"गांधार" के अवतरणों में अंतर

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पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक । पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र । इसे आधुनिक कंदहार से जोड़ने की गलती कई बार लोग कर देते हैं जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था । इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे । इस [[महाजनपद]] के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा [[तक्षशिला]] इसकी राजधानी थी । इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा । [[कुषाण]] शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म बदुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया ।
 
पौराणिक [[सोलह महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक । पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र । इसे आधुनिक कंदहार से जोड़ने की गलती कई बार लोग कर देते हैं जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था । इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे । इस [[महाजनपद]] के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा [[तक्षशिला]] इसकी राजधानी थी । इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा । [[कुषाण]] शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म बदुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया ।
 
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इस प्रदेश का उल्लेख महाभारत और अशोक के शिलालेखों में मिलता है।  महाभारत के अनुसार धृतराष्ट्र की रानी और दुर्योधन की माता गांधारी गंधार की राजकुमारी थीं।  आजकल यह पाकिस्तान के रावलपिंडी और पेशावर जिलों का क्षेत्र है।  तक्षशिला और पुष्करावती यहीं के प्रसिद्ध नगर थे।  अशोक के साम्राज्य का अंग रहने के बाद कुछ समय यह फारस के और कुषाण राज्य के अंतर्गत रहा।  यह पूर्व और पश्चिम के सांस्कृतिक संगम का स्थल था और यहां कला की 'गांधार शैली' का जन्म हुआ।
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इस प्रदेश का उल्लेख [[महाभारत]] और [[अशोक]] के शिलालेखों में मिलता है।  महाभारत के अनुसार [[धृतराष्ट्र]] की रानी और [[दुर्योधन]] की माता [[गांधारी]] गंधार की राजकुमारी थीं।  आजकल यह पाकिस्तान के रावलपिंडी और पेशावर जिलों का क्षेत्र है।  [[तक्षशिला]] और [[पुष्कलावती]] यहीं के प्रसिद्ध नगर थे।  अशोक के साम्राज्य का अंग रहने के बाद कुछ समय यह फारस के और कुषाण राज्य के अंतर्गत रहा।  यह पूर्व और पश्चिम के सांस्कृतिक संगम का स्थल था और यहां कला की '[[गांधार शैली]]' का जन्म हुआ।
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[[सिंधु]]नदी के पूर्व और उत्तरपश्चिम की ओर स्थित प्रदेश।  वर्तमान [[अफगानिस्तान]] का पूर्वी भाग भी इसमें सम्मिलित था।  [[ऋग्वेद]] में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और [[अथर्ववेद]] में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है-
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[[छांदोग्योपनिषद्]] में उद्दालक-अरूणि ने गंधार का, सद्गुरू वाले शिष्य के अपने अंतिम लक्ष्य पर पहुंचने के उदाहरण के रूप में उल्लेख किया है। जान पड़ता है कि छांदोग्य के रचयिता का गंधार से विशेष रूप से परिचय था। 
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[[शतपथ-ब्राह्मण]] 12,4,1 तथा अनुगामी वाक्यों में उद्दालक अरूणि का उदीच्यों या उत्तरी देश (गंधार) के निवासियों के स संबंध बताया गया है।  [[पाणिनि]] ने जो स्वयं गंधार के निवासी थे, तक्षशिला का 4,3,93 में उल्लेख किया है। ऐतिहासिक अनुश्रुति में कौटिल्य [[चाणक्य]] को तक्षशिला महाविद्यालय का ही रत्न बताया गया है। [[वाल्मीकि]] रामायण उत्तर- 101,11 में गंधर्वदेश की स्थिति गांधार विषय के अंतर्गत बताई गई है। [[केकय]] देश इस के पूर्व में स्थित था।  केकय-नरेश युधाजित् के कहने से अयोध्यापति [[राम]]चंद्र जी के भाई भरत ने गंधर्व देश को जीतकर यहां तक्षशिला और पुष्कलावती नगरियों को बसाया था
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महाभारत काल में गंधार देश का मध्यदेश से निकट संबंध था।  धृतराष्ट्र की पत्नी गंधारी, गंधार ही की राजकन्या थी। [[शकुनि]] इसका भाई था।  जातकों में कश्मीर और तक्षशिला-दोनों की स्थिति गंधार में मानी गई है। जातकों में तक्षशिला का अनेक बार उल्लेख है।  जातककाल में यह नगरी महाविद्यालय के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध थी।  [[पुराणों|पुराणों]] में (मत्स्य, 48, 6 वायु, 99,9) गंधार नरेशों को द्रुहयु का वंशज माना।  वायुपुराणमें गंधार के श्रेष्ठ घोड़ों का उल्लेख है।
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[[अंगुत्तर निकाय]] के अनुसार [[बुद्ध]] तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था।  [[अलक्षेंद्र]] (सिकन्दर) के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि।  [[मौर्य]]साम्राज्य में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था।  कुषाण साम्राज्य का भी वह एक अंग था।  कुषाण काल ही में यहां की नई राजधानी पुरूषपुर या पेशावर में बनाई गई।  इस काल में तक्षशिला का पूर्व गौरव समाप्त हो गया था।  [[गुप्तकाल]] में गंधार शायद गुप्तों के साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहां यवन, शक आदि  बाह्यदेशीयों का आधिपत्य था।
 
