"कुब्जा दासी" के अवतरणों में अंतर
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> ==कुब्जा दासी / Kubja Dasi== कुब्जा बलराम तथा ग्वालों के साथ ...) |
|||
पंक्ति २: | पंक्ति २: | ||
==कुब्जा दासी / [[:en:Kubja Dasi|Kubja Dasi]]== | ==कुब्जा दासी / [[:en:Kubja Dasi|Kubja Dasi]]== | ||
कुब्जा [[बलराम]] तथा ग्वालों के साथ [[कृष्ण]] [[मथुरा]] के बाजार में घूम रहे थे। उन्हें एक सुदंर मुख तथा कुबड़ी कमरवाली स्त्री दिखायी दी। वह [[कंस]] के लिए अंगराग बनाती थी। उससे अंगराग लेकर कृष्ण तथा बलराम ने लगाया तदनंतर उससे प्रसन्न होकर कृष्ण ने उसके दोनों पंजों को अपने पैरों से दबाकर हाथ ऊपर उठवाकर ठोड़ी को ऊपर उठाया, इस प्रकार उसका कुबड़ापन ठीक हो गया। उसके बहुत आमंत्रित करने पर उसके घर जाने का वादा कर कृष्ण ने उसे विदा किया। कालांतर में कृष्ण ने [[उद्धव]] के साथ कुब्जा का आतिथ्य स्वीकार किया। कुब्जा के साथ प्रेम-क्रीड़ा भी की। उसने कृष्ण से वर मांगा कि वे चिरकाल तक उसके साथ वैसी ही प्रेम-क्रीड़ा करते रहें। | कुब्जा [[बलराम]] तथा ग्वालों के साथ [[कृष्ण]] [[मथुरा]] के बाजार में घूम रहे थे। उन्हें एक सुदंर मुख तथा कुबड़ी कमरवाली स्त्री दिखायी दी। वह [[कंस]] के लिए अंगराग बनाती थी। उससे अंगराग लेकर कृष्ण तथा बलराम ने लगाया तदनंतर उससे प्रसन्न होकर कृष्ण ने उसके दोनों पंजों को अपने पैरों से दबाकर हाथ ऊपर उठवाकर ठोड़ी को ऊपर उठाया, इस प्रकार उसका कुबड़ापन ठीक हो गया। उसके बहुत आमंत्रित करने पर उसके घर जाने का वादा कर कृष्ण ने उसे विदा किया। कालांतर में कृष्ण ने [[उद्धव]] के साथ कुब्जा का आतिथ्य स्वीकार किया। कुब्जा के साथ प्रेम-क्रीड़ा भी की। उसने कृष्ण से वर मांगा कि वे चिरकाल तक उसके साथ वैसी ही प्रेम-क्रीड़ा करते रहें। | ||
− | <ref>श्रीमद् भागवत 10।42।10।48</ref <ref>ब्रह्म पुराण 193/-</ref> | + | <ref>श्रीमद् भागवत 10।42।10।48</ref> <ref>ब्रह्म पुराण 193/-</ref> |
१४:५६, २९ नवम्बर २००९ का अवतरण
कुब्जा दासी / Kubja Dasi
कुब्जा बलराम तथा ग्वालों के साथ कृष्ण मथुरा के बाजार में घूम रहे थे। उन्हें एक सुदंर मुख तथा कुबड़ी कमरवाली स्त्री दिखायी दी। वह कंस के लिए अंगराग बनाती थी। उससे अंगराग लेकर कृष्ण तथा बलराम ने लगाया तदनंतर उससे प्रसन्न होकर कृष्ण ने उसके दोनों पंजों को अपने पैरों से दबाकर हाथ ऊपर उठवाकर ठोड़ी को ऊपर उठाया, इस प्रकार उसका कुबड़ापन ठीक हो गया। उसके बहुत आमंत्रित करने पर उसके घर जाने का वादा कर कृष्ण ने उसे विदा किया। कालांतर में कृष्ण ने उद्धव के साथ कुब्जा का आतिथ्य स्वीकार किया। कुब्जा के साथ प्रेम-क्रीड़ा भी की। उसने कृष्ण से वर मांगा कि वे चिरकाल तक उसके साथ वैसी ही प्रेम-क्रीड़ा करते रहें। [१] [२]
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- कृष्ण सम्बंधित लेख
- कृष्ण|कृष्ण
- कृष्ण संदर्भ|कृष्ण संदर्भ
- कृष्ण काल|कृष्ण काल
- कृष्ण वंशावली|कृष्ण वंशावली
- कृष्ण जन्मभूमि|कृष्ण जन्मस्थान
- कृष्ण और महाभारत|कृष्ण और महाभारत
- गीता|गीता
- राधा|राधा
- देवकी|देवकी
- गोपी|गोपी
- अक्रूर|अक्रूर
- अंधक|अंधक
- कंस|कंस
- द्वारका|द्वारका
- यशोदा|यशोदा
- रंगेश्वर महादेव|रंगेश्वर महादेव
- वृष्णि संघ|वृष्णि संघ
- पूतना-वध|पूतना-वध
- शकटासुर-वध|शकटासुर-वध
- उद्धव|उद्धव
- प्रद्युम्न|प्रद्युम्न
- सुदामा|सुदामा
- अनिरुद्ध|अनिरुद्ध
- उषा|उषा
- कालयवन|कालयवन
</sidebar>