक नगरी का राजा बनाया था। श्रीराम के पश्चात् अयोध्या उजाड़ हो गई थी क्योंकि उनके उत्तराधिकारी कुश ने अपनी राजधानी कुशावती में बना ली थी। [[रघु वंश]] ([[रघु वंश]] सर्ग 16) से विदित होता है कि अयोध्या की दीन-हीन दशा देखकर कुश ने अपनी राजधानी पुन: अयोध्या में बनाई थी। [[महाभारत]] में अयोध्या के [[दीर्घयज्ञ]] नामक राजा का उल्लेख है जिसे भीमसेन ने पूर्वदेश की दिग्विजय में जीता था।<ref>अयोध्यां तु धर्मज्ञं दीर्घयज्ञं महाबलम्, अजयत् पांडवश्रेष्ठो नातितीव्रेणकर्मणा- सभापर्व 30-2</ref> घटजातक में अयोध्या (अयोज्झा) के कालसेन नामक राजा का उल्लेख है। <ref>(जातक संख्या 454)</ref> [[गौतमबुद्ध]] के समय कोसल के दो भाग हो गए थे- उत्तरकोसल और दक्षिणकोसल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी। अयोध्या या साकेत उत्तरी भाग की और श्रावस्ती दक्षिणी भाग की राजधानी थी। इस समय श्रावस्ती का महत्त्व अधिक बढ़ा हुआ था। बौद्ध काल में ही अयोध्या के निकट एक नई बस्ती बन गई थी जिसका नाम साकेत था। बौद्ध साहित्य में साकेत और अयोध्या दोनों का नाम साथ-साथ भी मिलता है<ref>(देखिए रायसडेवीज बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ 39)</ref>  जिससे दोनों के भिन्न अस्तित्व की सूचना मिलती है।
 +
 
 +
==उल्लेख ==
 +
[[शुंग वंश]] के प्रथम शासक पुष्यमित्र (द्वितीय शती ई. पू.) का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के लिए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय [[चंद्रगुप्त द्वितीय]] के समय (चतुर्थ शती ई. का मध्यकाल) और तत्पश्चात् काफ़ी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि [[कालिदास]] ने अयोध्या का रघु वंश में कई बार उल्लेख किया है।<ref>'जलानि या तीरनिखातयूपा वहत्ययोध्यामनुराजधानीम्' [[रघु वंश]] 13, 61; 'आलोकयिष्यन्मुदितामयोध्यां प्रासादमभ्रंलिहमारुरोह'- [[रघु वंश]] 14, 29</ref> कालिदास ने उत्तरकोसल की राजधानी साकेत<ref>([[रघु वंश]] 5,31; 13,62)</ref> और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है, इससे जान पड़ता है कि कालिदास के समय में दोनों ही नाम प्रचलित रहे होंगे। मध्यकाल में अयोध्या का नाम अधिक सुनने में नहीं आता था। युवानच्वांग के वर्णनों से ज्ञात होता है कि उत्तर बुद्धकाल में अयोध्या का महत्त्व धट चुका था। जैन ग्रन्थ विविधतीर्थकल्प में अयोध्या को ऋषभ, अजित, अभिनंदन, सुमति, अनन्त और अचलभानु- इन जैन मुनियों का जन्मस्थान माना गया है। नगरी का विस्तार लम्बाई में 12 योजन और चौड़ाई में 9 योजन कहा गया है। इस ग्रन्थ में वर्णित है कि [[चक्रेश्वरी]] और [[गोमुख यक्ष]] अयोध्या के निवासी थे। घर्घर-दाह और सरयू का अयोध्या के पास संगम बताया है और संयुक्त नदी को स्वर्गद्वारा नाम से अभिहित किया गया है। नगरी से 12 योजन पर अष्टावट या अष्टापद पहाड़ पर आदि-गुरु का कैवल्यस्थान माना गया है। इस ग्रन्थ में यह भी वर्णित है कि अयोध्या के चारों द्वारों पर 24 जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित थीं। एक मूर्ति की चालुक्य नरेश कुमारपाल ने प्रतिष्ठापना की थी। इस ग्रन्थ में अयोध्या को [[दशरथ]], [[राम]] और [[भरत]] की राजधानी बताया गया है। जैनग्रन्थों में अयोध्या को विनीता भी कहा गया है।
 +
==मध्यकाल में अयोध्या==
 +
मध्यकाल में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय, अयोध्या बेचारी उपेक्षिता ही बनी रही, यहाँ तक कि मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक [[बाबर]] के एक सेनापति ने [[बिहार]] अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन मंदिर को तोड़कर एक मसजिद बनवाई जो आज भी विद्यमान है। मसजिद में लगे हुए अनेक स्तंभ और शिलापट्ट उसी प्राचीन मंदिर के हैं। अयोध्या के वर्तमान मंदिर कनकभवन आदि अधिक प्राचीन नहीं हैं और वहाँ यह कहावत प्रचलित है कि सरयू को छोड़कर रामचंद्रजी के समय की कोई निशानी नहीं है। कहते हैं कि अवध के नवाबों ने जब फ़ैज़ाबाद में राजधानी बनाई थी तो वहाँ के अनेक महलों में अयोध्या के पुराने मंदिरों की सामग्री उपयोग में लाई गई थी।
 +
 
