ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
पंक्ति २०: |
पंक्ति २०: |
| | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| |
| | | |
− | जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान् ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरूष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।। | + | जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरूष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।। |
| | | |
| | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| |
पंक्ति ३१: |
पंक्ति ३१: |
| |- | | |- |
| | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | |
− | माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान् ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्योंमें; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरूष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है | + | माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्योंमें; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरूष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है |
| |- | | |- |
| |} | | |} |
०३:२७, १८ जनवरी २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-10 श्लोक-3 / Gita Chapter-10 Verse-3
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम् ।
असंमूढ: स मर्त्येषु सर्वपापै: प्रमुच्यते ।।3।।
|
जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित, अनादि और लोकों का महान ईश्वर तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् पुरूष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है ।।3।।
|
He who know me in reality as birthless and without beginning, and as the supreme Lord of the universe, he, undeluded among men, is purged of all sins. (3)
|
माम् = मेरे को; अजम् = अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्मरहित(और); अनादिम् = अनादि; लोकमहेश्वरम् = लोकों का महान ईश्वर; वेत्ति = तत्त्व से जानता है; स: = वह; मर्त्येषु = मनुष्योंमें; असंमूढ: ज्ञानवान् = (पुरूष); सर्वपापै: = संपूर्ण पापों से प्रमुच्यते = मुक्त हो जाता है
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|