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==करवा चौथ==
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==करवा चौथ / Karva Chauth==
 
करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के [[कृष्ण]] पक्ष की चतुर्थी को [[गणेश]] जी और [[चंद्रमा]] का व्रत किया जाता है। परंतु इनमें सर्वाधिक महत्व है- करवा चौथ का। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला है।  
 
करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के [[कृष्ण]] पक्ष की चतुर्थी को [[गणेश]] जी और [[चंद्रमा]] का व्रत किया जाता है। परंतु इनमें सर्वाधिक महत्व है- करवा चौथ का। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला है।  
 
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। इस व्रत को रखने वाली स्त्रियों का प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत में [[शिव]], [[पार्वती]], [[कार्तिकेय]], गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे-कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रूपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।  
 
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। इस व्रत को रखने वाली स्त्रियों का प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत में [[शिव]], [[पार्वती]], [[कार्तिकेय]], गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे-कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रूपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।  

१३:१०, ६ सितम्बर २००९ का अवतरण


साँचा:पर्व और त्यौहार

करवा चौथ / Karva Chauth

करवा चौथ स्त्रियों का सर्वाधिक प्रिय व्रत है। यों तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी और चंद्रमा का व्रत किया जाता है। परंतु इनमें सर्वाधिक महत्व है- करवा चौथ का। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य एवं मंगलकामना के लिए यह व्रत करती हैं। यह व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है। इस व्रत को रखने वाली स्त्रियों का प्रात:काल स्नान आदि के बाद आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेश तथा चंद्रमा का पूजन करने का विधान है। स्त्रियां चंद्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्य देकर ही जल-भोजन ग्रहण करती हैं। पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री जैसे-कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन व रूपया रखकर दान करना चाहिए तथा सास के पांव छूकर फल, मेवा व सुहाग की सारी सामग्री उन्हें देनी चाहिए।

पूजन-विधि

करवा चौथ सुहागिन स्त्रियों का व्रत है। यह व्रत निर्जल है अर्थात पानी भी नहीं पिया जाता। चंद्रोदय के कुछ पूर्व एक पटरे पर कपड़ा बिछाकर अथवा बालू से वेदी बनाकर उस पर मिट्टी से शिवजी, पार्वतीजी, कार्तिकेयजी और चंद्रमा की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाते हैं। आजकल इनकी जगह बाजार में करवा चौथ पूजन के छपे हुए पोस्टर भी आते हैं। फिर पटरे के पास पानी से भरा लोटा और करवा रखकर करवा चौथ की कहानी सुनी जाती है। कहानी सुनने से पूर्व करवे पर रोली से एक सतिया बनाकर उस पर रोली से 13 बिन्दियां लगाई जाती हैं। हाथ में गेहूं के 13 दाने लेकर कथा सुनी जाती है। और चंद्र निकल आने पर उसे अर्घ्य देने के बाद स्त्रियां भोजन करती हैं। फिर एक कटोरे में चीनी भरकर उस पर रूपये रखकर करवा चौथ का बायना निकालकर सास, ननद या जठानी को दिया जाता हैं जिस वर्ष लड़की की शादी होती है उस वर्ष उसके पीहर से चौदह चीनी के करवों, बर्तनों, कपड़ों और गेहूं आदि के साथ बायना भी आता है।

उजमन

अन्य व्रतों के समान करवा चौथ का भी उजमन किया जाता है। करवा चौथ के उजमन में एक थाल में तेरह जगह चार-चार पूड़ियां रखकर उनके ऊपर सूजी का हलुवा रखा जाता है। इसके ऊपर साड़ी-ब्लाउज और रूपये रखे जाते हैं। हाथ में रोली, चावल लेकर थाल में चारों ओर हाथ घुमाने के बाद यह बायना सास को दिया जाता है। तेरह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर बिंदी लगाकर और सुहाग की वस्तुएं एवं दक्षिणा देकर विदा कर दिया जाता है।

करवा चौथ प्रथम

एक बार अर्जुन नीलगिरि पर तपस्या करने गए। द्रौपदी ने सोचा कि यहां हर समय अनेक प्रकार की विघ्न-बाधाएं आती रहती हैं। उनके शमन के लिए अर्जुन तो यहां हैं नहीं, अत: कोई उपाय करना चाहिए। यह सोचकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का ध्यान किया। भगवान वहां उपस्थित हुए तो द्रौपदी ने अपने कष्टों के निवारण हेतु कोई उपाय बताने को कहा। इस पर श्रीकृष्ण बोले- 'एक बार पार्वती जी ने भी शिवजी से यही प्रश्न किया था तो उन्होंने कहा था कि करवा चौथ का व्रत गृहस्थी में आने वाली छोटी-मोटी विघ्न-बाधाओं को दूर करने वाला है। यह पित्त प्रकोप को भी दूर करता है। फिर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को एक कथा सुनाई-


