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मुनि : "मुझे ऐसा पुत्र दें जो अजेय हो, जिसे कोई हरा न सके। सारे शस्त्र निस्तेज हो जायें। कोई उसका सामना न कर सके।"
 
मुनि : "मुझे ऐसा पुत्र दें जो अजेय हो, जिसे कोई हरा न सके। सारे शस्त्र निस्तेज हो जायें। कोई उसका सामना न कर सके।"
 
शिव : "तुम्हारा पुत्र संसार मे अजेय होगा। कोई अस्त्र शस्त्र से हत्या नहीं होगी। सूर्यवंशी या चंद्रवंशी कोई योद्धा उसे परास्त नहीं कर पायेगा।"
 
शिव : "तुम्हारा पुत्र संसार मे अजेय होगा। कोई अस्त्र शस्त्र से हत्या नहीं होगी। सूर्यवंशी या चंद्रवंशी कोई योद्धा उसे परास्त नहीं कर पायेगा।"
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''"ये वरदान मांगने के पीछे तुम्हारे भोग विलास के एकचा छिपे हुए है हमारे वरदान से तुम्हे राजसी  वैभव प्रतप्त होगा ."
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उसके बाद ऋषि शेशिरायण का शारीर अत्ति सुन्दर हो गया .
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वरदान प्राप्ति के पच्चात ऋषि शेशिरायण एक झरने के पास से जा रहे थे की उन्होंने एक स्त्री को जल क्रीडा करते देखा जो अप्सरा रम्भा थी .
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दोनों एक दुसरे पर मोहित हो गए उनका पुत्र कालयवन हुआ .
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'''रंभा''' समय समाप्ति पर स्वर्ग लोक वापस चले गयी और पुत्र ऋषि को सौंप गयी
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रम्भा के जाते हे ऋषि का मान पुनाह्ह भक्ति मई लग गया
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मलीच देश पर वीर प्रतापी रजा राज करता था --काल जंग समस्त रजा उससे डरते थे
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उसे  कोई संतान ना थे जेसके कारन वेह परेशां रहता
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उसका मंत्री उसे आनंद्गिरी पर्वत के बाबा के पास ले गया
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उन्होंने उसे बताया की वह ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र मांग ले
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ऋषि शेशिरायण पहले तो नाहे मने पर जब उन्हें बाबा जी के वाणी और ये के उन्हें शिव जी के वरदान के बारे मई पता था यह सुन वे अपने पुत्र को काल जुंग को दे देय
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एस प्रकार कालयवन यवन देश का रजा बना
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उसके सामान वीर कोई ना था .
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एक बार उसने नारद जी से पुचा के वेह केसे युद्ध करे जो उसके सामान वीर हो
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नारद जी ने उससे श्री कृष्ण का नाम देय
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शल्य ने कालयवन को मथुरा पर आक्रमण के लिए मनाया और वेह मान गया.
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कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण के लिए सब तैयारियां कर ली .
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दुसरे और जरासंध भे सेना ले कर निकल गया .
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०८:११, ६ सितम्बर २०११ का अवतरण

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कालयवन यवन देश का राजा था। जन्म से ब्राह्मण, पर कर्म से म्लेच्छ (मलेच्छ) था।

शल्य ने जरासंध को यह सलाह दी कि वे कृष्ण को हराने के लिए कालयवन से सहायता मांगे।


कालयवन के पिता

कालयवन ऋषि शेशिरायण का पुत्र था। ऋषि शेशिरायण त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे। वे 'गर्ग गोत्र' के थे। एक बार वे किसी सिद्धि की प्राप्ति के लिए अनुष्ठान कर रहे थे, जिसके लिए १२ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना था। उन्हीं दिनों एक गोष्ठी मे किसी ने उन्हें 'नपुंसक' कह दिया जो उन्हें चुभ गया। उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें ऐसा पुत्र होगा जो अजेय हो, कोई योद्धा उसे जीत न सके।

इसलिए वे भगवान शिव के तपस्या में लग गए। भगवान शिव प्रसन्न हो कर प्रकट हो गए -
शिव: "हे मुनि! हम प्रसन्न हैं, जो मांगना है मांगो। "
मुनि : "मुझे ऐसा पुत्र दें जो अजेय हो, जिसे कोई हरा न सके। सारे शस्त्र निस्तेज हो जायें। कोई उसका सामना न कर सके।"
शिव : "तुम्हारा पुत्र संसार मे अजेय होगा। कोई अस्त्र शस्त्र से हत्या नहीं होगी। सूर्यवंशी या चंद्रवंशी कोई योद्धा उसे परास्त नहीं कर पायेगा।"
"ये वरदान मांगने के पीछे तुम्हारे भोग विलास के एकचा छिपे हुए है हमारे वरदान से तुम्हे राजसी वैभव प्रतप्त होगा ."

उसके बाद ऋषि शेशिरायण का शारीर अत्ति सुन्दर हो गया .
वरदान प्राप्ति के पच्चात ऋषि शेशिरायण एक झरने के पास से जा रहे थे की उन्होंने एक स्त्री को जल क्रीडा करते देखा जो अप्सरा रम्भा थी .
दोनों एक दुसरे पर मोहित हो गए उनका पुत्र कालयवन हुआ .

रंभा समय समाप्ति पर स्वर्ग लोक वापस चले गयी और पुत्र ऋषि को सौंप गयी
रम्भा के जाते हे ऋषि का मान पुनाह्ह भक्ति मई लग गया

काल जंग

मलीच देश पर वीर प्रतापी रजा राज करता था --काल जंग समस्त रजा उससे डरते थे
उसे कोई संतान ना थे जेसके कारन वेह परेशां रहता
उसका मंत्री उसे आनंद्गिरी पर्वत के बाबा के पास ले गया
उन्होंने उसे बताया की वह ऋषि शेशिरायण से उनका पुत्र मांग ले
ऋषि शेशिरायण पहले तो नाहे मने पर जब उन्हें बाबा जी के वाणी और ये के उन्हें शिव जी के वरदान के बारे मई पता था यह सुन वे अपने पुत्र को काल जुंग को दे देय

एस प्रकार कालयवन यवन देश का रजा बना
उसके सामान वीर कोई ना था .
एक बार उसने नारद जी से पुचा के वेह केसे युद्ध करे जो उसके सामान वीर हो
नारद जी ने उससे श्री कृष्ण का नाम देय

शल्य ने कालयवन को मथुरा पर आक्रमण के लिए मनाया और वेह मान गया.
कालयवन ने मथुरा पर आक्रमण के लिए सब तैयारियां कर ली .
दुसरे और जरासंध भे सेना ले कर निकल गया .


 



टीका टिप्पणी और संदर्भ

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