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− | अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भलीभाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम, करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसत्र होने के लिये प्रार्थना करता हूँ । हे देव ! पिता जैसे पुत्र के , सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं- वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने योग्य हैं ।।44।। | + | अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भली-भाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ । हे देव ! पिता जैसे पुत्र के , सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं- वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने योग्य हैं ।।44।। |
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१२:११, २२ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-44 / Gita Chapter-11 Verse-44
तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं
प्रसादये त्वामह्रमीशमीड्यम् ।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्यु:
प्रिय: प्रियायार्हसि देव सोढुम् ।।44।।
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अतएव हे प्रभो ! मैं शरीर को भली-भाँति चरणों में निवेदित कर, प्रणाम करके, स्तुति करने योग्य आप ईश्वर को प्रसन्न होने के लिये प्रार्थना करता हूँ । हे देव ! पिता जैसे पुत्र के , सखा जैसे सखा के और पति जैसे प्रियतमा पत्नी के अपराध सहन करते हैं- वैसे ही आप भी मेरे अपराध को सहन करने योग्य हैं ।।44।।
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Therefore, Lord , prostrating my body at Your feet and bowing low I seek to propitiate You, the ruler of all and worthy of all praise. It hehoves you to bear with me even as father bears with his son, a friend with his friend and a husband with his beloved spouse, (44)
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तस्मात् = इससे (हे प्रभो); कायम् = शरीरको; प्रणिघाय = अच्छी प्रकार चरणों में रखके(और); प्रणम्य = प्रणाम करके; ईड्यम् = स्तुति करने योग्य; त्वाम् = आप; प्रसादये = प्रसत्र होने के लिये प्रार्थना करता हूं; इव = जैसे; पुत्रस्य = पुत्र के(और); सख्यु: =सखा के(और); प्रिय: = पति; (मम) = मेरे; (अपराधम् ) = अपराधको; सोढुम् = सहन करने के लिये; अर्हसि = योग्य है;
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