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कुंभनदास भी अष्टछाप के एक कवि थे और [[परमानंद]] जी के ही समकालीन थे । ये पूरे विरक्त और धन, मान, मर्यादा की इच्छा से कोसों दूर थे । एक बार [[अकबर]] बादशाह के बुलाने पर इन्हें [[फतेहपुर सीकरी]] जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ । पर इसका इन्हें बराबर खेद ही रहा, जैसा कि इस पद से व्यंजित होता है -
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कुंभनदास भी अष्टछाप के एक कवि थे और [[परमानंददास]] जी के ही समकालीन थे । ये पूरे विरक्त और धन, मान, मर्यादा की इच्छा से कोसों दूर थे । एक बार [[अकबर]] बादशाह के बुलाने पर इन्हें [[फतेहपुर सीकरी]] जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ । पर इसका इन्हें बराबर खेद ही रहा, जैसा कि इस पद से व्यंजित होता है -
  
 
संतन को कहा सीकरी सो काम ?
 
संतन को कहा सीकरी सो काम ?

०५:५१, १५ अगस्त २००९ का अवतरण


कुंभनदास

कुंभनदास भी अष्टछाप के एक कवि थे और परमानंददास जी के ही समकालीन थे । ये पूरे विरक्त और धन, मान, मर्यादा की इच्छा से कोसों दूर थे । एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ । पर इसका इन्हें बराबर खेद ही रहा, जैसा कि इस पद से व्यंजित होता है -

संतन को कहा सीकरी सो काम ?

आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम

जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम

कुंभनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम ।

इनका कोई ग्रंथ न तो प्रसिद्ध है और न अब तक मिला है ।