गीता 12:5

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गीता अध्याय-12 श्लोक-5 / Gita Chapter-12 Verse-5

प्रसंग-


इस प्रकार निर्गुण-उपासना और उसके फल का प्रतिपादन करने के पश्चात् अब देहाभिमानियों के लिये अव्यक्त गति की प्राप्ति को कठिन बतलाते हैं-


क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् ।
अव्यक्ता हि गतिर्द:खं देहवदिभरवाप्यते ।।5।।



प उन सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्मा में आसक्त चित्तवाले पुरूषों के साधन में परिश्रम विशेष है, क्योंकि देहाभिमानियें के द्वारा अव्यक्त विषयक गति दु:खपूर्वक प्राप्त की जाती है ।।5।।

Of course, thw strain is greater for thse who have their mind attached to the unmanifest is attained with difficulty by those who are centred in the body. (5)


तेषाम् = उन ; अव्यक्तासक्त चेतसाम् = सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म में आसक्त हुए चिनवाले पुरूषों के (साधन में ) ; क्केश: = क्केश अर्थात् परिश्रम ; अधकितर: = विशेष है ; हि = क्योंकि ; देहवद्धि: = देहाभिमानियों से ; अव्यक्ता = अव्यक्तविषयक ; गति: = गति ; अवप्यते = प्राप्त की जाती है


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