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(1)सिंधुनदी के पूर्व और उत्तरपश्चिम की ओर स्थित प्रदेश।  वर्तमान अफगानिस्तान का पूर्वी भाग भी इसमें सम्मिलित था।  ऋग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्व-वेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है-'उपोप मे परामृश मा में दभ्राणिमन्यथा:, सर्वाहमस्मि रोमशा गंधारीणामिवाविका' ऋग्वेद 1,126,18; 'गंधारिम्यों मूजवद्भ्योड् गेभ्यो मगधेभ्य: प्रैष्यन् जनमिव शेवधिं तक्मानं परिदद्मसिं अथर्ववेद 5,22,14 ।  अथर्ववेद में गंधारियों की गणना अवमानित जातियों में की गई है किंतु परवर्ती काल में गंधारवासियों के प्रति मध्यदेशीयों का दृष्टिकोण बदल गया और गंधार में बड़े विद्वान् पंडितों ने अपना निवास-स्थान बनाया।  तक्षशिला गंधार की लोकविश्रुत राजधानी थी। छांदोग्योपनिषद् में उद्दालक-अरूणि ने गंधार का, सद्गुरू वाले शिष्य के अपने अंतिम लक्ष्य पर पहुंचने के उदाहरण के रूप में उल्लेख किया है। जान पड़ता है कि छांदोग्य के रचयिता का गंधार से विशेष रूप से परिचय था।  शतपथ-ब्राह्मण 12,4,1 तथा अनुगामी वाक्यों में उद्दालक अरूणि का उदीच्यों या उत्तरी देश (गंधार) के निवासियों के स संबंध बताया गया है।  पाणिनि ने जो स्वयं गंधार के निवासी थे, तक्षशिला का 4,3,93 में उल्लेख किया है। ऐतिहासिक अनुश्रुति में कौटिल्य चाणक्य को तक्षशिला महाविद्यालय का ही रत्न बताया गया है। वाल्मीकि रामायण उत्तर- 101,11 में गंधर्वदेश की स्थिति गांधार विषय के अंतर्गत बताई गई है। केकय देश इस के पूर्व में स्थित था।  केकय-नरेश युधाजित् के कहने से अयोध्यापति रामचंद्र जी के भाई भरत ने गंधर्व देश को जीतकर यहां तक्षशिला और पुष्कलावती नगरियों को बसाया था-(दे0 गंधर्वदेश)।  महाभारत –काल में गंधार देश का मध्यदेश से निकट संबंध था।  धृतराष्ट्र की पत्नी गंधारी, गंधार ही की राजकन्या थी। शकुनि इसका भाई था।  जातकों में कश्मीर और तक्षशिला-दोनों की स्थिति गंधार में मानी गई है। जातकों में तक्षशिला का अनेक बार उल्लेख है।  जातककाल में यह नगरी महाविद्यालय के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध थी।  पुराणों में (मत्स्य, 48, 6 वायु, 99,9) गंधार नरेशों को द्रुहयु का वंशज माना।  वायुपुराणमें गंधार के श्रेष्ठ घोड़ों का उल्लेख है। अंगुत्तर निकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था।  अलक्षेंद्र के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि।  मौर्यसाम्राज्य में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था।  कुशान साम्राज्य का भी वह एक अंग था।  कुशान काल ही में यहां की नई राजधानी पुरूषपुर या पेशावर में बनाई गई।  इस काल में तक्षशिला का पूर्व गौरव समाप्त हो गया था।  गुप्तकाल में गंधार शायद गुप्तों के साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहां यवन, शक आदि  बाह्यदेशीयों का आधिपत्य था। 7वीं शती ई0 में गंधार के अनेक भागों में बौद्धधर्म काफी उन्नत था।  8वीं-9वीं शतियों में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय धीरे-धीरे यह देश उन्हीं के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव में आ गया।  870 ई0 में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया लेकिन इसके बाद काफी समय तक यहां हिंदू तथा बौद्ध अनेक क्षेत्रों में रहते रहे।  अलप्तगीन और सुबुक्तगीन के हमलों का भी उन्होंने सामना किया।  990 ई0 में लमगान (प्राचीन लंपाक) का किला उनके हाथों से निकल गया और इसके बाद काफिरिस्तान को छोड़कर सारा अफगानिस्तान मुसलमानों के धर्म में दीक्षित हो गया।
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7वीं शती ई0 में गंधार के अनेक भागों में [[बौद्ध]]धर्म काफी उन्नत था।  8वीं-9वीं शतियों में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय धीरे-धीरे यह देश उन्हीं के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव में आ गया।  870 ई0 में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया लेकिन इसके बाद काफी समय तक यहां हिंदू तथा बौद्ध अनेक क्षेत्रों में रहते रहे।  अलप्तगीन और सुबुक्तगीन के हमलों का भी उन्होंने सामना किया।  990 ई0 में लमगान (प्राचीन लंपाक) का किला उनके हाथों से निकल गया और इसके बाद काफिरिस्तान को छोड़कर सारा अफगानिस्तान मुसलमानों के धर्म में दीक्षित हो गया।
(2) (थाइलैंड) थाइलैंड या स्याम के उत्तरी भाग में स्थित युन्नास का प्राचीन भारतीय नाम। चीनी इतिहास –ग्रंथों से सूचित होता है। कि द्वितीय शती ई0पू0 ही में इस प्रदेश में भारतीयों ने उपनिवेश बसा लिए थे और ये लोग बंगाल-असम तथा ब्रह्मदेश के व्यापारिक स्थलमार्ग से यहां पहुंचे थे। 13वीं शती तक युन्नान का भारतीय नाम गंधार ही प्रचलित था, जैसा कि तत्कालीन मुसलमान लेखक रशीदुद्दीन के वर्णन से सूचित होता है। इस प्रदेश का चीनी नाम नानचाओं था।  1253 ई0 में चीन के सम्राट् कुबलाखां ने गंधार को जीतकर यहां के हिंदू राज्य की समाप्ति कर दी।   
 
