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+ | [[मथुरा]] से [[दिल्ली]] जाते समय 'राष्ट्रीय राजमार्ग 2' पर पड़ने वाले [[छटीकरा]] के पास ही 'गरूड़ - गोविन्द' [[कृष्ण]] की विहार स्थली है। एक दिन श्रीकृष्ण गोचारण करते हुए सखाओं के साथ यहाँ नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में मग्न थे। वे बाल क्रीड़ा करते हुए श्रीदाम सखा को गरूड़ बनाकर उसकी पीठ पर स्वयं बैठकर इस प्रकार खेलने लगे मानो स्वयं [[विष्णु|लक्ष्मीपति नारायण]] गरूड़ की पीठ पर सवार हों। आज भी गरूड़ बने हुए श्रीराम तथा गोविन्द जी का यहाँ दर्शन होता है। | ||
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१२:४४, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
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गरूड़ गोविन्द
मथुरा से दिल्ली जाते समय 'राष्ट्रीय राजमार्ग 2' पर पड़ने वाले छटीकरा के पास ही 'गरूड़ - गोविन्द' कृष्ण की विहार स्थली है। एक दिन श्रीकृष्ण गोचारण करते हुए सखाओं के साथ यहाँ नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में मग्न थे। वे बाल क्रीड़ा करते हुए श्रीदाम सखा को गरूड़ बनाकर उसकी पीठ पर स्वयं बैठकर इस प्रकार खेलने लगे मानो स्वयं लक्ष्मीपति नारायण गरूड़ की पीठ पर सवार हों। आज भी गरूड़ बने हुए श्रीराम तथा गोविन्द जी का यहाँ दर्शन होता है।
अन्य प्रसंग
रामावतार में जब श्रीरामचन्द्र जी मेघनाद के द्वारा नागपाश में बंधकर असहाय जैसे हो गये, उस समय देवर्षि नारद से संवाद पाकर गरूड़ जी वहाँ उपस्थित हुए। उनको देखते ही नाग श्रीरामचन्द्र जी को छोड़कर भाग गये। इससे गरूड़ जी को श्रीराम की भगवत्ता में कुछ संदेह हो गया। पीछे से महात्मा काकभुषुण्डी के सत्संग से एवं तत्पश्चात श्रीकृष्ण लीला के समय श्रीकृष्ण दर्शन से उनका वह संदेह दूर हो गया। जहाँ उन्होंने गो, गोप एवं गऊओं के पालन करने वाले श्री गोविन्द का दर्शन किया था, उसे गरूड़ गोविन्द कहते हैं। उस समय श्रीकृष्ण ने उनके कंधे पर आरोहण कर उन्हें आश्वासन दिया था।