"ऐतरेय ब्राह्मण" के अवतरणों में अंतर

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==ऐतरेय ब्राह्मण==
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==ऐतरेय ब्राह्मण / [[:en:Aitareya Brahman|Aitareya Brahman]]==
 
*ॠक् साहित्य में दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। पहले का नाम ऐतरेय ब्राह्मण तथा दूसरे का शाख्ङायन अथवा [[कौषीतकि ब्राह्मण]] है।  
 
*ॠक् साहित्य में दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। पहले का नाम ऐतरेय ब्राह्मण तथा दूसरे का शाख्ङायन अथवा [[कौषीतकि ब्राह्मण]] है।  
 
*दोनों ग्रन्थों का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है, यत्र-तत्र एक ही विषय की व्याख्या की गयी है, किन्तु एक ब्राह्मण में दूसरे ब्राह्मण में विपरीत अर्थ प्रकट किया गया है। कौषीतकि ब्राह्मण में जिस अच्छे ढंग से विषयों की व्याख्या की गयी है उस ढंग से ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं है। ऐतरेय ब्राह्मण के पिछले दस अध्यायों में जिन विषयों की व्याख्या की गयी है वे कौषीतकि में नहीं हैं, किन्तु इस अभाव को शाख्ङायन सूत्रों में पूरा किया गया है।  
 
*दोनों ग्रन्थों का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है, यत्र-तत्र एक ही विषय की व्याख्या की गयी है, किन्तु एक ब्राह्मण में दूसरे ब्राह्मण में विपरीत अर्थ प्रकट किया गया है। कौषीतकि ब्राह्मण में जिस अच्छे ढंग से विषयों की व्याख्या की गयी है उस ढंग से ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं है। ऐतरेय ब्राह्मण के पिछले दस अध्यायों में जिन विषयों की व्याख्या की गयी है वे कौषीतकि में नहीं हैं, किन्तु इस अभाव को शाख्ङायन सूत्रों में पूरा किया गया है।  
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*सायण भाष्य के आजकल चार संस्करण उपलब्ध हैं।  
 
*सायण भाष्य के आजकल चार संस्करण उपलब्ध हैं।  
 
*आधुनिक युग में इसका पहला संस्करण अंग्रेजी अनुवाद के साथ मार्टिन हॉग ने 1863 ई0 में प्रकाशित किया था। दूसरा संस्करण थियोडोर आडफरेस्टन ने 1879 ई0 में प्रकाशित किया। पण्डित  काशीनाथ शास्त्री ने 1896 में इसका तीसरा संस्करण निकाला और चौथा संस्करण ए0 वी0 कीथ द्वारा प्रकाशित किया गया।
 
*आधुनिक युग में इसका पहला संस्करण अंग्रेजी अनुवाद के साथ मार्टिन हॉग ने 1863 ई0 में प्रकाशित किया था। दूसरा संस्करण थियोडोर आडफरेस्टन ने 1879 ई0 में प्रकाशित किया। पण्डित  काशीनाथ शास्त्री ने 1896 में इसका तीसरा संस्करण निकाला और चौथा संस्करण ए0 वी0 कीथ द्वारा प्रकाशित किया गया।
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१४:२३, ३० नवम्बर २००९ का अवतरण


ऐतरेय ब्राह्मण / Aitareya Brahman

  • ॠक् साहित्य में दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। पहले का नाम ऐतरेय ब्राह्मण तथा दूसरे का शाख्ङायन अथवा कौषीतकि ब्राह्मण है।
  • दोनों ग्रन्थों का अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है, यत्र-तत्र एक ही विषय की व्याख्या की गयी है, किन्तु एक ब्राह्मण में दूसरे ब्राह्मण में विपरीत अर्थ प्रकट किया गया है। कौषीतकि ब्राह्मण में जिस अच्छे ढंग से विषयों की व्याख्या की गयी है उस ढंग से ऐतरेय ब्राह्मण में नहीं है। ऐतरेय ब्राह्मण के पिछले दस अध्यायों में जिन विषयों की व्याख्या की गयी है वे कौषीतकि में नहीं हैं, किन्तु इस अभाव को शाख्ङायन सूत्रों में पूरा किया गया है।
  • आजकल जो ऐतरेय ब्राह्मण उपलब्ध है उसमें कुल चालीस अध्याय हैं। इनका आठ पंजिकाओं में विभाग हुआ है।
  • शाख्ङायन ब्राह्मण में तीस अध्याय हैं।
  • ऐतरेय ब्राह्मण के अन्तिम दस अध्याय ऐतिहासिक आख्यानों से भरे हैं। इसमें बहुत से भौगोलिक विवरण भी मिलते हैं। इन ब्राह्मणों में 'आख्यान' है, 'गाथाएँ' हैं, 'अभियज्ञ गाथाएँ' भी हैं जिनमें बताया गया है कि किस मन्त्र का किस अवसर पर किस प्रकार आविर्भाव हुआ है।
  • ऐतरेय ब्राह्मण के रचयिता महीदास ऐतरेय माने जाते हैं।
  • ये इतरा नामक दासी से उत्पन्न हुए थे, इसलिए इनका नाम ऐतरेय पड़ा।
  • इसका रचनाकाल बहुत प्राचीन है। इसमें जनमेजय का उल्लेख है, अत: इसको कुछ विद्वान परवर्ती मानते हैं, किन्तु यह कहना कठिन है कि यह जनमेजय महाभारत का परवर्ती है अथवा अन्य कोई पूर्ववर्ती राजा हैं।
  • ऐतरेय ब्राह्मण पर गोविन्द स्वामी तथा सायण के महत्वपूर्ण भाष्य हैं।
  • सायण भाष्य के आजकल चार संस्करण उपलब्ध हैं।
  • आधुनिक युग में इसका पहला संस्करण अंग्रेजी अनुवाद के साथ मार्टिन हॉग ने 1863 ई0 में प्रकाशित किया था। दूसरा संस्करण थियोडोर आडफरेस्टन ने 1879 ई0 में प्रकाशित किया। पण्डित काशीनाथ शास्त्री ने 1896 में इसका तीसरा संस्करण निकाला और चौथा संस्करण ए0 वी0 कीथ द्वारा प्रकाशित किया गया।