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चौथी शताब्दी में [[गुप्तवंश]] के समय भी मध्यदेश में शांति बनी रही। उसके बाद [[कन्नौज]] के मौखरियों ने इस क्षेत्र के काफ़ी बड़े भाग पर शासन किया। स्थानेश्वर के [[हर्षवर्धन]] के समय कन्नौज और स्थानेश्वर परस्पर मिल गए और कन्नौज को बड़ा महत्व प्राप्त हुआ। हर्ष के बाद का इतिहास राजाओं के पारस्परिक कलह और विदेशियों से पराजित होने का इतिहास है। कुछ समय तक गुर्जर-प्रतिहार यहाँ के शासक थे। 1018-19 ई॰ में [[महमूद ग़ज़नवी]] ने उन्हें पराजित कर डाला। बाद में [[मुहम्मद गौरी]] के हाथों पहले [[पृथ्वीराज चौहान]] को और उसके बाद अदूरदर्शी [[जयचंद्र|जयचंद]] को पराजित होना पड़ा। 1206 ई॰ में [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] गद्दी पर बैठा और पूरा मध्यदेश उसके साम्राज्य का अंग बन गया। 1556 ई॰ में [[अकबर]] के गद्दी पर बैठने तक रूक-रूककर राजनीतिक उथल-पुथल होती रही। अकबर की नीति से कुछ शांति का युग आया तो [[औरंगजेब]] के कारण फिर अस्थिरता पैदा हो गई। तब तक अंग्रेज आ चुके थे। [[अवध]] के नवाब ने रूहेलों को दबाने के लिए उनकी सहायता लेकर उनके उत्तर-प्रदेश में आधिपत्य के द्वार खोल दिए। यद्यपि 1857 ई॰ में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने का एक जोरदार प्रयत्न हुआ, किंतु संगठन के अभाव और असाधारण दमन के कारण उस समय सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के समय यह क्षेत्र पहले 'उत्तर पश्चिम प्रदेश, [[आगरा]] व अवध' कहलाया। बाद में 'संयुक्त प्रांत आगरा व अवध' नाम पड़ा। फिर कुछ दिन तक केवल 'संयुक्त प्रांत' था। स्वतंत्रता के बाद 12 जनवरी 1950 ई॰ से यह 'उत्तर प्रदेश' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
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चौथी शताब्दी में [[गुप्तवंश]] के समय भी मध्यदेश में शांति बनी रही। उसके बाद [[कन्नौज]] के मौखरियों ने इस क्षेत्र के काफ़ी बड़े भाग पर शासन किया। स्थानेश्वर के [[हर्षवर्धन]] के समय कन्नौज और स्थानेश्वर परस्पर मिल गए और कन्नौज को बड़ा महत्व प्राप्त हुआ। हर्ष के बाद का इतिहास राजाओं के पारस्परिक कलह और विदेशियों से पराजित होने का इतिहास है। कुछ समय तक गुर्जर-प्रतिहार यहाँ के शासक थे। 1018-19 ई॰ में [[महमूद ग़ज़नवी]] ने उन्हें पराजित कर डाला। बाद में [[मुहम्मद गौरी]] के हाथों पहले [[पृथ्वीराज चौहान]] को और उसके बाद अदूरदर्शी [[जयचंद्र|जयचंद]] को पराजित होना पड़ा। 1206 ई॰ में [[कुतुबुद्दीन ऐबक]] गद्दी पर बैठा और पूरा मध्यदेश उसके साम्राज्य का अंग बन गया। 1556 ई॰ में [[अकबर]] के गद्दी पर बैठने तक रूक-रूककर राजनीतिक उथल-पुथल होती रही। अकबर की नीति से कुछ शांति का युग आया तो [[औरंगजेब]] के कारण फिर अस्थिरता पैदा हो गई। तब तक अंग्रेज़ आ चुके थे। [[अवध]] के नवाब ने रूहेलों को दबाने के लिए उनकी सहायता लेकर उनके उत्तर-प्रदेश में आधिपत्य के द्वार खोल दिए। यद्यपि 1857 ई॰ में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने का एक जोरदार प्रयत्न हुआ, किंतु संगठन के अभाव और असाधारण दमन के कारण उस समय सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के समय यह क्षेत्र पहले 'उत्तर पश्चिम प्रदेश, [[आगरा]] व अवध' कहलाया। बाद में 'संयुक्त प्रांत आगरा व अवध' नाम पड़ा। फिर कुछ दिन तक केवल 'संयुक्त प्रांत' था। स्वतंत्रता के बाद 12 जनवरी 1950 ई॰ से यह 'उत्तर प्रदेश' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
  