  
  
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* [[अफ़ग़ानिस्तान]]
 
* [[अफ़ग़ानिस्तान]]
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०९:५७, १५ अगस्त २००९ का अवतरण

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अन्य सम्बंधित लिंक


गांधार / गंधार / Gandhar

पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक । पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफ़ग़ानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र । इसे आधुनिक कंदहार से जोड़ने की गलती कई बार लोग कर देते हैं जो कि वास्तव में इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था । इस प्रदेश का मुख्य केन्द्र आधुनिक पेशावर और आसपास के इलाके थे । इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे - पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी । इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा । कुषाण शासकों के दौरान यहां बौद्ध धर्म बदुत फला फूला पर बाद में मुस्लिम आक्रमण के कारण इसका पतन हो गया ।


इस प्रदेश का उल्लेख महाभारत और अशोक के शिलालेखों में मिलता है। महाभारत के अनुसार धृतराष्ट्र की रानी और दुर्योधन की माता गांधारी गंधार की राजकुमारी थीं। आजकल यह पाकिस्तान के रावलपिंडी और पेशावर जिलों का क्षेत्र है। तक्षशिला और पुष्कलावती यहीं के प्रसिद्ध नगर थे। अशोक के साम्राज्य का अंग रहने के बाद कुछ समय यह फारस के और कुषाण राज्य के अंतर्गत रहा। यह पूर्व और पश्चिम के सांस्कृतिक संगम का स्थल था और यहां कला की 'गांधार शैली' का जन्म हुआ।


सिंधुनदी के पूर्व और उत्तरपश्चिम की ओर स्थित प्रदेश। वर्तमान अफगानिस्तान का पूर्वी भाग भी इसमें सम्मिलित था। ऋग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्ववेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है-

