"अवंती" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति ४: पंक्ति ४:
 
[[चित्र:Avanti-Map.jpg|thumb|300px|अवंति महाजनपद<br /> Avanti Great Realm]]
 
[[चित्र:Avanti-Map.jpg|thumb|300px|अवंति महाजनपद<br /> Avanti Great Realm]]
 
अवंती, पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक [[मालवा]] का प्रदेश जिसकी राजधानी [[उज्जयिनी]] और [[महिष्मति]] थी। उज्जयिनी (उज्जैन) मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। प्राचीन [[संस्कृत]] तथा [[पालि भाषा|पाली]] साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। [[महाभारत]]<balloon title="महाभारत, सभा 31, 10" style="color:blue">*</balloon> में [[सहदेव]] द्वारा अवंती को विजित करने का वर्णन है। [[बौद्ध]] काल में अवंती उत्तरभारत के [[सोलह महाजनपद|शोडश महाजनपदों]] में से थी जिनकी सूची [[अंगुत्तरनिकाय]] में हैं। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में इसी जनपद को मालव कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमान [[मालवा]], निमाड़ और मध्य प्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार अवंती की स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी। [[गौतम बुद्ध|बुद्ध]] के समय अवंती का राजा चंडप्रद्योत था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भासरचित 'स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में है। वासवदत्ता को अवन्ती से सम्बंधित मानते हुए एक स्थान पर इस नाटक में कहा गया है-'हम! अतिसद्दशी खल्वियमार्याय अवंतिकाया:<balloon title="स्वप्नवासवदत्ता अंक 6" style="color:blue">*</balloon> चतुर्थ शती ई॰ पू॰ में अवन्ती का जनपद मौर्य-साम्राज्य में सम्मिलित था और उज्जयिनी मगध-साम्राज्य के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व मगध और अवन्ती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा था जिसकी सूचना हमें परिशिष्टपर्वन<balloon title=" परिशिष्टपर्वन पृ॰ 42" style="color:blue">*</balloon> से मिलती है। कथासरित्सागर<balloon title="(टॉनी का अनुवाद जिल्द 2, पृ॰ 484)" style="color:blue">*</balloon> से यह ज्ञात होता है कि अवन्तीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने [[कौशाम्बी]] को अपने राज्य में मिला लिया था। [[विष्णु पुराण]]<balloon title=" विष्णु पुराण 4,24,68" style="color:blue">*</balloon> से विदित होता है कि संभवत: [[गुप्त काल]] से पूर्व अवन्ती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था-'सौराष्ट्रावन्ति…विषयांश्च--आभीर शूद्राद्या भोक्ष्यन्ते'। ऐतिहासिक परम्परा से हमें यह भी विदित होता है कि प्रथम शती ई॰ पू॰ में (57 ई॰ पू॰ के लगभग) विक्रम संवत के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्त काल में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़ फैंका। कुछ विद्वानों के मत में 57 ई॰ पू॰ में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं था और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ही अवंती-विजय के पश्चात मालव संवत को जो 57 ई॰ पू॰ में प्रारम्भ हुआ था, विक्रम संवत का नाम दे दिया।
 