 
==भारत का हृदय==
 
==भारत का हृदय==

०६:२०, ५ जुलाई २०१० का अवतरण

उत्तर प्रदेश / Uttar Pradesh

  • भारत के सबसे अधिक जनसंख्या वाले इस प्रदेश का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मिर्जापुर, बुंदेलखंड, प्रतापगढ़ और मेरठ जिलों में प्राप्त अवशेष इसके इतिहास को 'नवीन पाषाण युग' तक ले जाते हैं।
  • पहले यह 'मध्यदेश' कहलाता था। भारत की मनीषा ने इसे सदा पवित्र और आदरणीय माना है।
  • राम,कृष्ण, महावीर, गौतम बुद्ध सब यहीं हुए।
  • प्राचीन सोलह महाजनपदों में से आठ इसी की परिधि में थे। उनमें काशी, कोशल(अवध) और वत्स का बड़ा नाम था। इनके अतिरिक्ति अनेक जनपदों का भी उल्लेख मिलता है।
  • ये महाजनपद परस्पर लड़ते रहे। कोशल ने काशी पर अधिकार कर लिया। अवंति ने वत्स राज्य छीन लिया। बाद में कोशल और अवंति दोनों को मगध की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
  • शक्तिशाली नंदवंश का शासन यहाँ 321 ई॰पू॰ तक रहा। इसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य का समय आया। बिंदुसार और अशोक के समय यहाँ सुख-शांति रही। अशोक के स्तंभ लेख उत्तर प्रदेश में सारनाथ, इलाहाबाद , मेरठ, कोशांबी, सकिला, कालपी, बस्ती और मिर्जापुर में पाए गए हैं।

इतिहास

पतंजलि महाभाष्य के अनुसार यूनानियों ने एक बार अयोध्या तक आक्रमण किया था, किंतु वसुमित्र ने उन्हें पीछे हटने के लिए बाध्य कर दिया। यूनानी राजा मिलिंद के साम्राज्य में मथुरा लंबे समय तक एक प्रमुख शहर था। बाद में शकों और कुषाणों के आक्रमण हुए और वे इस क्षेत्र में फैल गए। कुषाण काल में मथुरा मूर्ति कला का प्रमुख केंद्र था। कनिष्क की दो राजधानियां थी-

चौथी शताब्दी में गुप्तवंश के समय भी मध्यदेश में शांति बनी रही। उसके बाद कन्नौज के मौखरियों ने इस क्षेत्र के काफ़ी बड़े भाग पर शासन किया। स्थानेश्वर के हर्षवर्धन के समय कन्नौज और स्थानेश्वर परस्पर मिल गए और कन्नौज को बड़ा महत्व प्राप्त हुआ। हर्ष के बाद का इतिहास राजाओं के पारस्परिक कलह और विदेशियों से पराजित होने का इतिहास है। कुछ समय तक गुर्जर-प्रतिहार यहाँ के शासक थे। 1018-19 ई॰ में महमूद ग़ज़नवी ने उन्हें पराजित कर डाला। बाद में मुहम्मद गौरी के हाथों पहले पृथ्वीराज चौहान को और उसके बाद अदूरदर्शी जयचंद को पराजित होना पड़ा। 1206 ई॰ में कुतुबुद्दीन ऐबक गद्दी पर बैठा और पूरा मध्यदेश उसके साम्राज्य का अंग बन गया। 1556 ई॰ में अकबर के गद्दी पर बैठने तक रूक-रूककर राजनीतिक उथल-पुथल होती रही। अकबर की नीति से कुछ शांति का युग आया तो औरंगजेब के कारण फिर अस्थिरता पैदा हो गई। तब तक अंग्रेज़ आ चुके थे। अवध के नवाब ने रूहेलों को दबाने के लिए उनकी सहायता लेकर उनके उत्तर-प्रदेश में आधिपत्य के द्वार खोल दिए। यद्यपि 1857 ई॰ में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने का एक जोरदार प्रयत्न हुआ, किंतु संगठन के अभाव और असाधारण दमन के कारण उस समय सफलता नहीं मिली। अंग्रेजों के समय यह क्षेत्र पहले 'उत्तर पश्चिम प्रदेश, आगरा व अवध' कहलाया। बाद में 'संयुक्त प्रांत आगरा व अवध' नाम पड़ा। फिर कुछ दिन तक केवल 'संयुक्त प्रांत' था। स्वतंत्रता के बाद 12 जनवरी 1950 ई॰ से यह 'उत्तर प्रदेश' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

भारत का हृदय

उत्तर प्रदेश सांस्कृतिक दृष्टि से भारत का हृदय प्रदेश कहलाता है। यहाँ बदरीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, मथुरा-वृन्दावन, नैमिषारण्य आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। गंगा, यमुना, सरयू (घाघरा) जैसी सरिताओं का उद्गम इसी प्रदेश में होता है। राम, कृष्ण, महावीर और गौतम बुद्ध की जन्म कर्म और लीलाभूमि तो यह है, वैदिक धर्म के भारद्वाज, याज्ञवल्क्य, वसिष्ठ, विश्वामित्र, बाल्मीकि जैसे ऋषि भी यहीं हुए। आधुनिक काल के तुलसी और कबीर जैसे संत भी यहीं के हैं।

योगदान

  • स्वतंत्रता संग्राम में इस प्रदेश का सदा महत्वपूर्ण स्थान रहा।
  • स्वतंत्रता के बाद देश को अब तक (अगस्त 2009 तक) यह प्रदेश आठ प्रधानमन्त्री दे चुका है।
  • इसकी राजधानी लखनऊ है।