उद्दालक

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Asha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:३७, २९ नवम्बर २००९ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ


उद्दालक / Uddalak

  • महर्षि आयोदधौम्य के तीन शिष्य थे-
  1. उपमन्यु,
  2. आरूणि पांचाल तथा
  3. वेद।

एक बार उन्होंने आरूणि को टूटी हुई क्यारी का पानी रोकने की आज्ञा दी। अनेक यत्न करके असफल रहने पर वह उसकी मेड़ के स्थान पर लेट गया ताकि पानी रूक जाये। थोड़ी देर बाद उपाध्याय ने उसे न पाकर आवाज दी। वह तुरंत उठकर गुरू के पास पहुचा। उसके उठने से क्यारी की मेड़ विदीर्ण हो गयी थी; अत: गुरू ने उसका नाम उद्दालक रख दिया। आज्ञा के पालन से प्रसन्न होकर गुरू ने उसके कल्याण का आशीर्वाद दिया तथा उसकी बुद्धि को धर्मशास्त्र से प्रकाशित होने का वर दिया। [१]

टीका-टिप्पणी

  1. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 3, श्लोक 21-32


<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • ॠषि-मुनि
    • अंगिरा|अंगिरा
    • अगस्त्य|अगस्त्य
    • अत्रि|अत्रि
    • अदिति|अदिति
    • अनुसूया|अनुसूया
    • अपाला|अपाला
    • अरुन्धती|अरुन्धती
    • आंगिरस|आंगिरस
    • उद्दालक|उद्दालक
    • कण्व|कण्व
    • कपिल|कपिल
    • कश्यप|कश्यप
    • कात्यायन|कात्यायन
    • क्रतु|क्रतु
    • गार्गी|गार्गी
    • गालव|गालव
    • गौतम|गौतम
    • घोषा|घोषा
    • चरक|चरक
    • च्यवन|च्यवन
    • त्रिजट मुनि|त्रिजट
    • जैमिनि|जैमिनि
    • दत्तात्रेय|दत्तात्रेय
    • दधीचि|दधीचि
    • दिति|दिति
    • दुर्वासा|दुर्वासा
    • धन्वन्तरि|धन्वन्तरि
    • नारद|नारद
    • पतंजलि|पतंजलि
    • परशुराम|परशुराम
    • पराशर|पराशर
    • पुलह|पुलह
    • पिप्पलाद|पिप्पलाद
    • पुलस्त्य|पुलस्त्य
    • भारद्वाज|भारद्वाज
    • भृगु|भृगु
    • मरीचि|मरीचि
    • याज्ञवल्क्य|याज्ञवल्क्य
    • रैक्व|रैक्व
    • लोपामुद्रा|लोपामुद्रा
    • वसिष्ठ|वसिष्ठ
    • वाल्मीकि|वाल्मीकि
    • विश्वामित्र|विश्वामित्र
    • व्यास|व्यास
    • शुकदेव|शुकदेव
    • शुक्राचार्य|शुक्राचार्य
    • सत्यकाम जाबाल|सत्यकाम जाबाल
    • सप्तर्षि|सप्तर्षि

</sidebar>