अवंती, पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक [[मालवा]] का प्रदेश जिसकी राजधानी [[उज्जयिनी]] और [[महिष्मति]] थी। उज्जयिनी (उज्जैन) मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। प्राचीन [[संस्कृत]] तथा [[पालि भाषा|पाली]] साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। [[महाभारत]]<balloon title="महाभारत, सभा 31, 10" style="color:blue">*</balloon> में [[सहदेव]] द्वारा अवंती को विजित करने का वर्णन है। [[बौद्ध]] काल में अवंती उत्तरभारत के [[सोलह महाजनपद|शोडश महाजनपदों]] में से थी जिनकी सूची [[अंगुत्तरनिकाय]] में हैं। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में इसी जनपद को मालव कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमान [[मालवा]], निमाड़ और मध्य प्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार अवंती की स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी। [[गौतम बुद्ध|बुद्ध]] के समय अवंती का राजा चंडप्रद्योत था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भासरचित 'स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में है। वासवदत्ता को अवन्ती से सम्बंधित मानते हुए एक स्थान पर इस नाटक में कहा गया है-'हम! अतिसद्दशी खल्वियमार्याय अवंतिकाया:<balloon title="स्वप्नवासवदत्ता अंक 6" style="color:blue">*</balloon> चतुर्थ शती ई॰ पू॰ में अवन्ती का जनपद मौर्य-साम्राज्य में सम्मिलित था और उज्जयिनी मगध-साम्राज्य के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व मगध और अवन्ती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा था जिसकी सूचना हमें परिशिष्टपर्वन<balloon title=" परिशिष्टपर्वन पृ॰ 42" style="color:blue">*</balloon> से मिलती है। कथासरित्सागर<balloon title="(टॉनी का अनुवाद जिल्द 2, पृ॰ 484)" style="color:blue">*</balloon> से यह ज्ञात होता है कि अवन्तीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने [[कौशाम्बी]] को अपने राज्य में मिला लिया था। [[विष्णु पुराण]]<balloon title=" विष्णु पुराण 4,24,68" style="color:blue">*</balloon> से विदित होता है कि संभवत: [[गुप्त काल]] से पूर्व अवन्ती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था-'सौराष्ट्रावन्ति…विषयांश्च--आभीर शूद्राद्या भोक्ष्यन्ते'। ऐतिहासिक परम्परा से हमें यह भी विदित होता है कि प्रथम शती ई॰ पू॰ में (57 ई॰ पू॰ के लगभग) विक्रम संवत के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्त काल में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़ फैंका। कुछ विद्वानों के मत में 57 ई॰ पू॰ में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं था और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ही अवंती-विजय के पश्चात मालव संवत को जो 57 ई॰ पू॰ में प्रारम्भ हुआ था, विक्रम संवत का नाम दे दिया।
 
+
{{tocright}}
 
==युवानच्वांग का वर्णन==       
 
==युवानच्वांग का वर्णन==       
 
चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] के यात्रावृत से ज्ञात होता है कि अवन्ती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई॰) मालव राज्य से अलग था और वहाँ एक स्वतन्त्र राजा का शासन था। कहा जाता है [[शंकराचार्य]] के समकालीन अवन्ती-नरेश सुधन्वा ने [[जैन]] धर्म का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवन्तिका का नाम उज्जयिनी (विजयकारिणी) कर दिया था किन्तु यह केवल कपोल कल्पना मात्र है क्योंकि गुप्तकालीन [[कालिदास]] को भी उज्जयिनी नाम ज्ञात था, 'वक्र: पंथा यदपि भवत: प्रस्थिस्योत्तराशां, सौधोत्संगप्रणयविमुखोमास्म भूरुज्जयिन्या:'<balloon title="पूर्वमेघ॰ 29" style="color:blue">*</balloon> इसके साथ ही कवि ने अवन्ती का भी उल्लेख किया है-'प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्'<balloon title="पूर्वमेघ॰ 32" style="color:blue">*</balloon> इससे संभवत: यह जान पड़ता है कि [[कालिदास]] के समय में अवन्ती उस जनपद का नाम था, जिसकी मुख्य नगरी उज्जयिनी थी। 9 वीं व 10 वीं शतियों में उज्जयिनी में परमार राजाओं का शासन रहा। तत्पश्चात उन्होंने धारा नगरी में अपनी राजधानी बनाई। मध्यकाल में इस नगरी को मुख्यत: उज्जैन ही कहा जाता था और इसका  मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। [[दिल्ली]] के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के महाकाल के अति प्राचीन मन्दिर को नष्ट कर दिया। <ref>(यह मन्दिर संभवत: गुप्त काल से भी पूर्व का था। मेघदूत, पूर्वमेघ 36 में इसका वर्णन है--'अप्यन्यस्मिन् जलधर महाकालमासाद्यकाले')</ref> अगले प्राय: पाँच सौ वर्षों तक उज्जैन पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा। 1750 ई॰ में सिंधिया नरेशों का शासन यहाँ स्थापित हुआ और 1810 ई॰ तक उज्जैन में उनकी राजधानी रही। इस वर्ष सिंधिया ने उज्जैन से हटा कर राजधानी [[ग्वालियर]] में बनाई। मराठों के राज्यकाल में उज्जैन के कुछ प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। इनमें महाकाल का मन्दिर भी है।
 
चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] के यात्रावृत से ज्ञात होता है कि अवन्ती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई॰) मालव राज्य से अलग था और वहाँ एक स्वतन्त्र राजा का शासन था। कहा जाता है [[शंकराचार्य]] के समकालीन अवन्ती-नरेश सुधन्वा ने [[जैन]] धर्म का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवन्तिका का नाम उज्जयिनी (विजयकारिणी) कर दिया था किन्तु यह केवल कपोल कल्पना मात्र है क्योंकि गुप्तकालीन [[कालिदास]] को भी उज्जयिनी नाम ज्ञात था, 'वक्र: पंथा यदपि भवत: प्रस्थिस्योत्तराशां, सौधोत्संगप्रणयविमुखोमास्म भूरुज्जयिन्या:'<balloon title="पूर्वमेघ॰ 29" style="color:blue">*</balloon> इसके साथ ही कवि ने अवन्ती का भी उल्लेख किया है-'प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्'<balloon title="पूर्वमेघ॰ 32" style="color:blue">*</balloon> इससे संभवत: यह जान पड़ता है कि [[कालिदास]] के समय में अवन्ती उस जनपद का नाम था, जिसकी मुख्य नगरी उज्जयिनी थी। 9 वीं व 10 वीं शतियों में उज्जयिनी में परमार राजाओं का शासन रहा। तत्पश्चात उन्होंने धारा नगरी में अपनी राजधानी बनाई। मध्यकाल में इस नगरी को मुख्यत: उज्जैन ही कहा जाता था और इसका  मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। [[दिल्ली]] के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के महाकाल के अति प्राचीन मन्दिर को नष्ट कर दिया। <ref>(यह मन्दिर संभवत: गुप्त काल से भी पूर्व का था। मेघदूत, पूर्वमेघ 36 में इसका वर्णन है--'अप्यन्यस्मिन् जलधर महाकालमासाद्यकाले')</ref> अगले प्राय: पाँच सौ वर्षों तक उज्जैन पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा। 1750 ई॰ में सिंधिया नरेशों का शासन यहाँ स्थापित हुआ और 1810 ई॰ तक उज्जैन में उनकी राजधानी रही। इस वर्ष सिंधिया ने उज्जैन से हटा कर राजधानी [[ग्वालियर]] में बनाई। मराठों के राज्यकाल में उज्जैन के कुछ प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। इनमें महाकाल का मन्दिर भी है।

१३:४४, २४ फ़रवरी २०१० का अवतरण

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • पौराणिक महाजनपद
    • अंग|अंग
    • अवंती|अवंति
    • अश्मक|अश्मक
    • कंबोज|कंबोज
    • वाराणसी|काशी
    • कुरुदेश|कुरु
    • कौशल|कोशल
    • गांधार|गांधार
    • चेदि|चेदि
    • पंचाल|पंचाल
    • मगध|मगध
    • मत्स्य|मत्स्य
    • मल्ल|मल्ल
    • वृज्जि|वज्जि
    • वत्स|वत्स
    • शूरसेन|शूरसेन