 +
सुखोदय राज्य की अवनति के पश्चात् 1350 ई. में स्याम में अयोध्याराज्य की स्थापना की गई थी। इसका श्रेय उटोंग के शासक को दिया जाता है जिसने रामाधिपति की उपाधि ग्रहण की थी। अपने राज्य की राजधानी उसने अयुठिया या अयोध्या में बनाई। इस राज्य का प्रभुत्व धीरे-धीरे लाओस और कंबोडिया तक स्थापित हो गया था किंतु [[बर्मा]] के राजाओं ने अयोध्या के विस्तार को रोक दिया। 1767 ई. में बर्मा के स्याम पर आक्रमण के समय अयोध्या-नगरी को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया और तत्पश्चात् स्याम की राजधानी बैंकाक में बनी।
 +
==पर्यटन==
 +
अयोध्या घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी है। सरयू नदी यहाँ से होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। मंदिरों में 'कनक भवन' सबसे सुंदर है। लोकमान्यता के अनुसार [[कैकेयी]] ने इसे [[सीता]] को मुंह दिखाई में दिया था। ऊँचे टीले पर हनुमानगढ़ी आकर्षक का केंद्र है। इस नगर में रामजन्मभूमि-स्थल की बड़ी महिमा है। इस स्थान पर विक्रमादित्य का बनवाया हुआ एक भव्य मंदिर था किंतु [[बाबर]] के शासनकाल में वहाँ पर मस्जिद बना दी गई। जिसे [[6 दिसंबर]] [[1992]] को कुछ कट्टरपंथियों ने गिरा दिया। इस विवादास्पद स्थान पर इस समय रामलला की मूर्ति स्थापित है सरयू के निकट नागेश्वर का मंदिर [[शिव]] के [[द्वादश ज्योतिर्लिंग|बारह ज्योतिलिंगों]] में गिना जाता है। 'तुलसी चौरा' वह स्थान है जहाँ बैठकर [[तुलसीदास]] जी ने [[रामचरितमानस]] की रचना आरंभ की थी। प्रह्लाद घाट के पास [[गुरु नानक]] भी आकर ठहरे थे।
 +
 
 +
अयोध्या जैन धर्मावलंबियों का भी तीर्थ-स्थान है। वर्तमान युग के चौबीस तीर्थकरों में से पांच का जन्म अयोध्या में हुआ था। इनमें प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव भी सम्मिलित है।
  
 
==सम्बंधित लिंक==
 
==सम्बंधित लिंक==
पंक्ति १७: पंक्ति ३४:
 
[[Category:रामायण]]
 
[[Category:रामायण]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 +
__NOTOC__

०५:०४, १ अक्टूबर २०१० का अवतरण


Logo.jpg पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार कर सकते हैं। हिंदी (देवनागरी) टाइप की सुविधा संपादन पन्ने पर ही उसके नीचे उपलब्ध है।

अयोध्या / Ayodhya

थंबनेल बनाने में त्रुटि हुई है: /bin/bash: /usr/local/bin/convert: No such file or directory Error code: 127
लक्ष्मण घाट, अयोध्या
Laxman Ghat, Ayodhya

अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। अयोध्या फ़ैज़ाबाद ज़िले में आता है। दशरथ अयोध्या के राजा थे। श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएँ तट पर स्थित है। अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में एक है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहाँ आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।

