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==काम्यकवन / Kamykvan ==
 
==काम्यकवन / Kamykvan ==
[[महाभारत]] में वर्णित एक वन जहाँ [[पांडव|पांडवों]] ने अपने वनवास काल का कुछ समय बिताया था। यह [[सरस्वती]] नदी के तट पर स्थित था--'स व्यासवाक्यमुदितो वनाद्द्वैतवनात् तत: ययौसरस्वतीकूले काम्यकंनाम काननम्'। काम्यकवन का अभिज्ञान कामवन (जिला [[भरतपुर]], [[राजस्थान]]) से किया गया है। एक अन्य जनश्रुति के आधार पर काम्यकवन [[कुरुक्षेत्र]] के निकट स्थित सप्तवनों में था और इसका अभिज्ञान कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर से तीन मील दूर पहेवा के मार्ग पर स्थित कमोधा स्थान से किया गया है। महाभारत वन0 1 के अनुसार द्यूत में पराजित होकर पांडव जिस समय [[हस्तिनापुर]] से चले थे तो उनके पीछे नगरनिवासी भी कुछ दूर तक गए थे। उनको लौटा कर पहली रात उन्होनें प्रमाणकोटि नामक स्थान पर व्यतीत की थी। दूसरे दिन वह विप्रों के साथ काम्यकवन की ओर चले गए, 'तत: सरस्वती कूले समेपु मरुधन्वसु, काम्यकंनाम दद्दशुर्वनंमुनिजन प्रियम्' <ref>वन0 5, 30</ref>। यहाँ इस  वन  को मरुभूमि के निकट बताया गया है। यह मरुभूमि राजस्थान का मरुस्थल जान पड़ता है जहाँ पहुँच कर सरस्वती लुप्त हो जाती थी <ref>(दे0 विनशन)</ref>। इसी वन में [[भीम]] ने किमार नामक राक्षस का वध किया था <ref>(वन 11)</ref>। इसी वन में [[मैत्रेय]] की पांडवों से भेंट हुई थी जिसका वर्णन उन्होंने [[धृतराष्ट्र]]  को सुनाया था--'तीर्थयात्रामनुकामन् प्राप्तोस्मि कुरुजांगलान् यद्दच्छया धर्मराज द्दष्टवान् काम्यके वने' <ref>(वन0 10, 11)</ref>। काम्यकवन से पांडव [[द्वैतवन]] गए थे<ref>(वन0 28)</ref>।
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*[[महाभारत]] में वर्णित एक वन जहाँ [[पांडव|पांडवों]] ने अपने वनवास काल का कुछ समय बिताया था।  
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*यह [[सरस्वती]] नदी के तट पर स्थित था--'''स व्यासवाक्यमुदितो वनाद्द्वैतवनात् तत: ययौसरस्वतीकूले काम्यकंनाम काननम्'''।  
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*काम्यकवन का अभिज्ञान कामवन, जिला [[भरतपुर]], [[राजस्थान]] से किया गया है।  
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*एक अन्य जनश्रुति के आधार पर काम्यकवन [[कुरुक्षेत्र]] के निकट स्थित सप्तवनों में था और इसका अभिज्ञान कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर से तीन मील दूर पहेवा के मार्ग पर स्थित कमोधा स्थान से किया गया है।  
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*महाभारत<balloon title="वनपर्व 1" style=color:blue>*</balloon>  के अनुसार द्यूत में पराजित होकर पांडव जिस समय [[हस्तिनापुर]] से चले थे तो उनके पीछे नगर निवासी भी कुछ दूर तक गए थे। उनको लौटा कर पहली रात उन्होनें प्रमाणकोटि नामक स्थान पर व्यतीत की थी। दूसरे दिन वह विप्रों के साथ काम्यकवन की ओर चले गए- '''तत: सरस्वती कूले समेपु मरुधन्वसु, काम्यकंनाम दद्दशुर्वनंमुनिजन प्रियम्<balloon title="वनपर्व 5, 30" style=color:blue>*</balloon>'''।  
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*यहाँ इस  वन  को मरुभूमि के निकट बताया गया है। यह मरुभूमि राजस्थान का मरुस्थल जान पड़ता है जहाँ पहुँच कर [[सरस्वती]] लुप्त हो जाती थी।
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*इसी वन में [[भीम]] ने किमार नामक राक्षस का वध किया था<balloon title="वनपर्व 11" style=color:blue>*</balloon>।  
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*इसी वन में [[मैत्रेय]] की पांडवों से भेंट हुई थी जिसका वर्णन उन्होंने [[धृतराष्ट्र]]  को सुनाया था--'''तीर्थयात्रामनुकामन् प्राप्तोस्मि कुरुजांगलान् यद्दच्छया धर्मराज द्दष्टवान् काम्यके वने<balloon title="वनपर्व 10, 11" style=color:blue>*</balloon>'''।  
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*काम्यकवन से पांडव [[द्वैतवन]] गए थे<balloon title="वनपर्व 10, 11 28" style=color:blue>*</balloon><ref>।
 
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१०:१८, ११ फ़रवरी २०१० का अवतरण

काम्यकवन / Kamykvan

  • महाभारत में वर्णित एक वन जहाँ पांडवों ने अपने वनवास काल का कुछ समय बिताया था।
  • यह सरस्वती नदी के तट पर स्थित था--स व्यासवाक्यमुदितो वनाद्द्वैतवनात् तत: ययौसरस्वतीकूले काम्यकंनाम काननम्
  • काम्यकवन का अभिज्ञान कामवन, जिला भरतपुर, राजस्थान से किया गया है।
  • एक अन्य जनश्रुति के आधार पर काम्यकवन कुरुक्षेत्र के निकट स्थित सप्तवनों में था और इसका अभिज्ञान कुरुक्षेत्र के ज्योतिसर से तीन मील दूर पहेवा के मार्ग पर स्थित कमोधा स्थान से किया गया है।
  • महाभारत<balloon title="वनपर्व 1" style=color:blue>*</balloon> के अनुसार द्यूत में पराजित होकर पांडव जिस समय हस्तिनापुर से चले थे तो उनके पीछे नगर निवासी भी कुछ दूर तक गए थे। उनको लौटा कर पहली रात उन्होनें प्रमाणकोटि नामक स्थान पर व्यतीत की थी। दूसरे दिन वह विप्रों के साथ काम्यकवन की ओर चले गए- तत: सरस्वती कूले समेपु मरुधन्वसु, काम्यकंनाम दद्दशुर्वनंमुनिजन प्रियम्<balloon title="वनपर्व 5, 30" style=color:blue>*</balloon>
  • यहाँ इस वन को मरुभूमि के निकट बताया गया है। यह मरुभूमि राजस्थान का मरुस्थल जान पड़ता है जहाँ पहुँच कर सरस्वती लुप्त हो जाती थी।
  • इसी वन में भीम ने किमार नामक राक्षस का वध किया था<balloon title="वनपर्व 11" style=color:blue>*</balloon>।
  • इसी वन में मैत्रेय की पांडवों से भेंट हुई थी जिसका वर्णन उन्होंने धृतराष्ट्र को सुनाया था--तीर्थयात्रामनुकामन् प्राप्तोस्मि कुरुजांगलान् यद्दच्छया धर्मराज द्दष्टवान् काम्यके वने<balloon title="वनपर्व 10, 11" style=color:blue>*</balloon>
  • काम्यकवन से पांडव द्वैतवन गए थे<balloon title="वनपर्व 10, 11 28" style=color:blue>*</balloon><ref>।