</sidebar>

अवंती / Avanti

अवंति महाजनपद
Avanti Great Realm

अवंती, पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक मालवा का प्रदेश जिसकी राजधानी उज्जयिनी और महिष्मति थी। उज्जयिनी (उज्जैन) मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। प्राचीन संस्कृत तथा पाली साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। महाभारत<balloon title="महाभारत, सभा 31, 10" style="color:blue">*</balloon> में सहदेव द्वारा अवंती को विजित करने का वर्णन है। बौद्ध काल में अवंती उत्तरभारत के शोडश महाजनपदों में से थी जिनकी सूची अंगुत्तरनिकाय में हैं। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में इसी जनपद को मालव कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमान मालवा, निमाड़ और मध्य प्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। पुराणों के अनुसार अवंती की स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी। बुद्ध के समय अवंती का राजा चंडप्रद्योत था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भासरचित 'स्वप्नवासवदत्ता' नामक नाटक में है। वासवदत्ता को अवन्ती से सम्बंधित मानते हुए एक स्थान पर इस नाटक में कहा गया है-'हम! अतिसद्दशी खल्वियमार्याय अवंतिकाया:<balloon title="स्वप्नवासवदत्ता अंक 6" style="color:blue">*</balloon> चतुर्थ शती ई॰ पू॰ में अवन्ती का जनपद मौर्य-साम्राज्य में सम्मिलित था और उज्जयिनी मगध-साम्राज्य के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व मगध और अवन्ती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा था जिसकी सूचना हमें परिशिष्टपर्वन<balloon title=" परिशिष्टपर्वन पृ॰ 42" style="color:blue">*</balloon> से मिलती है। कथासरित्सागर<balloon title="(टॉनी का अनुवाद जिल्द 2, पृ॰ 484)" style="color:blue">*</balloon> से यह ज्ञात होता है कि अवन्तीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने कौशाम्बी को अपने राज्य में मिला लिया था। विष्णु पुराण<balloon title=" विष्णु पुराण 4,24,68" style="color:blue">*</balloon> से विदित होता है कि संभवत: गुप्त काल से पूर्व अवन्ती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था-'सौराष्ट्रावन्ति…विषयांश्च--आभीर शूद्राद्या भोक्ष्यन्ते'। ऐतिहासिक परम्परा से हमें यह भी विदित होता है कि प्रथम शती ई॰ पू॰ में (57 ई॰ पू॰ के लगभग) विक्रम संवत के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्त काल में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़ फैंका। कुछ विद्वानों के मत में 57 ई॰ पू॰ में विक्रमादित्य नाम का कोई राजा नहीं था और चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ही अवंती-विजय के पश्चात मालव संवत को जो 57 ई॰ पू॰ में प्रारम्भ हुआ था, विक्रम संवत का नाम दे दिया।

युवानच्वांग का वर्णन

चीनी यात्री युवानच्वांग के यात्रावृत से ज्ञात होता है कि अवन्ती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई॰) मालव राज्य से अलग था और वहाँ एक स्वतन्त्र राजा का शासन था। कहा जाता है शंकराचार्य के समकालीन अवन्ती-नरेश सुधन्वा ने जैन धर्म का उत्कर्ष सूचित करने के लिए प्राचीन अवन्तिका का नाम उज्जयिनी (विजयकारिणी) कर दिया था किन्तु यह केवल कपोल कल्पना मात्र है क्योंकि गुप्तकालीन कालिदास को भी उज्जयिनी नाम ज्ञात था, 'वक्र: पंथा यदपि भवत: प्रस्थिस्योत्तराशां, सौधोत्संगप्रणयविमुखोमास्म भूरुज्जयिन्या:'<balloon title="पूर्वमेघ॰ 29" style="color:blue">*</balloon> इसके साथ ही कवि ने अवन्ती का भी उल्लेख किया है-'प्राप्यावन्तीमुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान्'<balloon title="पूर्वमेघ॰ 32" style="color:blue">*</balloon> इससे संभवत: यह जान पड़ता है कि कालिदास के समय में अवन्ती उस जनपद का नाम था, जिसकी मुख्य नगरी उज्जयिनी थी। 9 वीं व 10 वीं शतियों में उज्जयिनी में परमार राजाओं का शासन रहा। तत्पश्चात उन्होंने धारा नगरी में अपनी राजधानी बनाई। मध्यकाल में इस नगरी को मुख्यत: उज्जैन ही कहा जाता था और इसका मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने उज्जैन को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के महाकाल के अति प्राचीन मन्दिर को नष्ट कर दिया। [१] अगले प्राय: पाँच सौ वर्षों तक उज्जैन पर मुसलमानों का आधिपत्य रहा। 1750 ई॰ में सिंधिया नरेशों का शासन यहाँ स्थापित हुआ और 1810 ई॰ तक उज्जैन में उनकी राजधानी रही। इस वर्ष सिंधिया ने उज्जैन से हटा कर राजधानी ग्वालियर में बनाई। मराठों के राज्यकाल में उज्जैन के कुछ प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया गया था। इनमें महाकाल का मन्दिर भी है।