इतिहास

अयोध्या पुण्यनगरी है। अयोध्या श्रीरामचन्द्रजी की जन्मभूमि होने के नाते भारत के प्राचीन साहित्य व इतिहास में सदा से प्रसिद्ध रही है। अयोध्या की गणना भारत की प्राचीन सप्तपुरियों में प्रथम स्थान पर की गई है।[१] अयोध्या की महत्त्वता के बारे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनसाधारण में निम्न कहावत प्रचलित है-

गंगा बड़ी गोदावरी, तीरथ बड़ो प्रयाग, सबसे बड़ी अयोध्यानगरी जहँ राम लियो अवतार

महाकाव्यों में अयोध्या नगर का विशद वर्णन मिलता है। रामायण में अयोध्या का उल्लेख कोशल जनपद की राजधानी के रूप में किया गया है।[२] पुराणों में इस नगर के संबंध में कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता है, परन्तु इस नगर के शासकों की वंशावलियाँ अवश्य मिलती हैं, जो इस नगर की प्राचीनता एवं महत्त्व के प्रामाणिक साक्ष्य हैं। ब्राह्मण साहित्य में इसका वर्णन एक ग्राम के रूप में किया गया है।[३] कोशल या कोसल सरयू के तीर पर बसा हुआ एक धनधान्यपूर्ण राज्य था।[४] अयोध्या[५] का विस्तार लंबाई में बारह योजन, और चौड़ाई मे तीन योजन था।[६] अयोध्या अनेक राजमार्गों से सुशोभित थी। उसकी प्रधान सड़कों पर जो बड़ी सुन्दर व चौड़ी थीं प्रतिदिन फूल बिखेरे जाते थे और उनका जल से सिंचन होता था।[७] सूत और मागध उस नगरी में बहुत थें अयोध्या बहुत ही सुन्दर नगरी थी। अयोध्या में ऊँची अटारियों पर ध्वजाएँ शोभायमान थीं और सैकड़ों शतघ्नियां उसकी रक्षा के लिए लगी हुई थीं।[८]

राम के समय यह नगर अवध नाम की राजधानी से सुशोभित था।[९] बौद्ध-ग्रन्थों के अनुसार अयोध्या पूर्ववती तथा साकेत परवर्ती राजधानी थी। हिन्दुओं के साथ पवित्र स्थानों में इसका नाम मिलता है। फ़ाह्यान ने इसका ‘शा-चें’ नाम से उल्लेख किया है, जो कन्नौज से 13 योजन दक्षिण-पूर्व में स्थित था। [१०] मललसेकर ने पालि-परंपरा के साकेत को सई नदी के किनारे उन्नाव ज़िले में स्थित सुजानकोट के खंडहरों से समीकृत किया है।[११] नालियाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी ने भी इसका समीकरण सुजानकोट से किया है।[१२] थेरगाथा अट्ठकथा[१३] में साकेत को सरयू नदी के किनारे बताया गया है। अत: संभव है कि पालि का साकेत, आधुनिक अयोध्या का ही एक भाग रहा हो।

अयोध्या रघुवंशी राजाओं की बहुत पुरानी राजधानी थी। स्वयं मनु ने[१४] अयोध्या का निर्माण किया था। वाल्मीकि रामायण[१५] से विदित होता है कि स्वर्गारोहण से पूर्व रामचंद्रजी ने कुश को कुशावती नामक नगरी का राजा बनाया था। श्रीराम के पश्चात् अयोध्या उजाड़ हो गई थी क्योंकि उनके उत्तराधिकारी कुश ने अपनी राजधानी कुशावती में बना ली थी। रघु वंश (रघु वंश सर्ग 16) से विदित होता है कि अयोध्या की दीन-हीन दशा देखकर कुश ने अपनी राजधानी पुन: अयोध्या में बनाई थी। महाभारत में अयोध्या के दीर्घयज्ञ नामक राजा का उल्लेख है जिसे भीमसेन ने पूर्वदेश की दिग्विजय में जीता था।[१६] घटजातक में अयोध्या (अयोज्झा) के कालसेन नामक राजा का उल्लेख है। [१७] गौतमबुद्ध के समय कोसल के दो भाग हो गए थे- उत्तरकोसल और दक्षिणकोसल जिनके बीच में सरयू नदी बहती थी। अयोध्या या साकेत उत्तरी भाग की और श्रावस्ती दक्षिणी भाग की राजधानी थी। इस समय श्रावस्ती का महत्त्व अधिक बढ़ा हुआ था। बौद्ध काल में ही अयोध्या के निकट एक नई बस्ती बन गई थी जिसका नाम साकेत था। बौद्ध साहित्य में साकेत और अयोध्या दोनों का नाम साथ-साथ भी मिलता है[१८] जिससे दोनों के भिन्न अस्तित्व की सूचना मिलती है।

