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कुन्ती / Kunti

हमारे शास्त्रों में पाँच देवियाँ नित्य कन्याएँ मानी गयी हैं । उनमें महारानी कुन्ती भी हैं । ये वसुदेवजी की बहन थीं और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ । महाराज कुन्तिभोज से इनके पिता की मित्रता थी, उसके कोई सन्तान नहीं थी, अत: ये कुन्तिभोज के यहाँ गोद आयीं और उन्हीं की पुत्री होने के कारण इनका नाम कुन्ती पड़ा । महाराज पाण्डु के साथ कुन्ती का विवाह हुआ, वे राजपाट छोड़कर वन चले गये । वन में ही कुन्ती को धर्म, इन्द्र, पवन के अंश से युधिष्ठर, अर्जुन, भीम आदि पुत्रों की उत्पत्ति हुई और इनकी सौत माद्री को अश्वनीकुमारों के अंश से नकुल, सहदेव का जन्म हुआ । महाराज पाण्डु का शरीरान्त होने पर माद्री तो उनके साथ सती हो गयी और ये बच्चों की रक्षा के लिये जीवित रह गयीं । इन्होंने पाँचों पुत्रों को अपनी ही कोख से उत्पन्न हुआ माना, कभी स्वप्न में भी उनमें भेदभाव नहीं किया ।