कुम्भनदास

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Renu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:२८, २४ जून २००९ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

कुंभनदास

कुंभनदास भी अष्टछाप के एक कवि थे और परमानंद जी के ही समकालीन थे । ये पूरे विरक्त और धन, मान, मर्यादा की इच्छा से कोसों दूर थे । एक बार अकबर बादशाह के बुलाने पर इन्हें फतेहपुर सीकरी जाना पड़ा जहाँ इनका बड़ा सम्मान हुआ । पर इसका इन्हें बराबर खेद ही रहा, जैसा कि इस पद से व्यंजित होता है -

संतन को कहा सीकरी सो काम ?

आवत जात पनहियाँ टूटी, बिसरि गयो हरि नाम

जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम

कुंभनदास लाल गिरिधर बिनु और सबै बेकाम ।

इनका कोई ग्रंथ न तो प्रसिद्ध है और न अब तक मिला है ।