उल्लेख

शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र (द्वितीय शती ई. पू.) का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसे सेनापति कहा गया है तथा उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के लिए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चंद्रगुप्त द्वितीय के समय (चतुर्थ शती ई. का मध्यकाल) और तत्पश्चात् काफ़ी समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघु वंश में कई बार उल्लेख किया है।[१९] कालिदास ने उत्तरकोसल की राजधानी साकेत[२०] और अयोध्या दोनों ही का नामोल्लेख किया है, इससे जान पड़ता है कि कालिदास के समय में दोनों ही नाम प्रचलित रहे होंगे। मध्यकाल में अयोध्या का नाम अधिक सुनने में नहीं आता था। युवानच्वांग के वर्णनों से ज्ञात होता है कि उत्तर बुद्धकाल में अयोध्या का महत्त्व धट चुका था। जैन ग्रन्थ विविधतीर्थकल्प में अयोध्या को ऋषभ, अजित, अभिनंदन, सुमति, अनन्त और अचलभानु- इन जैन मुनियों का जन्मस्थान माना गया है। नगरी का विस्तार लम्बाई में 12 योजन और चौड़ाई में 9 योजन कहा गया है। इस ग्रन्थ में वर्णित है कि चक्रेश्वरी और गोमुख यक्ष अयोध्या के निवासी थे। घर्घर-दाह और सरयू का अयोध्या के पास संगम बताया है और संयुक्त नदी को स्वर्गद्वारा नाम से अभिहित किया गया है। नगरी से 12 योजन पर अष्टावट या अष्टापद पहाड़ पर आदि-गुरु का कैवल्यस्थान माना गया है। इस ग्रन्थ में यह भी वर्णित है कि अयोध्या के चारों द्वारों पर 24 जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित थीं। एक मूर्ति की चालुक्य नरेश कुमारपाल ने प्रतिष्ठापना की थी। इस ग्रन्थ में अयोध्या को दशरथ, राम और भरत की राजधानी बताया गया है। जैनग्रन्थों में अयोध्या को विनीता भी कहा गया है।

मध्यकाल में अयोध्या

मध्यकाल में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय, अयोध्या बेचारी उपेक्षिता ही बनी रही, यहाँ तक कि मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन मंदिर को तोड़कर एक मसजिद बनवाई जो आज भी विद्यमान है। मसजिद में लगे हुए अनेक स्तंभ और शिलापट्ट उसी प्राचीन मंदिर के हैं। अयोध्या के वर्तमान मंदिर कनकभवन आदि अधिक प्राचीन नहीं हैं और वहाँ यह कहावत प्रचलित है कि सरयू को छोड़कर रामचंद्रजी के समय की कोई निशानी नहीं है। कहते हैं कि अवध के नवाबों ने जब फ़ैज़ाबाद में राजधानी बनाई थी तो वहाँ के अनेक महलों में अयोध्या के पुराने मंदिरों की सामग्री उपयोग में लाई गई थी।

सुखोदय राज्य की अवनति के पश्चात् 1350 ई. में स्याम में अयोध्याराज्य की स्थापना की गई थी। इसका श्रेय उटोंग के शासक को दिया जाता है जिसने रामाधिपति की उपाधि ग्रहण की थी। अपने राज्य की राजधानी उसने अयुठिया या अयोध्या में बनाई। इस राज्य का प्रभुत्व धीरे-धीरे लाओस और कंबोडिया तक स्थापित हो गया था किंतु बर्मा के राजाओं ने अयोध्या के विस्तार को रोक दिया। 1767 ई. में बर्मा के स्याम पर आक्रमण के समय अयोध्या-नगरी को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया और तत्पश्चात् स्याम की राजधानी बैंकाक में बनी।

