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०९:२८, २९ जनवरी २०१० का अवतरण

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गार्गी / Gargi

उपनिषद काल की एक विदुषी महिला। गर्ग ऋषि के गोत्र में उत्पन्न होने के कारण गार्गी नाम पड़ा। एक बार यज्ञ के समय राजा जनक ने घोषणा की कि जो व्यक्ति स्वयं को सबसे महान् ज्ञानी सिद्ध करेगा, उसे स्वर्णपत्रों में जड़े सींगोंवाली एक हजार गाएं उपहार में दी जाएंगी। कोई विद्वान् आगे नहीं आया। इस पर ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य से उन गायों को आश्रम की ओर हांक ले जाने के लिए कहा। तब उपस्थित विद्वानों का याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ हुआ। उनसे प्रश्न पूछने वालों में गार्गी भी थी। उसके पूछे हुए ब्रह्मविषयक प्रश्नों से गार्गी की विद्वता का पता चलता है। उसके एक प्रश्न से उत्तेजित याज्ञवल्क्य ने कहा- गार्गी अब तू प्रश्न की सीमा का अतिक्रमण कर रही है। अब आगे मत पूछ। अन्यथा कहीं तेरा सिर कटकर न गिर पड़े। परंतु फिर भी उसने दो प्रश्न किए और उनके उत्तर में याज्ञवल्क्य को अपने दर्शन का प्रतिपादन करना पड़ा था।