विविधतीर्थ कल्प में

जैन ग्रन्थ विविधतीर्थ कल्प में मालवा प्रदेश का ही नाम अवंति या अवंती है। राजा शंबर के पुत्र अभिनंदन देव का चैत्य अवन्ति के मेद नामक ग्राम में स्थित था। इस चैत्य को मुसलमान सेना ने नष्ट कर दिया था किन्तु इस ग्रन्थ के अनुसार वैज नामक व्यापारी की तपस्या से खण्डित मूर्ति फिर से जुड़ गई थी।

  • उज्जयिनी के वर्तमान स्मारकों में मुख्य, महाकाल का मन्दिर क्षिप्रा नदी के तट पर भूमि के नीचे बना है। इसका निर्माण प्राचीन मन्दिर के स्थान पर रणोजी सिंधिया के मन्त्री रामचन्द्र बाबा ने 19 वीं शती के उत्तरार्ध में करवाया था। महाकाल की शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों में गणना की जाती है। इसी कारण इस नगरी को शिवपुरी भी कहा गया है।
  • हरसिद्धि का मन्दिर कहा जाता है, उसी प्राचीन मन्दिर का प्रतिरूप है जहाँ विक्रमादित्य इस देवी की पूजा किया करते थे।
  • राजा भतृहरि की गुफा संभवत: 11 वीं शती का अवशेष है।
  • चौबीस खम्भा दरवाजा शायद प्राचीन महाकाल मन्दिर के प्रांगण का मुख्य द्वार था।
  • कालीदह-महल 1500 ई॰ में बना था। यहाँ की प्रसिद्ध वेधशाला जयपुर-नरेश जयसिंह द्वितीय ने 1733 ई॰ में बनवाई थी। वेधशाला का जीर्णोद्धार 1925 ई॰ में किया गया था।

प्राचीन अवंती वर्तमान उज्जैन

प्राचीन अवंती वर्तमान उज्जैन के स्थान पर ही बसी थी, यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि क्षिप्रा नदी जो आजकल भी उज्जैन के निकट बहती है, प्राचीन साहित्य में भी अवंती के निकट ही वर्णित है।<balloon title="यत्र स्त्रीणां हरति सुरतग्लानिमंगानुकूल: शिप्रावात: प्रियतम इव प्रार्थनाचादुकार:' पूर्वमेघ 33" style="color:blue">*</balloon> उज्जैन से एक मील उत्तर की ओर भैरोगढ़ में दूसरी-तीसरी शती ई॰ पू॰ की उज्जयिनी के खंडहर पाए गए हैं। यहाँ वेश्या-टेकरी और कुम्हार-टेकरी नाम के टीले हैं जिनका सम्बन्ध प्राचीन किंवदंतियों से है।

टीका-टिप्पणी

  1. (यह मन्दिर संभवत: गुप्त काल से भी पूर्व का था। मेघदूत, पूर्वमेघ 36 में इसका वर्णन है--'अप्यन्यस्मिन् जलधर महाकालमासाद्यकाले')