पर्यटन

अयोध्या घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी है। सरयू नदी यहाँ से होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। मंदिरों में 'कनक भवन' सबसे सुंदर है। लोकमान्यता के अनुसार कैकेयी ने इसे सीता को मुंह दिखाई में दिया था। ऊँचे टीले पर हनुमानगढ़ी आकर्षक का केंद्र है। इस नगर में रामजन्मभूमि-स्थल की बड़ी महिमा है। इस स्थान पर विक्रमादित्य का बनवाया हुआ एक भव्य मंदिर था किंतु बाबर के शासनकाल में वहाँ पर मस्जिद बना दी गई। जिसे 6 दिसंबर 1992 को कुछ कट्टरपंथियों ने गिरा दिया। इस विवादास्पद स्थान पर इस समय रामलला की मूर्ति स्थापित है सरयू के निकट नागेश्वर का मंदिर शिव के बारह ज्योतिलिंगों में गिना जाता है। 'तुलसी चौरा' वह स्थान है जहाँ बैठकर तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना आरंभ की थी। प्रह्लाद घाट के पास गुरु नानक भी आकर ठहरे थे।

अयोध्या जैन धर्मावलंबियों का भी तीर्थ-स्थान है। वर्तमान युग के चौबीस तीर्थकरों में से पांच का जन्म अयोध्या में हुआ था। इनमें प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव भी सम्मिलित है।

सम्बंधित लिंक


  1. अयोध्या मथुरा माया काशी काचिरवन्तिका, पुरी द्वारावती चैव सप्तैते मोक्षदायिका:
  2. एस. सी. डे, हिस्टारिसिटी ऑफ़ रामायण एंड दि इंडो आर्यन सोसाइटी इन इंडिया एंड सीलोन (दिल्ली, अजंता पब्लिकेशंस, पुनमुर्दित, 1976), पृष्ठ 80-81
  3. ऐतरेय ब्राह्मण, 7/3/1; देखें, ज. रा. ए. सो, 1971, पृष्ठ 52 (पादटिप्पणी)
  4. 'कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान् निर्विष्ट सरयूतीरे प्रभूतधनधान्यवान्, अयोध्यानाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता। मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम्।
  5. (रामायण बालकाण्ड 5,5-6 के अनुसार)
  6. 'आयता दश च द्वे च योजनानि महापुरी, श्रीमती त्रोणिविस्तीर्णा सुविभक्तमहापथा'- बालकाण्ड 5, 7।
  7. 'राजमार्गेण महता सुविभक्तेन शोभिता, मुक्तपुष्पावकीर्णेन जलसिक्तेन नित्यश:' बालकाण्ड 5,8
  8. 'सूतमागधसंबाधां श्रीमतीमतुलप्रभाम्, उच्चाट्टालध्वजवतीं शतघ्नीशतसंकुलाम्' बालका 5, 11
  9. नंदूलाल डे, दि जियोग्राफ़िकल डिक्शनरी ऑफ़, ऐंश्येंट एंड मिडिवल इंडिया, पृष्ठ 14
  10. जेम्स लेग्गे, दि ट्रैवेल्स ऑफ़ फ़ाह्यान ओरियंटल पब्लिशर्स, दिल्ली, पुनर्मुद्रित 1972, पृष्ठ 54
  11. जी पी मललसेकर, डिक्शनरी ऑफ़ पालि प्रापर नेम्स, भाग 2 पृष्ठ 1086
  12. नलिनाक्ष दत्त एवं कृष्णदत्त बाजपेयी, उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का विकास (प्रकाशन ब्यूरो, उत्तर प्रदेश सरकार, लखनऊ, प्रथम संस्करण, 1956) पृष्ठ 7 एवं 12
  13. थेरगाथा अट्ठकथा, भाग 1, पृष्ठ 103
  14. बालकाण्ड 5, 6 के अनुसार
  15. (वाल्मीकि रामायण उत्तर काण्ड 108, 4)
  16. अयोध्यां तु धर्मज्ञं दीर्घयज्ञं महाबलम्, अजयत् पांडवश्रेष्ठो नातितीव्रेणकर्मणा- सभापर्व 30-2
  17. (जातक संख्या 454)
  18. (देखिए रायसडेवीज बुद्धिस्ट इंडिया, पृष्ठ 39)
  19. 'जलानि या तीरनिखातयूपा वहत्ययोध्यामनुराजधानीम्' रघु वंश 13, 61; 'आलोकयिष्यन्मुदितामयोध्यां प्रासादमभ्रंलिहमारुरोह'- रघु वंश 14, 29
  20. (रघु वंश 5,31; 13,62)