'प्राचीनकाल में एक धर्मपरायण ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। बड़ी होने पर पुत्री का विवाह कर दिया गया। कार्तिक की चतुर्थी को कन्या ने करवा चौथ का व्रत रखा। सात भाइयों की लाड़ली बहन को चंद्रोदय से पहले ही भूख सताने लगी। उसका फूल सा चेहरा मुरझा गया। भाइयों के लिए बहन की यह वेदना असह्य थी। अत: वे कुछ उपाय सोचने लगे। उन्होंने बहन से चंद्रोदय से पहले ही भोजन करने को कहा, पर बहन न मानी। तब भाइयों ने स्नेहवश पीपल के वृक्ष की आड़ में प्रकाश करके कहा-देखों ! चंद्रोदय हो गया। उठो, अर्घ्य देकर भोजन करो।' बहन उठी और चंद्रमा को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। भोजन करते ही उसका पति मर गया। वह रोने चिल्लाने लगी। दैवयोग से इंद्राणी देवदासियों के साथ वहां से जा रही थीं। रोने की आवाज सुन वे वहां गईं और उससे रोने का कारण पूछा।

ब्राह्मण कन्या ने सब हाल कह सुनाया। तब इंद्राणी ने कहा-'तुमने करवा चौथ के व्रत में चंद्रोदय से पूर्व ही अन्न-जल ग्रहण कर लिया, इसी से तुम्हारे पति की मृत्यु हुई है। अब यदि तुम मृत पति की सेवा करती हुई बारह महीनों तक प्रत्येक चौथ को यथाविधि व्रत करों, फिर करवा चौथ को विधिवत गौरी, शिव, गणेश, कार्तिकेय सहित चंद्रमा का पूजन करो तथा चंद्रोदय के बाद अर्घ्य देकर अन्न-जल ग्रहण करो तो तुम्हारे पति अवश्य जीवित हो उठेंगे।' ब्राह्मण कन्या ने अगले वर्ष 12 माह की चौथ सहित विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनका मृत पति जीवित हो गया। इस प्रकार यह कथा कहकर श्रीकृष्ण द्रौपदी से बोले-'यदि तुम भी श्रद्धा एवं विधिपूर्वक इस व्रत को करो तो तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे और सुख-सौभाग्य, धन-धान्य में वृद्धि होगी।' फिर द्रौपदी ने श्रीकृष्ण के कथानानुसार करवा चौथ का व्रत रखा। उस व्रत के प्रभाव से महाभारत के युद्ध में कौरवों की हार तथा पाण्डवों की जीत हुई।

करवा चौथ द्वितीय

प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। वह अपने पति के साथ नदी किनारे के एक गांव में रहती थी। उसका पति वृद्ध था। एक दिन वह नदी में स्नान करने गया। नदी में नहाते समय एक मगर ने उसे पकड़ लिया। इस पर व्यक्ति 'करवा करवा' चिल्लाकर अपनी पत्नी को सहायता के लिए पुकारने लगा। करवा पतिव्रता स्त्री थी। आवाज को सुनकर करवा भागकर अपने पति के पास पहुंची और दौड़कर कच्चे धागे से मगर को आन देकर बांध दिया। मगर को सूत के कच्चे धागे से बांधने के बाद करवा यमराज के पास पहुंची। वे उस समय चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे। करवा ने सात सींक ले उन्हें झाड़ना शुरू किया, यमराज के खाते आकाश में उड़ने लगे। यमराज घबरा गए और बोले- 'देवी! तू क्या चाहती है?' करवा ने कहा- 'हे प्रभु! एक मगर ने नदी के जल में मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को आप अपनी शक्ति से अपने लोक (नरक) में ले आओ और मेरे पति को चिरायु करो।'

करवा की बात सुनकर यमराज बोले- 'देवी! अभी मगर की आयु शेष है। अत: आयु रहते हुए मैं असमय मगर को मार नहीं सकता।' इस पर करवा ने कहा- 'यदि मगर को मारकर आप मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे, तो मैं शाप देकर आपको नष्ट कर दूंगी।' करवा की धमकी से यमराज डर गए। वे करवा के साथ वहां आए, जहां मगर ने उसके पति को पकड़ रखा था। यमराज ने मगर को मारकर यमलोक पहुंचा दिया और करवा के पति की प्राण रखा कर उसे दीर्घायु प्रदान की। जाते समय वह करवा को सुख-समृद्धि देते गए तथा यह वर भी दिया- 'जो स्त्री इस दिन व्रत करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रखा करूंगा।' करवा ने पतिव्रत के बल से अपने पति की प्राण रक्षा की थी। इस घटना के दिन से करवा चौथ का व्रत करवा के नाम् से प्रचलित हो गया। जिस दिन करवा ने अपने पति के प्राण बचाए थे, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ थी। हे करवा माता! जैसे उसने (करवा) अपने पति की प्राण रक्षा की वैसे ही सबके पतियों के जीवन की रक्षा करना।