उद्धव

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उद्धव / Uddhav

  • उद्धवजी वृष्णवंशियों में एक प्रधान पुरूष थे। ये साक्षात बृहस्पतिजी के शिष्य और परम बुद्धिमान थे। मथुरा आने पर भगवान श्रीकृष्ण ने इन्हें अपना मन्त्री और अन्तरंग सखा बना लिया। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने प्रिय सखा उद्धव को एकान्त में बुलाकर कहा- 'उद्धवजी! आप नन्दबाबा, यशोदा मैया और गोपियों के लिये मेरा संदेश लेकर व्रज में जायँ। वे लोग मेरे विरह के दु:ख से अत्यन्त दु:खी हैं।' वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण अपने प्रिय सखा उद्धव को व्रज और व्रज की गोपियों के लोकोंत्तर प्रेम का दर्शन कराना चाहते थे।

जब उद्धवजी व्रज में पहुँचे, तब उनसे मिलकर नन्दबाबा को विशेष प्रसन्नता हुई। उन्होंने उनको गले लगाकर अपना स्नेह प्रदर्शित किया। आतिथ्य-सत्कार के बाद नन्दबाबा ने उनसे वसुदेव-देवकी तथा श्रीकृष्ण-बलराम की कुशल-क्षेम पूछा। उद्धवजी नन्दबाबा और यशोदा मैया के हृदय में श्रीकृष्ण के प्रति दृढ़ अनुराग का दर्शन कर आनन्दमग्न हो गये। जब गोपियों को ज्ञात हुआ कि उद्धवजी भगवान श्रीकृष्ण का संदेश लेकर आये हैं, तब उन्होंने एकान्त में मिलने पर उनसे श्याम सुन्दर का समाचार पूछा। उद्धवजी ने कहा- 'गोपियो! भगवान श्रीकृष्ण सर्वव्यापी हैं। वे तुम्हारे हृदय तथा समस्त जड़-चेतन में व्याप्त हैं। उनसे तुम्हारा वियोग कभी हो ही नहीं सकता। उनमें भगवद्धुद्धि करके तुम्हें सर्वत्र व्यापक श्रीकृष्ण का साक्षात्कार करना चाहिये।' गोपियों ने कहा-'उद्धवजी! हम जानती हैं कि संसार में किसी की आशा न रखना ही सबसे बड़ा सुख है, फिर भी हम श्रीकृष्ण के लौटने की आशा छोड़ने में असमर्थ हैं। उनके शुभागमन की आशा ही तो हमारा जीवन है। यहाँ का एक-एक प्रदेश, एक-एक धूलिकण श्यामसुन्दर के चरणचिह्नों से चिह्नित है। हम किसी प्रकार मरकर भी उन्हें नहीं भूल सकती हैं।' गोपियों के अलौकिक प्रेम को देखकर उद्धव जी के ज्ञान का अहंकार गल गया। वे कहने लगे- 'मैं तो इन गोपकुमारियों की चरणरज की वन्दना करता हूँ। इनके द्वारा गायी गयी श्रीहरिकथा तीनों लोकों को पवित्र करती है। पृथ्वी पर जन्म लेना तो इन गोपांगनाओं का ही सार्थक है। मेरी तो प्रबल इच्छा है कि मैं इस व्रज में कोइर वृक्ष, लता अथवा तृण बन जाऊँ, जिससे इन गोपियों की पदधूलि मुझे पवित्र करती रहे।' भगवान ने जब द्वारकापुरी का निर्माण किया, तब उद्धव जी उनके साथ द्वारका आये। भगवान श्रीकृष्ण इन्हें सदैव अपने साथ रखते थे तथा राज्यकार्य में इनसे सहयोग लिया करते थे। स्वधाम पधारने के पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धवजी को तत्त्वज्ञान का उपदेश दिया और उन्हें बदरिकाश्रम जाकर रहने की आज्ञा दी। भगवान के स्वधाम पधारने पर उद्धवजी मथुरा आये। यहीं उनकी विदुरजी से भेंट हुई। अपने एक स्वरूप से भगवान के आज्ञानुसार उद्धवजी बदरिकाश्रम चले गये और दूसरे सूक्ष्मरूप से गोवर्धन के पास लता-गुल्मों में छिपकर निवास करने लगे। महर्षि शाण्डिल्य के उपदेश से वज्रनाभ ने जब गोवर्धन के संनिकट संकीर्तन-महोत्सव किया, तब उद्धवजी लताकुंजों से प्रकट हो गये। उन्होंने श्रीकृष्ण की रानियों को एक महीने तक श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी तथा अपने साथ सबको नित्यव्रजभूमि में ले गये। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है- 'मेरे इस लोक से लीला-संवरण के बाद उद्धव ही मेरे ज्ञान की रक्षा करेंगे, वे गुणों में मुझसे तनिक भी कम नहीं हैं। वे यहाँ अधिकारियों को उपदेश करने के लिये रहेंगे।'