'उपोप मे परामृश मा में दभ्राणिमन्यथा:,

सर्वाहमस्मि रोमशा गंधारीणामिवाविका' -ऋग्वेद 1,126,18;

'गंधारिम्यों मूजवद्भ्योड् गेभ्यो मगधेभ्य:

प्रैष्यन् जनमिव शेवधिं तक्मानं परिदद्मसिं -अथर्ववेद 5,22,14 ।

अथर्ववेद में गंधारियों की गणना अवमानित जातियों में की गई है किंतु परवर्ती काल में गंधारवासियों के प्रति मध्यदेशीयों का दृष्टिकोण बदल गया और गंधार में बड़े विद्वान् पंडितों ने अपना निवास-स्थान बनाया। तक्षशिला गंधार की लोकविश्रुत राजधानी थी।


छांदोग्योपनिषद् में उद्दालक-अरूणि ने गंधार का, सद्गुरू वाले शिष्य के अपने अंतिम लक्ष्य पर पहुंचने के उदाहरण के रूप में उल्लेख किया है। जान पड़ता है कि छांदोग्य के रचयिता का गंधार से विशेष रूप से परिचय था।


शतपथ-ब्राह्मण 12,4,1 तथा अनुगामी वाक्यों में उद्दालक अरूणि का उदीच्यों या उत्तरी देश (गंधार) के निवासियों के स संबंध बताया गया है। पाणिनि ने जो स्वयं गंधार के निवासी थे, तक्षशिला का 4,3,93 में उल्लेख किया है। ऐतिहासिक अनुश्रुति में कौटिल्य चाणक्य को तक्षशिला महाविद्यालय का ही रत्न बताया गया है। वाल्मीकि रामायण उत्तर- 101,11 में गंधर्वदेश की स्थिति गांधार विषय के अंतर्गत बताई गई है। केकय देश इस के पूर्व में स्थित था। केकय-नरेश युधाजित् के कहने से अयोध्यापति रामचंद्र जी के भाई भरत ने गंधर्व देश को जीतकर यहां तक्षशिला और पुष्कलावती नगरियों को बसाया था


महाभारत काल में गंधार देश का मध्यदेश से निकट संबंध था। धृतराष्ट्र की पत्नी गंधारी, गंधार ही की राजकन्या थी। शकुनि इसका भाई था। जातकों में कश्मीर और तक्षशिला-दोनों की स्थिति गंधार में मानी गई है। जातकों में तक्षशिला का अनेक बार उल्लेख है। जातककाल में यह नगरी महाविद्यालय के रूप में भारत भर में प्रसिद्ध थी। पुराणों में (मत्स्य, 48, 6 वायु, 99,9) गंधार नरेशों को द्रुहयु का वंशज माना। वायुपुराणमें गंधार के श्रेष्ठ घोड़ों का उल्लेख है।


अंगुत्तर निकाय के अनुसार बुद्ध तथा पूर्व-बुद्धकाल में गंधार उत्तरी भारत के सोलह जनपदों में परिगणित था। अलक्षेंद्र (सिकन्दर) के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। मौर्यसाम्राज्य में संपूर्ण गंधार देश सम्मिलित था। कुषाण साम्राज्य का भी वह एक अंग था। कुषाण काल ही में यहां की नई राजधानी पुरूषपुर या पेशावर में बनाई गई। इस काल में तक्षशिला का पूर्व गौरव समाप्त हो गया था। गुप्तकाल में गंधार शायद गुप्तों के साम्राज्य के बाहर था क्योंकि उस समय यहां यवन, शक आदि बाह्यदेशीयों का आधिपत्य था।


7वीं शती ई0 में गंधार के अनेक भागों में बौद्धधर्म काफी उन्नत था। 8वीं-9वीं शतियों में मुसलमानों के उत्कर्ष के समय धीरे-धीरे यह देश उन्हीं के राजनैतिक तथा सांस्कृतिक प्रभाव में आ गया। 870 ई0 में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया लेकिन इसके बाद काफी समय तक यहां हिंदू तथा बौद्ध अनेक क्षेत्रों में रहते रहे। अलप्तगीन और सुबुक्तगीन के हमलों का भी उन्होंने सामना किया। 990 ई0 में लमगान (प्राचीन लंपाक) का किला उनके हाथों से निकल गया और इसके बाद काफिरिस्तान को छोड़कर सारा अफगानिस्तान मुसलमानों के धर्म में दीक्षित हो गया।


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