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हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र हैं। &nbsp;&nbsp;महाराज पाण्डु एवं रानी कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इंद्र से हुए। &nbsp;&nbsp;अर्जुन सबसे अच्छा तीरंदाज था। &nbsp;&nbsp;वो द्रोणाचार्य का शिष्य था जीवन मे अनेक अवसरों पर उसने इसका परिचय दिया था द्रौपदी को स्वयंम्वर मे जीतने वाला वो ही था। &nbsp;&nbsp;¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! यह शरीर 'क्षेत्र' इस नाम से कहा जाता है; और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं ।।1।।
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हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
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¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon>! यह शरीर 'क्षेत्र' इस नाम से कहा जाता है; और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं ।।1।।
  
 
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१२:१८, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-13 श्लोक-1 / Gita Chapter-13 Verse-1

त्रयोदशोऽध्याय प्रसंग-


'क्षेत्र' (शरीर) और 'क्षेत्रज्ञ' (आत्मा) परस्पर अत्यन्त विलक्षण है । केवल अज्ञान से ही इन दोनों की एकता–सी हो रही है । क्षेत्र जड़, विकारी, क्षणिक और नाशवान् है; एवं क्षेत्रज्ञ चेतन, ज्ञान स्वरूप निर्विकार, नित्य और अविनाशी है । इस अध्याय में 'क्षेत्र' और 'क्षेत्रज्ञ' दोनों के स्वरूप का उपर्युक्त प्रकार से विभाग किया गया है । इसलिये इसका नाम 'क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विभागयोग' रखा गया है ।

प्रसंग-


निर्गुण–निराकार का तत्व अर्थात् ज्ञान योग का विषय भली-भाँति समझाने के लिये तेरहवें अध्याय का आरम्भ किया जाता है । इसमें पहले भगवान् क्षेत्र (शरीर) तथा क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के लक्षण बतलाते हैं-


श्रीभगवानुवाच:
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते ।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: ।।1।।



श्रीभगवान् बोले:


हे <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon>! यह शरीर 'क्षेत्र' इस नाम से कहा जाता है; और इसको जो जानता है, उसको 'क्षेत्रज्ञ' इस नाम से उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन कहते हैं ।।1।।

Sri Bhagavan said:


This body, Arjuna, is termed as the field (Ksetra); and him who knows it, the sages discerning the truthabout both refer to as the knower of the field (Ksetrajna). (1)


कौन्तेय = हे अर्जुन; इदम् = यह शरीरम् = शरीर; इति =ऐसे; अभिधीयते = कहा जाता है; एतत् =इसको; य: =जो; वेत्ति = जानता है; तम् = उसको; तद्विद: = उनके तत्व को जानने वाले ज्ञानीजन; प्राहु: = कहते हैं



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

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